होमी व्यारावाला, यह नाम बहुत से लोगों के लिए
अनजाना, अपरिचित होगा. वास्तव में यह ऐसा नाम है, जिसके बारे में बहुत ज्यादा
चर्चा नहीं हुई है. होमी व्यरावाला को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार माना
जाता है. अपने क्षेत्र में वे अपने लोकप्रिय उपनाम डालडा 13 से जानी जाती रही हैं. उनके इस नाम के पीछे एक रोचक कहानी जुड़ी हुई है. उनका
जन्म 1913 में हुआ. अपने होने वाले पति से उनकी पहली मुलाकात 13 वर्ष की उम्र में हुई.
उनकी पहली कार का नंबर डी०एल०डी० 13 था. 13 के इस संयोग और
कार नंबर के DLD ने उनको डालडा 13 का उपनाम प्रदान करवा दिया. उनके ज्यादातर चित्र उनके इसी उपनाम के साथ ही
प्रकाशित हुए. उनका जन्म 13 दिसम्बर 1913 को गुजरात के नवसारी में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता पारसी उर्दू
थियेटर में अभिनेता थे. मुंबई में आरम्भिक जीवन गुजारने के दौरान उनको फोटोग्राफी
का शौक अपने मित्र मानेकशॉ व्यारावाला से मिला, कालांतर में उनका आपस में विवाह हो
गया. मानेकशॉ टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छायाकार के रूप में काम किया करते थे. जे०जे० स्कूल
ऑफ आर्ट से फोटोग्राफी की बारीकियाँ सीखने के बाद होमी की पहली तस्वीर बॉम्बे क्रॉनिकल
में प्रकाशित हुई. यहाँ उनके प्रत्येक चित्र
के लिए बतौर पारिश्रमिक एक रुपया प्राप्त होता था. विवाह पश्चात् वे वह अपने पति के
साथ दिल्ली आ गईं. यहाँ उन्होंने ब्रिटिश सूचना सेवा के कर्मचारी के रूप में स्वतंत्रता
आंदोलन के दौरान चित्र लेने का काम शुरू किया.
द्वितीय
विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया मैगजीन के लिए कार्य करना
शुरू किया. उनके कई फोटोग्राफ टाइम, लाइफ, दि ब्लैक स्टार तथा कई अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशनों में फोटो-कहानियों के
रूप में प्रकाशित हुए. दिल्ली आते ही होमी को अपने काम को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
मिलनी शुरू हो गई. सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की उतारी गईं उनकी कई तस्वीरें चर्चा
में रहीं. बाद के दिनों में उनके छायांकन के प्रिय विषय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
के रूप में जवाहर लाल नेहरू रहे. सिगरेट पीते हुए जवाहरलाल नेहरू और साथ ही भारत में
तत्कालीन ब्रिटिश उच्चायुक्त की पत्नी सुश्री सिमोन की मदद करते हुए उनके द्वारा
निकाली गई तस्वीर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की एक अलग ही छवि दर्शाती है.
उन्होंने
अपनी तस्वीरों के माध्यम से देश के तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक जीवन को दर्शाया
था. अगस्त 1947 को लाल किले पर पहली बार फहराये गये झंडे,
भारत से लॉर्ड माउन्टबेटन के प्रस्थान, महात्मा
गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा
के छायाचित्र भी उनके द्वारा लिए गए थे. वे सादा माध्यम (ब्लैक एंड व्हाइट) को वरीयता
देती थीं. दिन की रौशनी के दौरान, लो-एंगल शॉट तथा छवियों के
विस्तार के लिए बैक लाइट का उपयोग करती थीं. ऐसा करने के पीछे विषय-वस्तु की गहराई
तथा ऊँचाई को स्पष्टता से दर्शाना रहता था.
गूगल द्वारा उनके 104वें जन्मदिन पर बनाया गया डूडल |
सन
1970 में अपने पति की मृत्य के बाद होमी व्यारावाला ने अचानक अपने पेशे से संन्यास
ले लिया और दिल्ली छोड़कर वडोदरा आ गईं. बाद के लगभग 40 साल उन्होंने कैमरे से एक भी
चित्र नहीं खींचा. इसकी वजह उन्होंने नई पीढ़ी के छायाकारों के बुरे बर्ताव को बताया.
जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उनका कहना था कि अब इसका कोई औचित्य नहीं रह गया था.
हमारी पीढ़ी के पास छायाकारों के लिए कुछ उसूल थे. यहां तक कि हम लोगों ने अपने लिए
एक ड्रेसकोड का भी पालन किया. हमने एक दूसरे को सहकर्मी के रूप में सहयोग और सम्मान
दिया, लेकिन अचानक सब कुछ बुरी तरह से बदल गया. नई पीढ़ी जिस किसी भी प्रकार से पैसे
कमाने के पीछे पड़ी थी, मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी. सन 1982
में वे अपने बेटे फारूख के पास पिलानी आ गईं. फारूख पिलानी के बिड़ला
प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) में अध्यापन कार्य करते थे. सन 1989
में कैंसर से उनके देहांत के बाद होमी एक बार फिर अकेली हो गईं और
जीवनपर्यंत वडोदरा के एक छोटे से घर में रहीं. उनका निधन 15 जनवरी 2012 को हुआ. अपने
अंतिम दिनों में उन्होंने अपने चित्रों का संग्रह दिल्ली स्थित अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ
आर्ट्स को दान कर दिया. सन 2010 में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय,
मुंबई ने अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स के साथ मिलकर उनके छायाचित्रों
की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया. उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए सन 2011 में
उन्हें नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
आज
उनके जन्मदिन पर उन्हें सादर श्रद्धांजलि.
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