ये उन दिनों
की बात है जबकि
दिल था नादाँ.
तितली बन
उड़ता रहता था
दिन औ रात.
परियों संग
सैर आसमान की
मज़ेदार सी.
नहीं थी चिंता
कल की और न था
डर आज का.
छोटी मगर
दुनिया थी हसीन
यार-दोस्तों की.
ये उन दिनों
की बात है जबकि
तुम मिले थे.
एहसास था
वो अपनेपन का
कुछ मीठा सा.
ख़ामोश लफ़्ज़
दिल से दिल तक
राह बनाते.
बस गए थे
मुझ में तुम ऐसे
ज्यों धड़कन.
नहीं था पता
बदलेगा ख़्वाब में
ये अफ़साना.
++
कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
03-12-2018
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