29 जनवरी 2019

मुक्त होना निर्भीक आवाज़ का


एक भारतीय राजनेता होने के साथ-साथ श्रमिक संगठन के नेता, पत्रकार रह चुके जॉर्ज फर्नांडिस का आज, 29 जनवरी 2019 को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनका जन्म 03 जून 1930 को कर्नाटक के मंगलुरु में हुआ था. उनके पिता जॉन जोसफ फर्नांडिस और माता एलीस मार्था फर्नांडिस थे. 16 वर्ष की उम्र में उनको क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजा गया. वहां उनका मन नहीं लगा. विद्यालय में हो रहा भेदभाव उनको पसंद नहीं आ रहा था. स्कूल में फादर्स ऊंची कुर्सी-मेज पर बैठकर अच्छा भोजन करते थे, जबकि प्रशिक्षणार्थियों को ऐसी सुविधा नहीं मिलती थी. उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और बाद में स्कूल छोड़ दिया. इसके बाद वह सन 1949 में वे रोजगार की तलाश में बंबई चले आए.

सन 1967 से सन 2004 तक वे नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए. केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में वे रक्षा मंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री आदि के रूप में देश को अपनी सेवाएँ देते रहे हैं. रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने रिकॉर्ड 30 से ज्यादा बार सियाचिन ग्लेशियर का दौरा किया. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वे रक्षा मंत्री रहे और उन्हीं के रक्षा मंत्री रहते हुए भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था. केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान निवेश के उल्लंघन के कारण अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने का आदेश दिया. कोंकण रेलवे परियोजना के पीछे वे एक प्रेरणा शक्ति के रूप में रहे जबकि वे 1989-90 में रेल मंत्री रहे. 

उनके नेतृत्व में देश की सबसे बड़ी हड़ताल सन 1974 में हुई थी जबकि उन्होंने देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया था. दरअसल सन 1973 में उनको ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन का चेयरमैन चुना गया. भारतीय रेलवे में उस समय लगभग 14 लाख लोग काम किया करते थे. रेलवे कामगार कई सालों से सरकार से कुछ जरूरी मांगें कर रहे थे लेकिन सरकार उन पर ध्यान नहीं दे रही थी. ऐसे में उनके आह्वान के बाद रेल का चक्का जाम हो गया. कई दिनों तक रेलवे का सारा काम ठप्प रहा. न तो कोई आदमी कहीं जा पा रहा था और न ही सामान. तीन हफ्ते से अधिक समय तक चली इस हड़ताल को सरकार ने सेना की सहायता से बड़ी निर्ममता से ख़तम करवाया. सरकार ने सख्ती के साथ इस आंदोलन को कुचलते हुए लगभग 30 हजार लोगों को गिरफ्तार किया. इनमें जॉर्ज फर्नांडिस भी शामिल थे.

आपातकाल के दौरान वे सिखों की वेशभूषा में घूमते थे. गिरफ्तारी से बचने के लिए वे खुद को लेखक खुशवंत सिंह बताया करते थे. जब इस दौरान बड़ौदा डाइनामाइट केस में उनको गिरफ्तार किया गया तो जेल में रहने के दौरान वह कैदियों को श्रीमद्भागवतगीता पढ़कर सुनाया करते थे. संघर्षशील, बेबाक वक्ता, मजदूरों के हितैषी जॉर्ज फर्नांडिस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. वे हिन्दी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, कोंकणी सहित दस भाषाओं के जानकार थे.

उनको विनम्र श्रद्धांजलि

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