प्रेम शब्द जितना गलत समझा जाता है, उतना शायद मनुष्य की भाषा
में कोई दूसरा शब्द नहीं! प्रेम के संबंध में जो गलत-समझी है, उसका ही विराट रूप इस जगत के सारे उपद्रव, हिंसा,
कलह, द्वंद्व और संघर्ष हैं. प्रेम की बात इसलिए
थोड़ी ठीक से समझ लेनी जरूरी है. जैसा हम जीवन जीते हैं, प्रत्येक
को यह अनुभव होता होगा कि शायद जीवन के केंद्र में प्रेम की आकांक्षा और प्रेम की प्यास
और प्रेम की प्रार्थना है. जीवन का केंद्र अगर खोजना हो, तो प्रेम
के अतिरिक्त और कोई केंद्र नहीं मिल सकता है.
समस्त जीवन के केंद्र में एक ही प्यास है, एक ही प्रार्थना है,
एक ही अभीप्सा है--वह अभीप्सा प्रेम की है. और वही अभीप्सा असफल हो जाती
हो तो जीवन व्यर्थ दिखायी पड़ने लगे--अर्थहीन, मीनिंगलेस,
फस्ट्रेशन मालूम पड़े, विफलता मालूम पड़े,
चिंता मालूम पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं है. जीवन की केंद्रीय प्यास ही
सफल नहीं हो पाती है! न तो हम प्रेम दे पाते हैं और न उपलब्ध कर पाते हैं. और प्रेम
जब असफल रह जाता है, प्रेम का बीज जब अंकुरित नहीं हो पाता,
तो सारा जीवन व्यर्थ-व्यर्थ, असार-असार मालूम होने
लगता है. जब प्रेम सफल होता है, तो जीवन सार बन जाता है. प्रेम
विफल होता है तो जीवन प्रयोजनहीन मालूम होने लगता है. प्रेम सफल होता है, जीवन एक सार्थक, कृतार्थता और धन्यता में परिणित हो जाता
है. लेकिन यह प्रेम है क्या? यह प्रेम की अभीप्सा क्या है?
यह प्रेम की पागल प्यास क्या है? कौन-सी बात है,
जो प्रेम के नाम से हम चाहते हैं और नहीं उपलब्ध कर पाते हैं?
प्रेम की आकांक्षा--एक हो जाने की, समस्त के साथ एक हो जाने
की आकांक्षा है. प्रेम की आकांक्षा समस्त जीवन के साथ एक हो जाने की प्यास और प्रार्थना
है. प्रेम का मौलिक भाव एकता खोजना है. आज तक मनुष्य-जाति शरीर के तल पर एकता और प्रेम
को खोजती रही है, इसलिए जगत में प्रेम जैसी घटना घटित नहीं हो
पायी. जैसा मैंने आपसे कहा, यह जो पजेशन और मालकियत की चेष्टा चलती है, स्वभावतः
उसके आसपास ईर्ष्या का जन्म होगा. जहां मालकियत है, वहाँ ईर्ष्या
है. जहाँ पजेशन है, वहाँ जेलसी है. इसलिए प्रेम के फूल के आसपास
ईर्ष्या के बहुत कांटे, बहुत बागुड़ खड़े हो जाते हैं और ईर्ष्या
की आग के बीच प्रेम कुम्हला जाता हो, तो आश्चर्य नहीं. जहाँ ईर्ष्या
है, वहाँ प्रेम संभव नहीं है. जहाँ प्रेम है, वहाँ ईर्ष्या संभव नहीं है.
स्मरण रहे, प्रेम, मैंने कहा, एक हो जाने की आकांक्षा है. और एक वही हो सकता है, जो
मिटने को राजी हो. जो मिटने को राजी नहीं होता, उसके लिए दूसरी
दिशा खुल जाती है. वह अहंकार की दिशा है. तब वह अपने को बनाने को, मजबूत करने को, पुष्ट करने को, ज्यादा सख्त अपने आसपास दीवाल उठाने को, किला बनाने को
उत्सुक हो जाता है! अपने मैं को मजबूत करने की यात्रा में संलग्न हो
जाता है. प्रेम असफल होता है, क्योंकि हम शरीर के तल पर खोजते
हैं. प्रेम शरीर के तल पर नहीं, चेतना के तल पर घटने वाली घटना है.
शरीर के तल पर जब प्रेम को हम घटाने की कोशिश करते हैं, तो प्रेम आब्जेक्टिव हो जाता है. कोई पात्र होता है प्रेम का, उसकी तरफ हम प्रेम को बहाने की कोशिश करते हैं. वहां से प्रेम वापस लौट आता
है, क्योंकि पात्र शरीर होता है, जो दिखायी
पड़ता है, जो स्पर्श में आता है. लेकिन प्रेम को अगर आत्मिक घटना
बनानी है, अगर प्रेम की कांशसनेस बनाना है, चेतना बनाना है तो प्रेम आब्जेक्टिव नहीं रह जाता, सब्जेक्टिव
हो जाता है. तब प्रेम एक संबंध नहीं, चित्त की एक दशा है,
स्टेट आफ माइंड है.
जब तक आप प्रेम को एक संबंध समझते रहेंगे, एक रिलेशनशिप, तब तक आप असली प्रेम को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे. संबंध की भाषा में नहीं,
किससे प्रेम नहीं; मेरा प्रेमपूर्ण होना है. मेरा
प्रेमपूर्ण होना अकारण, असंबंधित, चौबीस
घंटे मेरा प्रेमपूर्ण होना है. किसी से बंधकर नहीं, किसी से जुड़कर
नहीं, मेरा अपने आपमें प्रेमपूर्ण होना हैं. यह प्रेम मेरा स्वभाव,
मेरी श्वास बने. श्वास आये, जाये, ऐसा मेरा प्रेम--चौबीस घंटे सोते, जागते, उठते हर हालत में. मेरा जीवन प्रेम की भाव-दशा, एक लविंग
एटिटयूड, एक सुगंध, जैसे फूल से सुगंध गिरती
है. प्रेम भी आपका स्वभाव बने--उठते, बैठते, सोते, जागते; अकेले में,
भीड़ में, वह बरसता रहे फूल की सुगंध की तरह,
दीये की रोशनी की तरह, तो प्रेम प्रार्थना बन जाता
है, तो प्रेम प्रभु तक ले जाने का मार्ग बन जाता है, तो प्रेम जोड़ देता है समस्त से, सबसे, अनंत से. एकांत में प्रेमपूर्ण होने का प्रयोग करें, खोजें, टटोलें अपने भीतर. हो जायेगा, होता है, हो सकता है. जरा भी कठिनाई नहीं है. कभी प्रयोग
ही नहीं किया उस दिशा में, इसलिए ख्याल में बात नहीं आ पायी है.
निर्जन में भी फूल खिलते हैं और सुगंध फैला देते हैं. निर्जन में, एकांत में प्रेम की सुगंध को पकड़ें. जब एक बार एकांत में प्रेम की सुगंध पकड़
जायेगी तो आपको खयाल आ जायेगा कि प्रेम कोई रिलेशनशिप नहीं, कोई
संबंध नहीं.
प्रेम स्टेट ऑफ़ माइंड है, स्टेट ऑफ़ कांशसनेस है,
चेतना की एक अवस्था है.
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ओशो के 'प्रेम, सम्बन्ध नहीं है' से साभार... पूरे आलेख को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
ओशो के जन्मदिन, 11 दिसम्बर पर श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित...
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