आज, 9 जनवरी हिन्दी
उपन्यासों के वाल्टर स्कॉट के रूप में प्रसिद्द वृन्दावनलाल वर्मा की का जन्मदिन है.
वाल्टर स्कॉट मूलतः शिकारी साहित्य के उपन्यासकार माने गए हैं. इसके साथ-साथ उन्होंने
ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे. उनसे प्रेरणा पाकर और अपने बचपन में भारतीय इतिहास के प्रति
गलत धारणा देखकर वृन्दावन लाल वर्मा जी के मन में देश का सही साहित्य, इतिहास लिखने का संकल्प जगा. उसी के कारण उन्होंने प्रेमचंद जैसे साहित्यकार
के काल में ऐतिहासिक उपन्यास लेखन की दिशा में कदम बढ़ाया.
वृन्दावन लाल वर्मा जी का जन्म
झाँसी जिले के मऊरानीपुर में 9 जनवरी 1889 को हुआ था. अपने चाचा के पास ललितपुर में
रहकर उन्होंने साहित्य के प्रति अनुराग पैदा हुआ. जब वे कक्षा नौ में पढ़ते थे तभी इन्होंने
तीन छोटे-छोटे नाटक लिखकर इण्डियन प्रेस, प्रयाग को भेजे. इन नाटकों के लिए उनको पुरस्कारस्वरूप
50 रुपये प्राप्त हुए थे. मात्र बीस वर्ष की उम्र में उन्होंने सेनापति ऊदल नाटक लिखा
था. इस नाटक में निहित राष्ट्रवादी तेवरों से बौखलाकर अंग्रेज़ सरकार ने इस नाटक पर
पाबंदी लगा दी थी और इसकी प्रतियाँ जब्त कर ली गईं.
उनके ऐतिहासिक उपन्यासों में गढ़कुंडार, विराटा की पद्मिनी,
कचनार, झाँसी की रानी, माधवजी
सिंधिया, मुसाहिबजू, भुवन विक्रम ,
अहिल्याबाई, टूटे कांटे, मृगनयनी आदि प्रसिद्ध हैं. गढ़कुंडार उपन्यास के बहुत से अंश तो उन्होंने एक
रात शिकार के दौरान उस किले को देखते-देखते ही तैयार कर लिए थे. उनके उपन्यासों में
इतिहास जीवन्त होकर बोलता है. उन्होंने ऐतिहासिक उपन्यासों के अलावा संगम, लगन, प्रत्यागत, अचल मेरा कोई,
सोना, प्रेम की भेंट, अमरवेल
सरीखे सामाजिक उपन्यास भी लिखे. इन उपन्यासों में उन्होंने समाज की वास्तविक कहानियों
को आधार बनाया था. इनके द्वारा लिखित उपन्यास संगम और लगन पर हिन्दी फिल्में भी बनी
हैं जो कई भाषाओं में अनुदित हुयी हैं. उनकी आत्मकथा अपनी कहानी भी सुविख्यात है.
भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण
से अलंकृत किया गया. हिन्दी साहित्य में परास्नातक उपाधि उत्तीर्ण करने के पश्चात् पी-एच०डी० उपाधि के लिए गुरुजनों (डॉ० ब्रजेश अंकल, डॉ० दुर्गा प्रसाद खरे) द्वारा आदेशित किया गया. चूँकि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसी साहित्यकार पर शोध-कार्य करने की अभिलाषा थी. अपने मन की बात जब अपने गुरुजन के समक्ष रखी तो अगले ही पल उन्होंने वृन्दावन लाल वर्मा जी के साहित्य पर कार्य करने को प्रेरित किया. इसके बाद वृन्दावन लाल वर्मा के उपन्यासों में अभिव्यक्त सौन्दर्य का अनुशीलन नामक शोध विषय के रूप में अपना शोध-कार्य डॉ० दुर्गा प्रसाद खरे जी के निर्देशन में आरम्भ किया. इसी शोध-कार्य के सुफल रूप में विद्या वाचस्पति (Ph.D.) उपाधि बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी से प्राप्त हुई.
आज उनकी जयंती पर उनको सादर नमन.
आज उनकी जयंती पर उनको सादर नमन.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें