आजकल
लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये और क्या न किया जाये? यह स्थिति किसी आम आदमी की अकेले नहीं है, यह समस्या
हर वर्ग के साथ है। जो सम्पन्न हैं उनके साथ समस्या है कि अपनी सम्पन्नता को और कैसे
बढ़ाया जाये। कैसे अपनी सम्पन्नता और वैभव के दम पर चारों ओर अपनी हनक को जमाया जाये।
किस तरह अपनी इस हनक के सहारे से सत्ता को प्राप्त किया जाये। इसी तरह जो सम्पन्न नहीं
हैं और सम्पन्नता को पाना चाहते हैं वे भी कोई न कोई जुगत भिड़ाने में लगे रहते हैं।
रोजी-रोटी की जुगाड़ में लगे रहते हैं। सम्पन्नता और अभाव से अलग एक और वर्ग है जिसे
पिछले कुछ समय से देश में सर्वाधिक रूप से प्रतिष्ठित किया गया है। इस वर्ग में राजनीतिक
लोगों को रखा जा सकता है, ऐसे राजनीतिज्ञों को जो किसी न किसी
रूप से सत्ता के आसपास मंडराते रहते हैं। यह वह वर्ग है जो किसी न किसी रूप से सत्ता
का दुरुपयोग करके स्वार्थ पूर्ति में लगा रहता है। यही वह वर्ग है जो देशहित की बात
बड़े-बड़े मंचों से करता है किन्तु मौका आने पर देश विरोधी कार्यों में संलिप्त हो जाता
है। ऐसे वर्ग के लिए किसी उदाहरण की आवश्यकता नहीं है।
भ्रष्टाचार
और घोटालों की दुनिया में किससे साफगोई की उम्मीद की जाये। एक अपने कॉलर को खड़ा करके
दूसरे को दोष देना शुरू करता ही है कि अगले ही क्षण उसके कॉलर में भी कालिख दिखनी शुरू
हो जाती है। कालिख को पोते एकदूसरे को गाली देने, दोष लगाने के
बीच देश के आम आदमी का कितना धन बर्बाद हो रहा है इस बात की कोई फिक्र किसी को भी नहीं
रही। राजनीतिक केंद्र के चारों तरफ घूमा-फिरी करने वाला ऐसा वर्ग खुद किसी न किसी
तरह इसी केंद्र में शामिल होना चाहता है। उसके लिए राजनीति करना देशहित के लिए
नहीं, नागरिकों के लिए, जनता के लिए नहीं, समाजहित के लिए नहीं वरन राजनीति के
द्वारा मिलने वाले लाभों की प्राप्ति के लिए है। इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को
तैयार रहता है। यही कुछ कर गुजरने की स्थिति ही राजनीति में नकारात्मकता पैदा कर
रही है। जिनका किसी भी रूप में सामाजिक कार्यों से लेना-देना नहीं है वे खुद को
वरिष्ठ समाजसेवी बताते हुए राजनीति में घुसने का रास्ता तलाशते हैं। इसी रास्ते के
द्वारा वे कालांतर में अपना उल्लू सीधा करने की जुगाड़ में लग जाते हैं।
राजनीति
में निरन्तर आ रही गिरावट का कारण राजनीति नहीं वरन उसमें शामिल होने वाले लोग हैं।
इनके कुकृत्य ही राजनीति को कलंकित कर रहे हैं। राजनीति में से यदि धन को निकाल
दिया जाये तो संभव है कि राजनीति में वह संख्या आधी से भी कम रह जाए जो आज राजनीति
के नाम पर इधर-उधर से धन-उगाही करती घूमती है। इसके लिए सबसे पहले तो सांसद निधि,
विधायक निधि को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। सोचना चाहिए कि ये जनप्रतिनिधि
नीतियाँ बनाने के लिए हैं, नीति-निर्धारण के लिए हैं आखिर इनको कार्यों के संपादन
के लिए क्यों लगाया जाता है? प्रशासन इसी कार्य के लिए पहले से दत्तचित्त होता है।
विधायकों का, सांसदों का काम सदन में बैठकर नीतियां बनाना है साथ ही अपने क्षेत्र
की जनता की समस्याओं को सुनकर उसके लिए लाभार्थ योजनाओं का निर्धारण करना है। इसके
बजाय आज के जनप्रतिनिधि हैण्डपम्प, नालियां, सड़कें, खडंजा आदि के निर्माण के लिए
निधियों की संस्तुति करते घूम रहे हैं। ऐसी स्थितियों के बीच वे लोग फायदा उठा ले
जाते हैं जो राजनीति के नाम पर बस धन-उगाही में लगे हुए हैं।
राजनीति
का स्तर, कलेवर अब बहुत बदला है। तकनीक ने, सोशल मीडिया ने किसी भी घटना को, किसी
भी घटनाक्रम को एक व्यक्ति या एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहने दिया है। अब वह
वैश्विक स्तर तक अपनी पहुँच बना चुकी है। ऐसे में यदि जनप्रतिनिधि और उनके आसपास
डोलने वाले लोग अपने पर संयम न रखकर इसी तरह राजनीति करते रहेंगे तो आने वाले समय
में ऐसे लोगों का ही जमावड़ा राजनीति में दिखाई देगा जो बस स्वार्थ-पूर्ति में यहाँ
आये हुए हैं। ऐसे लोगों से किसी भी प्रकार से देशहित की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
स्पष्ट है कि तब भी बात को समझे बिना राजनीति को ही दोष दिया जायेगा, जैसे कि आज
दिया जा रहा है।
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