13 दिसम्बर की तारीख शायद
कोई नहीं भूला होगा, जबकि संसद पर आतंकी हमला हुआ था. हमला करने वाले आतंकी मारे
गए, हमले को नाकाम करने वाले सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए और लोकतंत्र का मंदिर कहे
कहे जाने वाले संसद भवन को बचा लिया गया. देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर,
सुरक्षा व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगने से बचा लिया गया. इसके बाद भी सवाल
उठता है कि आखिर कहाँ चूक हुई कि संसद भवन के आसपास भी हथियारबंद आतंकी घुसने में,
हमला करने में, गोलीबारी करने में सफल हो गए. वो आतंकी हमला अभी तक का पहला और
आखिरी हमला था, जो बाहर से हुआ और उससे निपट भी लिया गया किन्तु उसके बाद भी संसद
में आंतरिक हमले लगातार हो रहे हैं और इनसे निपटने के उपाय सहज रूप में दिखाई नहीं
दे रहे हैं. हो सकता है कि आपको ये पढ़कर आश्चर्य लगे किन्तु ये सत्य है अपने
आपमें.
आप खुद गौर करिए, विगत कई वर्षों से संसद
में उसके सत्रों के दौरान काम कम हुआ है और सदन की कार्यवाही स्थगित ज्यादा हुई
है. वर्तमान सत्र का ही उदाहरण लिया जाये तो पहले दिन का सदन दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि
देने के साथ अगले दिन के लिए टाल दिया गया. अब दूसरे दिन कार्यवाही शुरू होते ही
सदस्यों का हंगामा शुरू हुआ और फिर सदन को स्थगित करना पड़ा. मामला राफेल विमान
सौदे से जुड़ा हुआ था. विमान सौदे की सत्यता क्या है ये खरीदने-बेचने वाले जानें
मगर जिस तरह से विपक्षी दलों द्वारा इस पर राजनीति की जा रही है, सदन के अन्दर
क्रियाविधि की जा रही है वह कतई उचित नहीं समझ आती. ये एक बिंदु या मुद्दा मात्र
है जिसको लेकर विपक्षी हंगामा करने में लगे हैं. इसके अलावा और भी तमाम मुद्दे
हैं, विधेयक हैं जिन पर चर्चा होनी है मगर यह सभी को भली-भांति मालूम है कि उन पर
चर्चा से ज्यादा, बहस से ज्यादा शोरगुल होना है, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किया
जाना है.
सदन में पहले भी हंगामे होते रहे हैं,
पहले भी समय बर्बाद होता रहा है लेकिन किसी भी सत्र में इस पर विचार नहीं किया गया
कि कैसे सदन के समय को बचाया जाये, कैसे देश का धन अपव्यय होने से बचाया जाये.
देखा जाये तो यह भी किसी हमले से कम नहीं कहा जायेगा. संसद देश की नीतियां बनाने
के लिए, देशहित में विधेयक बनाने के लिए कार्य करता है, इसकी पल-पल की कार्यवाही
में जबरदस्त धन खर्च होता है इसके बाद भी सदन की कार्यवाही के प्रति लापरवाही देश
के समय, धन की बर्बादी है. साफ़ सी बात है जो लोग भी देश का समय, धन, शक्ति बर्बाद
करने में पीछे नहीं रहते हैं वे किसी न किसी रूप में सदन पर हमला ही कर रहे हैं.
आवश्यक नहीं कि हर हमले में किसी की जान जाए. आवश्यक नहीं कि बम, गोलियों की आवाज
को ही हमला कहा जाये. जरूरी नहीं कि जब तक आतंकी किसी तरह का नुकसान न पहुंचाएं तब
तक उसे हमला नहीं कहा जायेगा. असल में जिस तरह की गतिविधियाँ विगत कई वर्षों से
सदन में होती आ रही हैं वे धन, समय पर हमला तो हैं ही उसके साथ-साथ देश की
अस्मिता, नागरिकों के हितों, राष्ट्रनीतियों पर हमला कहा जायेगा. जनप्रतिनिधियों
को इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.
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