09 दिसंबर 2018

भ्रष्ट बन रोको भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार भरे समाज में सभी लोग परेशान हैं कि देश में भ्रष्टाचार नहीं रुक रहा है. इसको रोकने के उपाय खोजे जा रहे हैं पर सबके सब नाकाम से दिखाई दे रहे हैं. नाकामी इसलिए भी है क्योंकि भ्रष्टाचार को लेकर, भ्रष्टाचार करने वालों को लेकर सवाल उठता है कि किसे भ्रष्ट कहेंगे और किसे नहीं? एक छोटा सा उदाहरण कि आपका कोई काम है और वह मात्र इस कारण से टल रहा है कि आपने उसको करने वाले को मात्र 500 रुपये नहीं दिये. अब आप परेशान हैं कि काम नहीं हो रहा है और दूसरे आपको टोकेगे कि आप बड़े मूर्ख हैं जो मात्र 500 रुपये में अपने काम को लटकाये पड़े हैं. इसी तरह कोई अपना बड़े से बड़ा काम भी कुछ पैसों की दम पर करवा लेता है तो ऐसे ताल ठोंकता है जैसे उसने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो. वैसे आज के जमाने में पैसे देकर भी अपना काम करवा लेना तीर मारने से कम नहीं है. अब ऐसे में उसकी तारीफ हो रही है जो पैसे देकर काम करवा लाया और पैसे ने दे पाने के कारण काम रुकवाए व्यक्ति को बेवकूफ बताया जा रहा है. 


ऐसे में कोई भ्रष्टाचार को कहाँ और कैसे रोकेगा? कभी-कभी समाचार सुनने को मिलता है कि फलां व्यक्ति रिश्वत लेते पकड़ गया. इस पर एक पल को सभी की राय बनती है कि अपने अधिकारियों को नहीं खिला रहा होगा. आज हालत ये है कि पग-पग पर भ्रष्टाचार है. समस्या इसके समाप्त करने को लेकर है. इसके बाद भी देखा जाये तो हम लोग ही इसको रोकने के लिए काम नहीं कर रहे हैं. हमारा जहाँ जैसा हाथ चलता है हम भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं. भ्रष्टाचार-इसका सीधा सा तात्पर्य है कि भ्रष्ट आचरण करने वाला. हम छोटे स्तर पर सक्षम होते हैं तो वहाँ भ्रष्टाचार कर लेते हैं. रेलवे का साधारण श्रेणी का टिकट लिया और जा बैठे स्लीपर में, एसी में. अब टिकट चेकर के आने पर कुछ छोटी सा मुद्रा उसके हाथ में थमा दी, और आराम से पैर फैला कर यात्रा शुरू. क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?

भ्रष्टाचार को समाप्त करने में सबसे बड़ी बाधा है समाज के कुछ लोगों का पूरी तरह से भ्रष्ट न हो पाना. जी हाँ, आपको ये बात बड़ी अजीब लग रही होगी पर सत्य यही है. जब तक समाज में एक आदमी भी भ्रष्टाचार से मुक्त है तब तक भ्रष्टाचार को रोक पाना सम्भव नहीं. असल में यह एक प्रक्रिया है और इसमें सभी का शामिल होना जरूरी है. मान लीजिए कि सभी लोग भ्रष्ट हो गये हैं तब....? तब आपने कोई करवाने का कुछ पैसा लिया, अब आप किसी काम को करवाने गये और उसने भी पैसा लिया. वह अपने किसी काम से कहीं जाये और उसे भी पैसा देना पड़े. यह क्रम सभी के साथ चलता रहे. सब पैसा कमा भी पा रहे हैं किन्तु देना भी पड़ रहा है. कहीं कम कहीं ज्यादा, परिणामतः किसी के भ्रष्ट होने से मात्र उसे ही लाभ नहीं हो पा रहा है. इससे सम्भावना है कि भ्रष्टाचार रुके क्योंकि तब उसके द्वारा कमाया गया भ्रष्ट या ऊपरी धन भ्रष्टाचार में, ऊपरी धन के रूप में ही खर्च होए लगेगा.

वैसे भी यह सब आपसी सहमति का मामला बनता है तो इसे भी समलैंगिकता की तरह से कानूनी स्वरूप दे दिया जाये? आपसी सहमति! जब तक नहीं रुक रहा तब तक इसे भी राष्ट्रीय सम्पदा मान कर पोषित, पल्लवित करते रहिये. खुद भी नोंचिये और दूसरों को भी नोचते रहिये. साथ में बोलिये जय भ्रष्टाचार.

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