तुम्हें बताएँ
तुम याद आती हो
बहुत हमें.
भोर सुहानी
जब महकती है
ओस के साथ.
चाँद के लिए
सजती जब जब
सिंदूरी शाम.
सिसकते हैं
ख़्वाब अधूरे जब
सूनी रात में.
एहसासों को
हौले से छूती जब
तन्हाई मेरी.
नज़र आती
खुली बंद आँखों में
तुम ही तुम.
++
कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
19-12-2018
तुम याद आती हो
बहुत हमें.
भोर सुहानी
जब महकती है
ओस के साथ.
चाँद के लिए
सजती जब जब
सिंदूरी शाम.
सिसकते हैं
ख़्वाब अधूरे जब
सूनी रात में.
एहसासों को
हौले से छूती जब
तन्हाई मेरी.
नज़र आती
खुली बंद आँखों में
तुम ही तुम.
++
कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
19-12-2018
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