पांच राज्यों के विधानसभा नतीजे सामने आ
चुके हैं. प्रमुख तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा को हार
का सामना करना पड़ा है. इस हार के साथ गैर-भाजपाई दलों के लिए ईवीएम निष्कलंक हो गई
है. साथ ही साथ निर्वाचन आयोग भी निष्पक्ष हो गया है. चुनाव परिणाम क्यों ऐसे आये,
उनके पीछे के कारण क्या रहे ये एक अलग विषय है. इसके अलावा ईवीएम एक विषय अवश्य है
कि जब भाजपा जीतती है तो वहाँ ईवीएम हैक कर ली जाती है और जहाँ भाजपा की हार हो
जाती है, कोई विपक्षी दल विजयी हो जाता है तो वहाँ से ईवीएम खराबी की, उसके हैक
करने की कोई खबर नहीं आती. वर्तमान चुनावों में ही सामने आया, जिन तीन राज्यों में
कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त बनाई तो वहाँ ईवीएम सही रही, उस पर कोई सवालिया निगाह
नहीं उठाई गई किन्तु जिस राज्य से कांग्रेस का सफाया हुआ वहीं के लिए ईवीएम हैक
किये जाने की शिकायत कर दी गई. सोचा जा सकता है कि राजनीति किस स्तर तक ले जाना
चाहते हैं ये पढ़े-लिखे राजनीतिज्ञ?
चुनावों में मतदान के बाद सोशल मीडिया पर
वीडियो आये, खबरें आईं, चित्र भी सामने आये जिनमें दिखाया गया कि कोई पत्रकार होटल
में ईवीएम लिए बैठा है. कहीं दिखाया गया कि सड़क पर सीलबंद ईवीएम पड़ी हुई है. कहीं
से खबर आई कि किसी इंजीनियर को, कही किसी चुनाव अधिकारी को ईवीएम मशीन के साथ पकड़ा
गया, देखा गया. आखिर इस तरह की भ्रामक खबरों के प्रचार के निहितार्थ क्या हैं?
ईवीएम को उसी स्थिति में ख़राब बताने का, हैक किये जाने का प्रचालन क्यों है जबकि
भाजपा के जीतने की सम्भावना होती है? इन चुनावों में भाजपा के विरोध में पर्याप्त
माहौल बनाया जा चुका था. खुद भाजपा की तरफ से भी ऐसे कदम उठाये गए जिन्होंने भाजपा
को एक कदम पीछे आने के संकेत दिए थे. इसके बाद भी विरोधी कहीं भी ईवीएम से छेड़छाड़
किये जाने का अंदेशा दिखाने से नहीं चूक रहे थे. उनके प्रचार में नियमित रूप से
ईवीएम के प्रति संदेह व्यक्त किया जाता रहा. अब जबकि कांग्रेस तीन राज्यों में
भाजपा से आगे है तब वहाँ से ईवीएम ख़राब होने, उसके संदिग्ध होने की कोई शिकायत,
कोई खबर नहीं आई है.
सोचने वाली बात है कि इक्कीसवीं सदी में
लगभग दो दशक की यात्रा करने के बाद भी देश का लोकतंत्र अभी भी मसखरी राजनीति का
शिकार बना हुआ है. आज भी यहाँ शीर्ष राजनैतिक व्यक्तित्व मसखरी करते हुए तथ्यों से,
आँकड़ों से खिलवाड़ करते हुए मतदाताओं को बेवकूफ बनाने में लगे रहते हैं. इक्कीसवीं
सदी का मतदाता, जिसे जागरूक कहकर पुकारा जाने लगा है, वह भी सहजता से इस मसखरी का
शिकार बनता हुआ खुद ही हँसी का पात्र बन रहा है. जहाँ स्वार्थ भरा एक कदम किसी दल
को आगे खड़ा कर देता है, कहीं एक वस्तु का लालच उस व्यक्ति को सबसे आगे ला देता है,
जहाँ जिसे चोर बताते थका नहीं जाता है उसी के हाथों में अपना भविष्य सौंप दिया
जाता है. ऐसे में समझने का विषय है कि अभी देश के लोकतंत्र को परिपक्व होने में
दशकों लगेंगे. फ़िलहाल खुश होइए कि ईवीएम निष्कलंक साबित हुई इन चुनावों में.
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 13 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1245 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
सेंगर साहब, ईवीएम को हैक करना असम्भव नहीं है. पहले कभी बीजेपी, इसकी विश्ववसनीयता पर सवाल उठा चुकी है. पचासों जगह इस में गड़बड़ी की खबरे आ चुकी हैं. तकनीकी दृष्टि से भारत से कहीं अधिक विकसित अनेक पाश्चात्य देश, बैलट पेपर और बैलट बॉक्स वाली व्यवस्था पर वापस आ चुके हैं. वैसे राजस्थान में सबका अनुमान था कि सत्ताधारी पार्टी 25-30 के अन्दर निपट हैगी पर यह आंकड़ा 70 से ऊपर चला गया है. कौन जाने कि कब क्या, कहाँ और कैसे हुआ.
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