06 फ़रवरी 2019

ज़िन्दगी जीने के लिए है बिताने के लिए नहीं


ज़िन्दगी जितनी आसान लगती है, उतनी आसान होती नहीं है. तमाम सारी जिम्मेवारियाँ, अनेक तरह की समस्याएँ, बहुत से काम, न जाने कितने दायित्व जिनको लेकर खुद ज़िन्दगी भी परेशान सी रहती है. ये और बात है कि अक्सर हम सामने वाले को दिखाने के लिए ऐसा बर्ताव करते हैं मानो जिंदगी हमारे लिए बहुत आसान सी बात हो. असल में ज़िन्दगी सिर्फ समय बिताने का नाम नहीं. ज़िन्दगी सिर्फ समय काटने का माध्यम नहीं. ज़िन्दगी सिर्फ उम्र बिता देने का नाम नहीं. ज़िन्दगी असल में जीने का नाम है. किसी भी व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक वह अपने निर्धारित समय को किस तरह से जी रहा है, वही ज़िन्दगी है. किसी भी इन्सान को यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि न तो जन्म उसके हाथ में है, न ही मृत्यु उसके द्वारा निर्धारित है. जिनको इस बारे में भ्रम हो वे एक बार जन्म-मरण के चक्र में उतर कर देख लें, सारा भ्रम दूर हो जायेगा. जो लोग आत्महत्या करने वालों का उदाहरण देते हैं, उनके लिए एक बात याद कर लेना चाहिए कि वह उनका निर्धारित समय था और उसी समय को पूरा करवाने का विधान पहले से निर्धारित कर दिया गया था. यह प्रकृति इस तरह की है जहाँ न तो जन्म अपने हाथ में है और न ही मृत्यु अपने हाथ में है. माना कि इन्सान आत्महत्या करने अपनी मृत्यु का समय निर्धारित कर लेता हो मगर अन्य जीवों, वनस्पतियों के बारे में क्या कहा जायेगा? वे भी किसी न किसी रूप में अपना स्वरूप का अंत करती हैं, मगर वह आत्महत्या नहीं होती.


यहीं आकर इंसानों को समझने की आवश्यकता है कि मृत्यु किसी समस्या का समाधान नहीं. जीवन ही उनकी समस्या का समाधान है. यदि जीवन है तो समस्या को हल करने के रास्ते सामने दिखाई पड़ते हैं. मौत के बाद तो फिर उसी जन्म-चक्र में फंसना होता है, जिससे छुटकारा लेने के लिए मौत का रास्ता चुना गया. यदि इन्सान इसी सत्य को समझ ले तो फिर किसी भी तरह की समस्या से परेशान न हो. यहाँ उसे समझना चाहिए कि किसी भी समस्या का जन्म तब हुआ है जबकि उसका समाधान प्रकृति द्वारा किया जा चुका है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रकृति सदैव से मातृ रूप में, पितृ रूप में हमारे आसपास रही है और कोई भी माता-पिता नहीं चाहते हैं कि उनकी संतति समस्या से ग्रसित रहे. ऐसे में प्रकृति द्वारा अपनी संतानों की जीवटता की परीक्षा लेने के लिए अनेक तरह की समस्याएं सामने लाई जाती हैं मगर उनका समाधान उनसे पहले दिया जाता है. यही वह बिंदु है जहाँ प्रकृति की एक-एक संतान अपनी समस्या के अनुसार अपना समाधान खोज ले. जो ऐसा कर पाते हैं वे जीवन का आनंद ले पाते हैं, उसके सुख का उपभोग कर पाते हैं. ऐसा न कर पाने वाले नितांत दुःख में अपना शेष जीवन बिताते रहते हैं. 

अब यदि हम अपने को इन्सान समझते हैं, खुद को दिमागदार मानते हैं तो किसी भी समस्या से निपटने की स्थिति हमें खुद ही विकसित करनी होगी. ध्यान रखना होगा कि ज़िन्दगी को, जीवन को जब हम आनंदरूप में व्यतीत कर रहे होते हैं तो वह विशुद्ध अपने लिए लिए होता है और जब ज़िन्दगी को जिया जाता है तो वह दूसरे के लिए होता है. इस दूसरे में हमारा परिवार होता है, हमारे माता-पिता होते हैं, हमारे भाई-बहिन होते हैं, हमारी पत्नी-बच्चे होते हैं. आनंद में सिर्फ हम ही हम होते हैं और जब सिर्फ हम ही हम होते हैं तो कोई जिम्मेवारी नहीं, कोई कर्तव्य नहीं, कोई भावना नहीं, कोई रिश्ता नहीं. यह सभी तब होता है जबकि हम अपने से ऊपर उठकर ज़िन्दगी को समाज के लिए जीना शुरू करते हैं. अपनी जिम्मेवारियों के लिए जीना शुरू करते हैं. अपने दायित्वों के लिए बिताना शुरू करते हैं. और देखा जाए तो असल ज़िदगी का आरम्भ भी इसी बिदु से होता है. तब तक तो बस सफ़र काटा जाता है. अब ये आपको तय करना है कि आप सफ़र काट रहे हैं  या फिर ज़िन्दगी जी रहे हैं.

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