देश
में आमतौर पर एक धारणा बनी हुई है राजनीति को गाली देने की. राजनीति को गाली देने के
साथ ही साथ राजनेताओं को भी गाली दी जाने लगती है. इस क्रम में यह तो आसानी से स्वीकारा
जा सकता है कि आज ज्यादातर नेता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं, अधिकतर किसी न किसी प्रकार के घोटालों में, किसी न किसी
आपराधिक प्रकरण में लिप्त हैं. वर्तमान के साथ-साथ जो भविष्य के नेता दिखाई दे भी
रहे हैं वे भी किसी तरह की समाजसेवा या देशसेवा के नाम पर नहीं बल्कि बहुत बड़ी
निधि की राशि देख कर, रुतबे को देखकर, अकूत धन देखकर आ रहे हैं. ऐसे में राजनीति
की इस वर्तमान व्यवस्था को दोष देने के पूर्व यदि हम अपने क्रियाकलापों, अपनी जागरूकता पर निगाह डालें तो हम ही स्वयं में सबसे बड़े दोषी नजर आयेंगे.
हमारे देश की संसद और तमाम विधान सभाओं में एक निश्चित समयान्तराल के बाद चुनाव होता
है और दोनों ही जगहों के लिए एक निश्चित सीट पर सांसदों, विधायकों
का चुनाव किया जाता है. एक पल को हम विचार करें कि यदि पांच वर्षों के अन्तराल में
होने वाला चुनाव आया और प्रत्याशियों में सभी जगह पर केवल आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति
ही दिखाई देने लगे तो क्या हमारे संविधान में, संसद में,
न्यायालय में इस बात का प्रावधान है कि चुनाव को टाल दिया जाये?
इसका जवाब शायद न में हो. अब बात वहीं घूम फिर कर आती है कि चुनाव का
निर्धारित समय किसी लिहाज से टाला नहीं जा सकता है और सदन की निर्धारित सीटों को अपने
निश्चित समय पर भरा ही जाना है. ऐसे में यदि अच्छे लोग उन्हें भरने को आगे नहीं आयेंगे
तो जो भी सामने दिखेगा सदन उसी को अगले निर्धारित समय के लिए अपने में समाहित कर लेगा.
ऐसी स्थिति में दोष हमारा ही है कि हमने स्वयं अपने को अच्छा माना भी है और स्वयं
को राजनीति से पीछे खींचा भी है.
हम
सब अपने पारिवारिक क्रियाकलापों पर विचार करें और बतायें कि जिनका सीधे तौर पर राजनीतिक
क्षेत्र से सम्बन्ध नहीं है क्या उन्होंने अपने बेटे-बेटी को राजनीति में कैरियर बनाने
को प्रोत्साहित किया? अपने बच्चों को राजनीति के क्षेत्र में कभी आदर्श रहे लोगों
के बारे में जानकारी दी? क्या कभी अपने बच्चों के मन में राजनीति के अच्छे लोगों
के प्रति सकारात्मक बीज बोने का काम किया? नहीं न. असल में हमारे देश की बिडम्बना है
कि एक क्लर्क, एक चपरासी, एक मजदूर अपनी
संतान को आई०ए०एस० बनाने के सपने देखता है जबकि उसका दूर-दूर तक आई०ए०एस० से कोई सम्बन्ध
नहीं होता है किन्तु अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवियों को, जिनका देश
के विकास के प्रति कोई दायित्व है, उन्हें भी अपने बच्चों को
राजनीति से दूर करते हुए देखा है. ऐसे में हम गाली किसे और क्यों दे रहे हैं?
हमारा
प्रयास हो कि हम अपने बच्चों में राजनीति के प्रति कुछ जागरूकता पैदा करें,
उन्हें समझायें कि इस क्षेत्र को भी कैरियर के रूप में अपनाया जा सकता
है. आज की पीढ़ी को समझाने की आवश्यकता है कि सिर्फ मल्टीनेशनल कम्पनियों के लुभावने
पैकेज को प्राप्त कर लेना ही देश-सेवा नहीं है, देश-सेवा का एक
रास्ता राजनीति से भी होकर जाता है. यदि हम आने वाले समय में देशहित को ध्यान में रखकर
युवाओं को सक्रिय राजनीति में उतार सके तो यकीन मानिये कि आपराधिक तत्वों को जेलों
में जगह मिलेगी और देश के समस्त सदन सकारात्मक, सक्रियतापूर्ण,
उत्साही, जागरूक, कर्मठ,
चिन्तशील राजनेताओं से सुशोभित दिखेंगे.
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