अपनी 72 हूरों को हमारा सलाम बोलना, कहना दावत पर
इंतजार करें, आज बहुत सारे मेहमान भेजने वाले हैं.
ये हिंदुस्तान अब चुप नहीं बैठेगा, ये नया हिंदुस्तान है, ये घर में
घुसेगा भी और मारेगा भी.
उन्हें कश्मीर चाहिए और हमें उनका सिर.
ये
महज शब्द नहीं है वरन देशवासियों का आक्रोश है. आक्रोश भी उन देशवासियों का
जिन्होंने सेना को, सैनिकों को किसी राजनैतिक दल के सापेक्ष नहीं आँका है. उन्हीं
देशवासियों के लिए ये शब्द लहू में उबाल ला सकते हैं जिन्होंने सेना की किसी भी
गतिविधि को संशय की निगाह से नहीं देखा है. ये शब्द उनके लिए देशभक्ति का प्रमाण
हैं जिन्होंने कभी किसी सैनिक को तन्हा नहीं माना है. ये शब्द भले ही आज किसी कलम
से निकले हैं मगर ये शब्द हमारे वीर सैनिकों द्वारा बराबर उच्चारित किये जाते हैं.
ये महज एक झलक हैं बहुत जल्द हम सभी के सामने आने वाली फिल्म उरी के संवादों की.
जैसा कि शब्द से स्पष्ट है, ये फिल्म उरई हमले और उसके पश्चात् हुए सर्जिकल
स्ट्राइक के सम्बन्ध में बनाई गई है. कहना न होगा कि जब-जब सेना से, सैनिकों से
सम्बंधित फ़िल्में, कार्यक्रम समाज के बीच आये हैं, उनका स्वागत किया गया है. इसका
भी होगा.
हम
बहुत कुछ तो नहीं कर पाए अपने सैनिकों के लिए, सेना के लिए. बस इस कविता के माध्यम
से अपने विचार आप सबके बीच....
+
मौत
बाँटती जिंदगियों का अब यहाँ अवसान होगा,
धैर्य
का और कितना, कब तलक इम्तिहान होगा,
गूँजा
वन्देमातरम का फिर वही जोशीला गान तो,
कश्मीर
तो होगा मगर अबकी न पाकिस्तान होगा.
किस
घमंड में चूर हो इतिहास पर डालो नज़र,
याद
रखो तुम हमेशा अपनी पराजय का सफ़र,
हो
बड़े बदजात तुमको क्यों नहीं आता नज़र,
गूँजा
वन्देमातरम का फिर वही जोशीला गान तो,
कश्मीर
तो होगा मगर अबकी न पाकिस्तान होगा.
है
मचलना, खूब मचलो, अपनी सीमा में रहो,
खेलना
है, होली खेलो, खून से खुद को ही रँगो,
हमसे
टकराने के पहले याद बस इतना रखो,
गूँजा
वन्देमातरम का फिर वही जोशीला गान तो,
कश्मीर
तो होगा मगर अबकी न पाकिस्तान होगा.
करुण
क्रंदन कर रही हैं वादियाँ कश्मीर की,
हिमगिरि
की धवलता फिर मलिन होने लगी,
वर्तमान-इतिहास
छोड़ो बदलेगा अब भूगोल भी,
गूँजा
वन्देमातरम का फिर वही जोशीला गान तो,
कश्मीर
तो होगा मगर अबकी न पाकिस्तान होगा.
@ कुमारेन्द्र
किशोरीमहेन्द्र
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