मार्च
माह का अंतिम दिन है. देश भर में सभी कार्यालयों में अपनी तरह से क्लोजिंग मनाई जा
रही है. देश में इसे भी एक उत्सव की तरह से मनाया जाता है. कई-कई कार्यालयों में,
सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों में हफ़्तों पहले से इस आयोजन को मनाया जाने लगता है.
लोगों की भागदौड़, व्यस्तता, शारीरिक-मानसिक हालत ऐसी दिखती है जैसे कि सम्पूर्ण
देश के विभागों की क्लोजिंग का काम इन्हीं को दिया गया है. यह अस्त-व्यस्त
भाव-भंगिमा किसी के सामने ही दिखती है, किसी जिम्मेवारी को उठाने से बचने के लिए
दिखती है. आमतौर पर ऐसे लोग सुबह अपने उसी पूरे इत्मिनान से उठते हैं जैसे कि अन्य
सामान्य दिनों में उठा करते हैं. उसी तरह की रेंगती-घिसटती दिनचर्या के साथ अपने
ऑफिस के लिए निकलना होता है, जैसे कि आम दिनों में होता है. इन दिनों चूँकि
क्लोजिंग के आयोजन का विशेष महत्त्व दर्शाना होता है, इस कारण इन्हें भी कुछ अलग
सा दिखना होता है. ऐसा दिखाई देना मजबूरी भी कही जा सकती है क्योंकि क्लोजिंग आयोजन
से जुड़े लोग विशेष ही होते हैं. हरेक के भाग्य में क्लोजिंग आयोजन से जुड़ना नहीं
लिखा होता है.
क्लोजिंग
का आयोजन उनके लिए महत्त्वपूर्ण होता है जो किसी न किसी रूप में आर्थिक क्षेत्र से
जुड़े होते हैं. ऐसे लोगों में जिन-जिन की किस्मत में धन-सम्पदा जुड़ी होती है वे इन
दिनों उसे खपाने के पूरे तरीके उपयोग में लाते दिखते हैं. वर्तमान में रहते हुए
कैसे अतीत की यात्रा की जा सकती है, कैसे अतीत को वर्तमान में खड़ा किया जा सकता
है, इसका उदाहरण इसी समय देखने को मिल जाता है. कैसे जो काम नहीं हुए वे भी कागजों
में संपन्न हो जाया करते हैं. कैसे जिन कामों के लिए कोई लगाया तक नहीं गया उनके
भुगतान हो जाया करते हैं. कैसे प्रकृति की चाल को रोकते हुए दिन-रात का भेद इन
दिनों समाप्त कर दिया जाता है. क्लोजिंग आयोजन में बहुत से लोगों को महारथ हासिल
होती है. वे न केवल अपने विभाग की वरन दूसरे कई अन्य विभागों तक की क्लोजिंग
करवाने का ठेका अपने हाथ में लेते हैं. इस ठेके की गंभीरता देखिये कि वे न केवल
अपने विभाग के क्लोजिंग उत्सव को सम्पूर्ण सफलता से आयोजित करते हैं बल्कि दूसरे
सभी विभागों के क्लोजिंग उत्सव को भी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ा आते हैं. इस तरह के
उत्सवधर्मी लोगों का अपना ही महत्त्व होता है जो मार्च के महीने में ही सबके सामने
आता है अन्यथा की स्थिति में ऐसे लोग वर्ष भर स्लीपर सेल की भांति सामान्य सा जीवन
गुजारते रहते हैं.
अबकी
क्लोजिंग उत्सव का आना बड़े ही शुभ मुहूर्त में हुआ है. ऐसे स्लीपर सेल इस समय बहुत
ही शिद्दत से याद किये जा रहे हैं. इसका कारण है कि इसी समय देश अपने सबसे बड़े
संवैधानिक आयोजन में व्यस्त है. चुनावी आयोजन के कारण सबके सभी प्रकार के उत्सवों
पर ग्रहण सा लग जाता है मगर इस बार क्लोजिंग होने के कारण ऐसे सफेदपोश जिनकी
निधियां अभी तक कुछ जीवित अवस्था में पड़ी-पड़ी कोमा का शिकार होने जा रही थीं, वे
इस क्लोजिंग उत्सव में कुछ साँस लेती दिखाई देने लगी हैं. इस उत्सव के महारथियों
ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल कर उमने धार लगाना शुरू भी कर दिया था. ऐसा उसी
दिन से होने लगा था जैसे ही आदर्श आचार संहिता का लगना हुआ था. आखिर ऐसे समय में
वर्तमान को, भविष्य को पीछे धकेलते हुए अतीत में ले जाना होता है. जाने कितने-कितने
वे काम जो अब कागजों में ही समेटे जाने हैं उनको सम्पूर्ण करवाना होता है. पूरी
ईमानदारी के साथ बेईमानी की क्लोजिंग करवानी होती है. चुनावी दौर में जहाँ एक तरफ
निधिदार अपने-अपने प्रचार में लगे हैं तो उनके सिपहसालार उनके पीछे क्लोजिंग उत्सव
के सफल आयोजन के लिए कृत-संकल्पित हैं.
यही
विशेषता है इस लोकतंत्र की. क्लोजिंग भी पूरी ईमानदारी से निपट जानी है, लोकतंत्र
का सबसे बड़ा आयोजन भी निपट जाना है. दोनों जगह सभी के खाते अपनी-अपनी तरह से
निपटाए जाने हैं. दोनों जगह कुछ के खाते बंद किये जायेंगे, कुछ के खाते लाभ में
रहेंगे, कुछ घाटे का शिकार हो जायेंगे. अंततः दोनों ही जगह फिर एक बार वही पुराना
ढर्रा चालू हो जायेगा. लाभ वाला और लाभ के लिए मारा-मारी करने लगेगा. घाटा वाला
लाभ की तरफ जाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाने लगेगा. खातों के एक-दूसरे में विलय
होना शुरू हो जायेगा. सबकुछ फिर वैसे ही होने लगेगा, जैसे कि सामान्य दिनों में
होता रहता है. बस इस क्लोजिंग के उत्सव के समय सक्रिय लोग फिर सुसुप्तावस्था में
चले जायेंगे. वे फिर से क्लोजिंग उत्सव के समय ही याद आयेंगे, भले ही वो क्लोजिंग
विभागों के आर्थिक खातों की हो या फिर देश की संवैधानिक व्यवस्था वाले खाते की.
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