लम्बे समय से भारतीय राजनीति में चर्चित
रहा राफेल विमान सौदा मामला आख़िरकार सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा एक तरफ से समाप्त
कर दिया गया. तीन न्यायाधीशों की बेंच द्वारा 14 नवम्बर को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. इसे आज, 14
दिसम्बर को सुनाया गया. न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से कहा गया कि
राफेल विमान सौदे में किसी तरह की कमी नहीं है. इस मामले में केंद्र सरकार की नीयत
पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि वर्तमान में
वायु सेना को इन विमानों की आवश्यकता भी है. ज्ञात हो कि देश ने लगभग 58,000 करोड़ रूपए की कीमत पर 36 राफेल विमान खरीदने के लिये फ्रांस के साथ समझौता
किया है ताकि भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में सुधार किया जा सके. इस सौदे को
लेकर विपक्षी दलों में विशेष रूप से कांग्रेस द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किये
जाते रहे. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी द्वारा अनेकानेक बार
सार्वजनिक रूप से और सदन में भी इस मामले को उठाया जाता रहा है. उनके द्वारा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर घोटाला किये जाने का आरोप लगाया गया.
असल में भारतीय वायुसेना की क्षमता
लगातार कम होती जा रही थी. इसलिए वायुसेना द्वारा मांग किये जाने पर अटल बिहारी वाजपेयी
की एनडीए सरकार ने 126 लड़ाकू विमान खरीदने का प्रस्ताव रखा. कालांतर में उनके इस प्रस्ताव
को उनके बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने आगे बढ़ाया. तत्कालीन रक्षा मंत्री एके
एंटोनी की अगुआई में रक्षा खरीद परिषद ने 126 एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी अगस्तर
2007 में दी. इसके बाद बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई. यूपीए सरकार में इस सौदे पर
आपसी सहमति न बन पाने के कारण समझौता न हो सका. इसके पीछे मूल कारण टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध का पैदा हो जाना रहा था. इस मामले में
दोबारा सक्रियता उस समय शुरू हुई जबकि सन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार का गठन हुआ. प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में भारत और फ्रांस के बीच राफेल
विमान की खरीद को लेकर समझौता किया गया. इस मामले में विवाद इसी के बाद शुरू हुआ.
वर्तमान केंद्र सरकार का कहना है कि उसने इस समझौते के बाद विमान खरीद में लगभग 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं. इस बीच मीडिया में आई खबरों के द्वारा यह तथ्य
सामने आता रहा कि यह पूरा सौदा 7.8 अरब रुपये यानी 58,000 करोड़
रुपये का हुआ है और इसकी 15 फीसदी लागत एडवांस में दी जा रही है. इसे लेकर
कांग्रेस सहित अन्य विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हो गया. उनका कहना है कि पूर्व की
यूपीए सरकार 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी
जबकि वर्तमान मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़
दे रही है. कीमत के इस विवाद के अलावा विपक्षियों का एक आरोप यह भी है कि वर्तमान
केंद्र सरकार ने इस खरीद में देश की प्रमुख कंपनी एचएएल को किनारे लगाकर एक निजी
कंपनी को वरीयता दी. इससे न केवल निजी कंपनी को लाभ पहुँचाया गया वरन एचएएल को भी
करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है.
लगातार बढ़ते विवाद के बीच सर्वोच्च
न्यायालय को बीच में लाया गया. अब जबकि न्यायालय द्वारा निर्णय वर्तमान केंद्र
सरकार के पक्ष में आया है तब देश के सामने लगातार तथ्यात्मक झूठ बोलने के कारण
विपक्षी दल और नेता क्या कदम उठाएंगे. ये कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि देश
की सुरक्षा के लिए, वायुसेना की ताकत बढ़ाने की दृष्टि से खरीदे जाने वाले विमानों
पर भी राजनीति की जाने लगी. एक पल को ये स्वीकार भी कर लिया जाये कि वर्तमान
केंद्र सरकार द्वारा कीमतों को लेकर किसी तरह से घोटाला किया गया और बारबार
विपक्षी दलों के कहने के बाद भी समझौते से सम्बंधित दस्तावेज, कीमतों से सम्बंधित
तथ्य सार्वजनिक नहीं किये तो खुद विपक्षियों को तत्कालीन कीमतों और अन्य दस्तावेजों
को सार्वजनिक करते हुए वर्तमान केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाये जाने चाहिए थे.
यह तो पूरे देश ने देखा था जबकि सदन में कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा फ़्रांस के
राष्ट्राध्यक्ष की कथित मुलाकात, बातचीत का हवाला दिया गया था. उसके तुरंत बाद इस
मामले के तूल पकड़ने पर दोनों देशों की तरफ से सम्बंधित बिंदु पर सफाई सार्वजनिक
रूप से प्रकट की गई थी. ऐसे में स्पष्ट है कि केंद्र सरकार विरोधियों के पास, मोदी
विरोधियों के पास राफेल विमान सौदे को लेकर किसी तरह के तथ्य अथवा प्रामाणिक
जानकारी नहीं थी. वे महज राजनीति के लिए इस मुद्दे को हवा देकर प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की छवि को धूमिल करना चाह रहे थे. इस पूरे प्रकरण का लाभ उनके
द्वारा हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में भी उठाये जाने की मंशा रही होगी.
बहरहाल, अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में अपना निर्णय सुना दिया गया
है तब समूचे देश के सामने लगातार झूठ बोलने के लिए राहुल गाँधी को और अन्य नेताओं
को माफ़ी माँगनी चाहिए.
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