30 दिसंबर 2018

पहली अंतरिम सरकार के मुखिया द्वारा राष्ट्र ध्वज फहराना


व्यावहारिक रूप से हमने भले ही आज़ादी सन 1947 में पाई हो मगर हम एक तरह से  30 दिसंबर 1943 को ही आजाद हो गए थे. यह दिन शायद बहुत से देशवासियों को स्मरण भी न हो मगर सत्य यही है कि इसी दिन इस देश के एक क्रांतिकारी बेटे ने स्वतंत्र भारत के रूप में राष्ट्र ध्वज फहराया था. देश के जन-जन में बसे महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सबसे पहले अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में राष्ट्र ध्वज फहराया था. नेताजी देश की तत्कालीन पहली अंतरिम सरकार के मुखिया के रूप में राष्ट्रध्वज के वाहक बने थे.


इसके बाद कतिपय स्थितियाँ ऐसी बनी कि नेताजी की सेना अपने उद्देश्य में पूरी तरह से सफल न हो सकी. खुद नेता जी के अस्तित्व को लेकर सवाल अभी तक खड़े होते रहे. ऐसे ही अनेक कारणों-कारकों के बीच 15 अगस्त 1947 को भारत से अंग्रेजी शासन का अंत हुआ. देश की बागडोर हमारे राजनेताओं के हाथों में आ गई. हम सभी देशवासी इस दिन को पूरी श्रद्धा और देशभक्ति के साथ मनाते हैं.  अपने उन अनेकानेक वीर सपूतों को याद करते हैं जिनकी कुर्बानी से हमें आजादी मिली. इसके बाद भी कहीं न कहीं हम सभी नेता जी के योगदान को विस्मृत कर देते हैं. अंग्रेजों की कैद से निकल कर विदेश जाना और वहाँ पहुँच कर तमाम देशों के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन करना अपने आपमें अभूतपूर्व कार्य था. एक-दो नहीं वरन एशिया के अनेक देशों के सहयोग से नेताजी ने आजाद हिंद फौज का गठन किया. सन 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना के साथ जापानी सेना का युद्ध चल रहा था. जापानी पूरे उत्साह के साथ नेताजी की आजाद हिंद सेना का सहयोग कर रहे थे. अंग्रेजों से लड़ते हुए जापानी सेना 1942 में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तक आ पहुंची और 23 मार्च 1942 को जापानी सेना ने अंडमान के द्वीपों पर कब्जा कर वहां से अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया. 25 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने भी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी. तब तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतरिम आजाद हिंद सरकार का गठन कर चुके थे. जापानियों के साथ नेताजी के संबंध बहुत ही घनिष्ठ बन चुके थे. अंडमान-निकोबार पर जापानियों का कब्जा हो चुका था. ऐसा सन्देश मिलते ही नेताजी ने अंडमान-निकोबार द्वीपों का दौरा करने का निश्चय किया. 

नेताजी से प्रभावित होकर तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो ने 07 नवंबर 1943 को अंडमान-निकोबार द्वीपों को नेताजी की अंतरिम सरकार को सौंप दिया. इसके बाद नेताजी ने 30 दिसंबर 1943 को पहली बार अंडमान-निकोबार की धरती पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया. उन्होंने ने केवल राष्ट्रीय ध्वज फहराया बल्कि इन द्वीपों का नाम शहीद और स्वराज रखा. आज भी पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान को अब नेताजी स्टेडियम के नाम से जाना जाता है, यहाँ पर तिरंगा फहराने के बाद नेताजी ने वहां के क्रांतिकारियों, आजाद हिंद फौज के सिपाहियों तथा जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि हिंदुस्तान की आजादी की जो गाथा अंडमान की भूमि से शुरू हुई है वह दिल्ली में वायसराय के घर पर तिरंगा फहराने के बाद ही रुकेगी.  वर्तमान में भारत सरकार द्वारा एक स्मारक का निर्माण उसी जगह पर किया गया है जहाँ कि नेताजी ने तिरंगा फहराया था. इस स्थान पर प्रतिवर्ष 30 दिसंबर को स्थानीय प्रशासन द्वारा अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. पोर्ट ब्लेयर जैसे छोटे से शहर में इस मौके पर हजारों की भीड़ का जुटना इसका परिचायक है कि अंडमान-निकोबार के निवासी सारे नेताजी को बहुत आदर के साथ याद करते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें