राजनैतिक
घोटालेबाजों का बेशर्मी से अपनी सफाई देते रहना; राजनैतिक हत्यारों
का सीना तानकर समाज में घूमते रहना; रिश्तेदारों द्वारा रिश्तों
की गरिमा को तार-तार करना, युवा पीढ़ी द्वारा आधुनिकता के वशीभूत
नशे की गिरफ्त में चले जाना; एक पल में शानोशौकत, पद, प्रतिष्ठा पाने की चाहत में लोगों का अपराधों के
दलदल में धँस जाना; महिलाओं, यहाँ तक कि
छोटी-छोटी बच्चियों तक से बलात्कार की घटनाओं का लगातार सामने आना और भी बहुत सी घटनायें
हैं, विकृतियाँ हैं जिन्हें देखने-सुनने के बाद लगता है जैसे
समाज पूरी तरह से अपराध की दुनिया में समा गया है। किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था के
द्वारा उसके अपराधी घोषित होने के बाद भी उसमें किसी तरह का भी अपराधबोध नहीं दिखाई
देता है। उसके द्वारा एक अपराध करने के बाद, एक घोटाला करने के
बाद पुनः दूसरे अपराध की ओर, दूसरे घोटाले की ओर मुड़ जाता है।
इस तरह की पुनरावृत्ति दर्शाती है कि समाज से नैतिकता समाप्त होती जा रही है।
अब
सवाल यही उभरता है कि क्या वाकई ऐसा हो रहा है? क्या आज का समाज
नैतिकता, संस्कार, सामाजिकता जैसी बातों
पर विश्वास करता है? आज जिस तरह से चारों ओर पल भर में स्वविकास
की होड़ लगी है, किसी भी तरह से उच्च से सर्वोच्च तक पहुँचने को
हर प्रकार के हथकंडे प्रयोग में लाये जा रहे हैं, आपसी रिश्तों
में भी स्वार्थपरकता पूरी तरह से हावी होती दिख रही है, आधुनिकता
के नाम पर संस्कारों को, संस्कृति को एक प्रकार से तिलांजलि दी
जा रही हो ऐसे में क्या नैतिकता की ओर कोई ध्यान भी देता होगा?
राष्ट्रीय
स्तर पर देखें तो एक के बाद एक घोटाले सामने आते जा रहे हैं और सरकार से, घोटालेबाज मंत्री-नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा
दें; विपक्षी दलों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी नैतिकता
को बनाये रखते हुए सहयोग प्रदान करें; प्रादेशिक स्तर पर देखें
अथवा स्थानीय स्तर पर एक छोटे से छोटे कर्मचारी से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वो
नैतिकता से अपने दायित्वों को पूर्ण करेगा। सभी को सभी से किसी न किसी प्रकार की नैतिकता
की अपेक्षा रहती है पर स्वयं अपने स्तर पर नैतिकता भरे कदम नहीं उठाते हैं। ऐसे समय
में जबकि समाज के प्रत्येक वर्ग से, प्रत्येक क्षेत्र से नैतिकता
समाप्त सी होती दिख रही है तब हम सभी को ही मिलकर इस ओर कदम बढ़ाने की आवश्यता है। अपनी
युवा पीढ़ी को समझाने की आवश्यकता है क्योंकि आने वाला समय इसी पीढ़ी का है और यदि हमारे
समाज की भावी पीढ़ी ने नैतिकता के गूढ़ार्थ को समझ लिया तो जिस तरह का हताशा-निराशा का
माहौल आज दिख रहा है सम्भव है कि वो न दिखे।
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