10 मार्च 2019

अभी भी असंतुष्टि है लेखन में


एक लम्बा समय ब्लॉगिंग करते हुए बीत गया. इसे लेखन सम्बन्धी बीमारी कहा जाये या फिर शौक सोशल मीडिया के बहुत से मंच आने के बाद भी ब्लॉग-लेखन से खुद को अलग  नहीं कर सके. इस दौरान कई तरह के ब्लॉग बनाये, कई-कई विषयों पर लिखना भी हुआ मगर अंतिम रूप से कहा जाये तो ब्लॉग लेखन में संतुष्टि जैसा कुछ नहीं मिला. हर एक पोस्ट के बाद लगता रहा कि कहीं न कहीं कुछ कमी है. खुद अपना लिखा ही पसंद न आता. हर बार सोचते कि किसी अलग विषय पर लिखा जाना शुरू करना चाहिए, किसी ऐसे विषय पर लिखना चाहिए जिस पर बहुत लोग न लिख रहे हों, किसी ऐसे विषय पर लिखना चाहिए, जिस पर बहुत कुछ लिखा न गया हो. ऐसा सोचने-विचारने के बाद कई बार प्रयास किया गया कुछ अलग हट कर लिखने का मगर सफलता न मिली. अब इसे हमारी अपनी कमी कहा जाये या फिर ये कहा जाये कि इधर कई सालों से लिखने का शौक तो बना रहा मगर पढ़ने का शौक उतना बना नहीं रहा, जितना कि होना चाहिए. इसी कारण से किसी विषय विशेष पर बहुत गंभीरता से लिखा न जा सका.


ऐसा मानना है हमारा कि लिखना सबसे आसान है. जो भी व्यक्ति किसी भी तरह से बस लिखना जनता हो, अक्षर ज्ञान रखता हो, कलम पकड़ना जानता हो वह कुछ भी लिख लेगा. इधर व्याकरणिक सीमाओं से मुक्त होने के बाद कविता लेखन तो और भी आसान हो गया है. ऐसे में गली-गली लेखक के बजाय साहित्यकार दिखाई देने लगे हैं. यही साहित्यकार गलियों, सड़कों पर टहलने के बजाय अब सोशल मीडिया पर टहलते दिखाई देते हैं. इनको न गंभीरता से सम्बन्ध है, न रचना की समकालीनता से, न विषय की गंभीरता से, इनको बस लिखना है सोशल मीडिया के मंच पर पोस्ट करना है और एक गैंग की तरह से लाइक, शेयर, कमेंट की गिरफ्त में ले जाना है. ऐसे लोगों ने न केवल लेखन को प्रभावित किया है बल्कि विषयों को भी प्रभावित किया है. बहरहाल, आज बात इनकी नहीं वरन खुद की.

पंद्रह सौ पोस्ट एक ही ब्लॉग पर लिखने के बाद तथा लगभग इतनी ही पोस्ट अन्य ब्लॉग पर, वेबसाइट पर मिलाकर लिखने के बाद भी समझ नहीं आ रहा कि खुद को किस विषय-विशेष पर केन्द्रित किया जाये कि अपने लेखन सम्बन्धी संतुष्टि को प्राप्त किया जा सके. ये पोस्ट इसीलिए लिखी जा रही है क्योंकि हम तो समझ नहीं पा रहे हैं, हाँ आप समझ सकें तो अवश्य समझाएं-बताएं कि किस विषय पर अपने लेखन को केन्द्रित किया जाये, खासतौर से ब्लॉग लेखन को.

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