न जाने
क्या-क्या सोचकर लिखने के लिए बैठे थे. आदतन काम शुरू करते ही पहले गाने शुरू कर
दिए. पुराने गायकों ने अपनी गायकी से दिल को छेड़ने का काम किया. उसी में बीच-बीच
में हमारी पसंद की कुछ ख़ास ग़ज़लों ने भी रंग गहरा कर दिया. लिखना भूलकर दिल-दिमाग
पुराने दिनों को याद करने लगा. जाने कहाँ-कहाँ की सैर करवा दी दिल ने, चंचल मन ने.
वे लोग भी मिलते गए जो अब किसी भी रूप में साथ नहीं. वे लोग भी मिलते-मुस्कुराते
रहे जो अब मिलने की कोशिश भी नहीं करते. वे भी दिख गए जो कभी-कभी हमारा दिल रखने
को मिल लेते हैं. पुराने दिनों की सैर में वर्तमान एकदम से ही गायब हो गया. न याद
रहा कि क्या लिखना था, न याद रहा कि किस विषय पर लिखना था. बस पुराने दिनों की सैर
होती रही.
फिर सोचा
कि चलो, कुछ इसी पर ही लिखा जाये. कुछ पुराने दिनों की छवि शब्दों में उतारी जाये.
ऐसा करने बैठे तो भी समस्या सामने आ गई. क्या-क्या उतारें, क्या-क्या न उतारें. क्या-क्या
याद करें, क्या-क्या भूलें. पुराने दिनों का सुहानापन इतना अधिक है हमारे जीवन में
कि उसे एक कैनवास पर, एक सीमित रूप-रेखा में बाँधा-उतारा नहीं जा सकता. फिर वही
दुविधा, एक को याद करें तो उसी के सहारे दूसरे से जुड़ जाएँ. एक सिरा पकड़ कर अपनी
तरफ खींचने की कोशिश करें तो दूसरा सिरा हमें अपनी तरफ खींच ले. इस आने-जाने में,
सैर-सपाटे में लिखना फिर न हो पाया. लैपटॉप को एक किनारे रखकर शांति से आँखें बंद
करके बैठ गए. खुद को समय के हवाले कर दिया, दिल-मन के हवाले कर दिया. उन्हीं के
हाथों में बस सैर होती रही, घुमक्कड़ी होती रही. विचार है कि अब इसी सैर से निकले
आनंद को लिखा जाये. लिखना चाहिए क्योंकि सभी के पास अपे-अपने तरह का आनंद है बीते
दिनों का. चलिए फिर जल्द ही इस सैर पर आपको भी लेकर चलते हैं.
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