सम्मान-पुरस्कार की लालसा आखिर किस
स्थिति तक लोगों को गिरा सकती है, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है. समाज में
बहुतेरे लोग ऐसे हैं जिनका नाम उनको मिलने वाले किसी भी सम्मान-पुरस्कार से कहीं
बड़ा होता है या कहें कि बड़ा हो चुका है, इसके बाद भी वे लोग लगातार किसी न किसी
सम्मान-पुरस्कार के लिए जोड़-तोड़ में संलिप्त हो जाते हैं. ऐसे लोग जिन्हें
राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त सम्मान मिल चुका हो, ऐसा व्यक्ति जो राष्ट्रीय स्तर के
संगठन का अध्यक्ष रह चुका हो, ऐसा व्यक्ति जो संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति
को अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम में आमंत्रित-सम्मानित कर चुका हो, वह किसी जिले स्तर
के कार्यक्रम में खुद को सम्मानित करवाने के लिए लगातार लालायित दिखाई दे तो यह उन
नवोदितों के लिए शर्म का विषय है जो ऐसे व्यक्तियों को अपना आदर्श मानने लगे हों. असल
में ऐसे लोगों को मालूम ही नहीं कि उनका इस तरह का कदम उनकी प्रस्थिति को बढ़ा नहीं
रहा, उनके सम्मान में बढ़ोत्तरी नहीं कर रहा बल्कि उसमें गिरावट ही ला रहा है. इसके
साथ-साथ उन नवोदितों के मन में भी उनके प्रति अनादर का भाव जगा रहा है जो उनको
आदर्श मानते हुए जमीनी स्तर पर कार्य करने को तत्पर रहते हैं.
ये समझने वाली बात है कि प्रत्येक
व्यक्ति का किसी भी जगह, स्थान के अनुसार एक विशेष कालखंड होता है, यदि वह उसके
बाद भी उसी जगह, उसी स्थान पर बना हुआ है तो उसके सम्मान में कमी आने लगती है.
इसका सीधा सा कारण है कि उसके बाद की पीढ़ी उसका अनुसरण करते हुए, उसको आदर्श मानते
हुए आगे बढ़ने का प्रयास कर रही होती है. इसके साथ-साथ उस प्रसिद्द व्यक्ति की छवि
कहीं न कहीं इसमें बाधक बनती है. इसके अलावा सम्बंधित जगह के लोगों में उस व्यक्ति
के कार्यों, उसकी छवि को लेकर एक तरह की पूर्णता दिखाई देने लगती है. इससे भी उसकी
छवि को धक्का सा लगता है. यहाँ ऐसे लोगों को अपनी राह छोड़कर आने वाले के लिए राह
का निर्माण करना चाहिए. यदि सम्बंधित व्यक्ति ऐसा कर पाता है तभी वह सफल हो पाता
है. अन्यथा की स्थिति में राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों के साथ जिला-तहसील स्तर के
सम्मान अवश्य ही गौरवान्वित महसूस कर रहे होते हैं मगर सम्मानित करने वाली संस्था
और उस व्यक्ति को आदर्श मानने वाले लोग उसका मजाक बना रहे होते हैं.
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