07 फ़रवरी 2019

शब्दों के निहितार्थ खोल उतारना चाहिए


कहते हैं कि किसी बात को बहुत सोच-समझ कर बोलना चाहिए. इसी तरह यह भी कहा जाता है कि जो बात सुनी गई है उस पर आँख बंद करके विश्वास नहीं किया जाना चाहिए. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि शब्दों के अपने बहुतेरे सम्बन्ध होते हैं, अनेक सन्दर्भ होते हैं. एक-एक शब्द में अनेकानेक सन्दर्भ, अर्थ देखने को मिलते हैं. इन्हीं शब्दों के द्वारा कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. बहुत बार ऐसा होता है कि कहा कुछ और होता है, उसका अर्थ कुछ और निकलता है और सामने वाला उसका कोई और सन्दर्भ निकालता है. शब्दों के इस तरह से कुछ कहने, कुछ समझने, कुछ अर्थ निकलने को इस कहानी के द्वारा भली-भांति समझा जा सकता है.


+
मुल्ला नसरुद्दीन भारत आकर एक योगी के द्वार पर रुका. थका हुआ था, विश्राम मिल जाए ये सोच कर वो योगी के पास आकर पास बैठ गया. वो योगी की बातचीत सुनने लगा जो शिष्यों से चल रही थी. योगी समझा रहा था जीव-दया. कह रहा था कि समस्त जीव एक ही परिवार के हैं. समस्त जीवन जुड़ा हुआ है. इसलिए दया ही धर्म है.
जब योगी बोल चुका तो मुल्ला ने खड़े होकर कहा कि आप बिलकुल ठीक कहते हैं. एक बार मेरी जाती हुई जान एक मछली ने बचाई थी.
योगी तो एकदम हाथ जोड़कर उसके चरणों में बैठ गया. उसने कहा कि धन्य! मैं बीस साल से साधना कर रहा हूं लेकिन अभी तक मुझे ऐसा प्रत्युत्तर नहीं मिला कि किसी पशु ने मेरी जान बचाई हो. मैंने कई पशुओं की जान बचाई है, लेकिन किसी पशु ने मेरी जान बचाई हो, अब तक ऐसा मेरा भाग्य नहीं है. तुम धन्यभागी हो! तुम्हारी बात से मेरा सिद्धांत पूरी तरह सिद्ध हो जाता है. तुम रुको यहां, विश्राम करो यहां.
तीन दिन मुल्ला नसरुद्दीन की बड़ी सेवा हुई. चौथे दिन योगी ने कहा कि अब तुम पूरी घटना बताओ, वह रहस्य, जिसमें एक मछली ने तुम्हारी जान बचा दी थी.
नसरुद्दीन ने कहा कि आपकी इतनी बातें सुनने के बाद मैं सोचता हूं कि अब बताने की कोई जरूरत नहीं है. योगी नीचे बैठ गया, नसरुद्दीन के पैर पकड़ लिए और कहा, गुरुदेव, आप बचकर नहीं जा सकते. बताना ही पड़ेगा वह रहस्य, जिसमें एक मछली ने आपकी जान बचाई.
नसरुद्दीन ने कहा, अच्छा यह हो कि वह चर्चा अब न छेड़ी जाए. वह विषय छेड़ना ठीक नहीं है.
योगी तो बिलकुल सिर रखकर जमीन पर लेट गया. उसने कहा कि मैं छोडूंगा नहीं गुरुदेव! वह रहस्य तो मैं जानना ही चाहूंगा. क्या आप मुझे इस योग्य नहीं समझते?
नसरुद्दीन ने कहा, नहीं मानते तो मैं कहे देता हूं. मैं बहुत भूखा था और एक मछली को खाकर मेरी जान बची. इस तरह एक मछली ने मेरी जान बचाई.
+
समझने की बात है, शब्द एक से हो सकते हैं मगर इससे किसी तरह की भ्रांति में पड़ने की जरूरत नहीं है. एक से शब्दों के भीतर भी बड़े विभिन्न सत्य हो सकते हैं. और कई बार विभिन्न शब्दों के भीतर भी एक ही सत्य होता है; उससे भी भ्रांति में पड़ने की जरूरत नहीं है. शब्दों की खोल को हटाकर सदा सत्य को खोजना जरूरी है.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें