शाबास,
जमानत पर रिहा एक साध्वी को भोपाल से टिकट क्या मिला, सब नैतिकता का
पाठ पढ़ाने लगे. आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसके चुनाव लड़ने पर समस्या हो? अभी इस
नैतिकता से निपटे न थे कि उनका करकरे पर बयान विवादों के घेरे में आ गया. निर्वाचन
आयोग ने भी आनन-फानन उनको नोटिस भी जारी कर दिया. इसके उलट राहुल गाँधी के आचार
संहिता में धन देने की घोषणा करने पर आयोग तब तक मौन रहा जब तक कि अदालत की तरफ से
इस बारे में निर्देश न दिए गए. जमानत पर
नैतिकता की बात करने वाले भूल गए कि खुद उन्हीं की पार्टी के लोग जमानत पर हैं और
चुनाव में भी हैं. इसके अलावा एक ऐसे महाशय भी राजनीति में सक्रिय हैं, टिकट वितरण
में हैं जो सजायाफ्ता होने के कारण खुद चुनाव नहीं लड़ सकते. ऐसे समय में नैतिकता
कहीं आराम करने चली जाती है.
बहरहाल,
प्रज्ञा ठाकुर के चुनाव में उतरने का क्या असर उस सीट पर होगा यह तो वहाँ के
मतदाताओं द्वारा तय किया जाना है पर यह साफ़ है कि कई वर्षों पूर्व भगवा आतंकवाद
की, हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का आधार बनाने की साजिशें भी इसी रास्ते से सबको
दिखाई देंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके सामने वह पार्टी है जिसके एक महामना
आतंकवादियों को साहब कहते हैं. एक महाशय जी कहते हैं. खुद उम्मीदवार बने महोदय उस
साजिश से सम्बंधित किताब का विमोचन करते हैं. ये तो भला हो तत्कालीन पुलिस
कर्मियों का, सुरक्षा बलों का जिन्होंने उस आतंकी को जिंदा पकड़ लिया. यदि ऐसा न हो
पाता तो भगवा आतंकवाद की, हिन्दू आतंकी की अवधारणा समाज में स्थापित कर ही दी गई
थी. आखिर इसके पीछे दिमाग किसका काम किया होगा? क्यों किया होगा? किसने उन
आतंकियों से कहा होगा हाथ में कलावा बांध कर आने को? किसने उस पुस्तक की
रचना-प्रक्रिया के बारे में दिमाग दौड़ाया होगा? देखा जाए तो इन सबका निशाना किसी
भी रूप में हिन्दू, भाजपा, आरएसएस ही थे. इनकी आड़ में सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं पर
निशाना साधने की कोशिश की गई थी. ये कोशिश भले उस समय पूरी तरह निशाने पर न बैठी
हो मगर अब फिर से प्रयास है कि प्रज्ञा ठाकुर के बहाने सबको कटघरे में खड़ा किया
जाये.
जहाँ
तक सवाल हिन्दुओं का है तो इस देश में सदैव से ही हिन्दुओं को सांप्रदायिक घोषित
करने का काम किया जाता रहा है. धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के नाम पर
बार-बार समाज में वैमनष्यता साबित करने की कोशिश की जाती रही है. भाजपा-विरोधी
दलों को, हिन्दू-विरोधी मानसिकता वालों को हमेशा ही कष्ट होता है जब पूरे विश्व
में कहीं से भी इस्लामिक आतंकवाद, मुस्लिम आतंकवादी जैसे शब्दों की
ध्वनि-प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है. ऐसे में इनका एकमात्र उद्देश्य यही बन जाता
है कि कैसे भी भारत देश में भगवा आतंकवाद, हिन्दू आतंकवाद का
प्रचार किया जाए. उसको बार-बार बिकाऊ
मीडिया के द्वारा पूरे देश में फैलाया जाए. इस कुप्रचार करने के कुकृत्य में ये
लोग भूल जाते हैं कि भगवा वो क्रांतिकारी रंग है जिसने इस देश की आज़ादी के
महासंग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है. ये सब लोग भूल जाते हैं कि
भगवा रंग हमारे राष्ट्रध्वज में है. लोग भूल जाते हैं कि इसी भगवा रंग के वस्त्र
धारण करके स्वामी विवेकानंद ने न केवल देश का नाम बल्कि हिन्दू धर्म का नाम समूचे
विश्व में रोशन किया था.
वैसे
भी एक परिवार को खुश करने के लिए छेड़े गए शिगूफे के लिए, तुष्टिकरण
की नीति को और प्रभावी बनाने के लिए, पडोसी देश के साहब आतंकियों
को राहत देने के लिए दिए गए उठाये गए इस चिंतन से सनातन धर्म पर कोई प्रभाव नहीं
पड़ने वाला. जनता भी इस बात को जानती-समझती है, उसकी मानसिकता पर भी अब नकारात्मक
प्रभाव नहीं होने वाला. हाँ, विरोधी लोगों की क्षुद्र मानसिकता स्पष्ट हो चुकी है,
तुष्टिकरण के लिए किसी भी निम्नता तक पहुँचने की बात स्पष्ट हो चुकी
है. अंत में एक सलाह हिन्दू-विरोधियों, भाजपा-विरोधियों को कि भले ही तुष्टिकरण की
नीति चालू रखो, भले ही हिन्दुओं को सांप्रदायिक घोषित करते
रहो, भले ही भगवा आतंकवाद को प्रचारित करते रहो पर कम से कम
सब करने से पहले देश-हित को भी देख लिया करो.
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