बीते दिनों में कभी-कभार टहल
आना मन को प्रसन्न भी कर जाता है, तो दुखी भी कर जाता है. ऐसा कभी चाह कर भी होता
है और कई बार ऐसा अचानक हो जाता है. वैसे दिल-दिमाग का आपसी समन्वय बहुत कम ही बन
पाता है और ऐसा भी बहुत कम होता है कि दोनों एकसाथ समय, परिस्थिति की यात्रा करें.
जाने-अनजाने में, चाहे-अनचाहे में दिल तो अतीत की यात्रा कर आता है और दिमाग ऐसी
किसी भी स्थिति में बहुत ही विचार करने के बाद प्रवेश करता है. इन दोनों की
अपनी-अपनी रस्साकशी के बीच मन ही है जो दिल-दिमाग की परवाह किये बिना अद्भुत गति
से एक पल में अतीत में चला जाता है और अगले ही पल वर्तमान में आकर खड़ा हो जाता है.
मन की इसी तीव्रगामी यात्रा के कारण दिल-दिमाग दोनों परेशान रहते हैं. मन तो
वाप्नी स्वाभाविक गति से अतीत में प्रवेश कर जाता है. अपनी तीव्र गति के झोंकों से
न जाने कितने पन्नों को फड़फड़ा देता है. उनमें उथल-पुथल मचा देता है. अतीत के
पन्नों का उलटना होते ही चाही-अनचाही स्थितियाँ, न जाने कितने एहसास, अच्छी-बुरी
यादें जीवित होकर अपना स्वरूप ग्रहण करने लगती हैं.
इन सबके बीच दिल कई बार
प्रसन्न होता है तो कई बार दुखी भी होता है. कालचक्र की अपनी सीमा-रेखा से बाहर
आने के बाद भी उवह अभिलाषा व्यक्त करता है वापस उसी दौर में जाकर उन्हीं पलों को
जीने की. यह जानते हुए भी एकबार समय के चक्र से बाहर आने के बाद उसमें प्रविष्ट
होने का एकमात्र रास्ता बस यादें हैं, स्मृतियाँ हैं. उन्हीं के सहारे बीते समय की
सैर कर ली जा सकती है. मन की उड़ान से चहकते यादों के पन्ने हँसाने-रुलाने का काम
करते हुए जीवन को एक तरह की ऊर्जा से भी ओत-प्रोत करते हैं. दिल के, दिमाग के कई
बार समय, स्थितियों के व्यामोह में फँसे होने पर लगता है कि यादों को स्मृति-पटल
से गायब हो जाना चाहिए. उन्हें लगातार, बार-बार सामने आकर दिल को परेशान नहीं करना
चाहिए. इसी के साथ अक्सर ऐसा भी महसूस होता है कि यदि ये यादें न हों तो व्यक्ति
विशुद्ध पाषाण बनकर ही रह जाये. यदि वाकई इन्सान अपनी स्थितियों से, अपने समय से,
अपने गुजरे हुए पल से कुछ न कुछ सीखने की इच्छा रखता है तो यादों से, स्मृतियों से
बेहतर कोई शिक्षक उसे मिल नहीं सकता है. ये यादें व्यक्ति में ऊर्जा का संचार करती
हुई आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं. हाँ, यहाँ व्यक्ति का सकारात्मक सोच रखना,
स्वस्थ मानसिकता का होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है. उसे समझना चाहिए कि अतीत
में अब जाया नहीं जा सकता, उसे घसीट कर वर्तमान में लाया नहीं जा सकता, जो हो चूका
है उसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. ऐसे में यादों की खुशगवार
स्थिति से आज को खुश बनाया जाना चाहिए. उन्हीं यादों में कुछ ऐसा है जो दर्द देता
है, आँसू देता है, कष्ट देता है तो उनसे भी सीखने की कोशिश करनी चाहिए. उन्हें भी
अपनी थाती समझकर संभालना चाहिए, न कि उनसे सिर्फ दुखी बने रहना चाहिए.
यादों के इस उपवन में टहलते
हुए कई बार सुगन्धित पुष्प व्यक्ति को महकाएगा. कोई सुन्दर सा पक्षी किसी सुहाने
गीत के द्वारा मुग्ध करेगा. कोई काँटेनुमा याद एक पल को चुभकर आँखों में आँसू भी
लाएगी. ये सब स्मृति-वन के नज़ारे हैं. यादों के उपवन में सैर करने से मिले अनुभव
हैं. मन के साथ उड़कर यहाँ पहुँचना आसान होता है. यहाँ आकर दिल-दिमाग को संतुलित
रखते हुए, दोनों में सामंजस्य बनाये रखते हुए इस स्मृति-उपवन का आनंद लेना चाहिए. दिल
को भटकने नहीं देना चाहिए, दिमाग को परेशान नहीं करना चाहिए बस यादों के सुहाने
झोंकों में बहते, सराबोर होते हुए अतीत के उस पल में विचरण कर आना चाहिए जहाँ किसी
समय खुद टहला करते थे.
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