विश्वास
एक ऐसा शब्द है जो बड़ी मुश्किल से पैदा हो पाता है. चाहे व्यक्ति हो या फिर कोई
जानवर, सभी के लिए विश्वास का होना, सभी में विश्वास का होना आवश्यक होता है. समाज
में बिना विश्वास के एक पल भी व्यक्ति का टिक पाना संभव नहीं होता है. आपसी
व्यवहार में दोस्ती, सम्बन्ध आदि के बीच विश्वास का अपना ही महत्त्व है. विश्वास
महज एक-दो मुलाकातों का, चंद पलों की दोस्ती का, कुछ समय के संबंधों का प्रतिफल
नहीं है वरन इसके पीछे व्यक्ति की मानसिकता, उसकी कार्यशैली, उसकी सोच, उसके
व्यवहार की बहुत बड़ी भूमिका होती है. किसी व्यक्ति के प्रति सामने वाले का कैसा
व्यवहार रहता है, उसकी भूमिका और व्यक्तित्व को वह कैसे विश्लेषित करता है, इसके
आधार पर ही विश्वास जन्मता है.
असल
में विश्वास एक भावना है, एक तरह का आवरण होता है जिसके माध्यम से व्यक्ति स्वयं
को सुरक्षित भी समझता है, सहज भी समझता है. विश्वास के चलते ही कोई व्यक्ति किसी
अन्य के साथ अपनी बात कहने में अपनी समस्या बताने में, अपना सुख शेयर करने में,
अपनी ख़ुशी बाँटने में सबसे आगे रहता है. ये विश्वास ही है जिसके कारण व्यक्ति अपने
आपको अकेला नहीं पाता है. यही विश्वास है जो समाज में आपस में संबंधों का विस्तार
करता है, संबंधों की, रिश्तों की सुरक्षा करता है. इसके बाद भी कई बार स्वार्थ के चलते
अनेकानेक लोग आपसी संबंधों में विश्वासघात कर बैठते हैं. ऐसा करने के पीछे उनकी
मानसिकता सिर्फ और सिर्फ अपना लाभ लेने की होती है. वे एक पल को भी ये याद नहीं
रखते हैं कि उनके इस कदम से सामने वाले के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा. वर्तमान में
जिस तरह के हालात बनते चले जा रहे हैं उससे लोगों में आपसी विश्वास में जबरदस्त
तरीके से कमी आई है. आज हालत ये है कि लोग आपसी सगे रक्त-संबंधियों के बीच भी
अविश्वास बनाने लगे हैं. कतिपय स्वार्थी लोगों के कारण सभी को अविश्वास का सामना
करना पड़ रहा है. ऐसे में आवश्यकता इसकी है कि लोगों के बीच पुनः विश्वास कायम किया
जाये. इसके लिए लोगों को न केवल अपनी मानसिकता में सुधार लाना होगा बल्कि आपसी
रिश्तों में शुचिता, पवित्रता लानी होगी.
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