किसानों की कर्जमाफी के नाम पर लड़ा गया
चुनाव और अंततः उससे सत्ता की भी प्राप्ति हुई. इसके बाद तुरंत ही संकेत दिए गए कि
लोकसभा चुनाव में भी किसान कर्जमाफी मुद्दा होगा विपक्ष का. कर्जमाफी विपक्ष का
मुद्दा हो या न हो पर कांग्रेस का मुद्दा अवश्य रहेगा, ऐसा तय है. किसान कर्जमाफी
या फिर किसी भी तरह की कर्जमाफी कोई समाधान नहीं है. ये योजना प्रोत्साहन या सहायता
के बजाय लोगों में काहिलपन को, भ्रष्ट आचरण अपनाने को बढ़ावा देती है. इससे पहले
उत्तर प्रदेश में वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा ऐसा कदम उठाया गया था. आश्चर्य की
बात है कि सभी राजनैतिक दल इसे समझ चुके हैं कि मतदाता, देश के बहुसंख्यक नागरिक मुफ्तखोरी
के स्वाद से भली-भांति परिचित हैं. उन्हें किसी भी मुद्दे के बजाय मुफ्तखोरी के
द्वारा आकर्षित, प्रभावित किया जा सकता है. कभी मोबाइल के नाम पर, कभी लैपटॉप के
नाम पर, कभी दो रुपये किलो अनाज के नाम पर, कभी कर्जमाफी के नाम कर.
इक्कीसवीं सदी में आगे बढ़ने का,
विश्वगुरु का दावा करने वाले देश में राजनैतिक दल आज भी सरकार बनाने के लिए लोभ-लालच
भरे कदमों का सहारा लेते हैं. असल में किसी भी राजनैतिक दल के पास अपना कोई ऐसा
मुद्दा नहीं रह गया है, जिसके द्वारा जनता को प्रभावित किया जा सके. सभी दल विकास
की बातें करने, कहने से बहुत दूर निकल चुके हैं. सभी दलों में कार्यकर्ताओं के
स्थान पर आयातित, धनाढ्य लोगों को महत्त्व दिया जाने लगा है. राजनैतिक दल भी समझते
हैं कि जातिगत, क्षेत्रगत आधार पर वोटों को पाना बहुत ज्यादा आसान हो गया है. ऐसे
में वे विकास की कागज बातें तो करते हैं मगर विकास जमीन पर न के बराबर दिख रहा है.
अब जबकि कर्जमाफी का रास्ता सफलता की तरफ ले जा रहा है तो संभव है आगामी चुनाव इसी
मुद्दे पर लड़े जाएँ. इस तरह की योजना कहीं न कहीं सरकारी खजाने पर बोझ हैं और उन
नागरिकों पर भी बोझ हैं जो नियमित रूप से अपना टैक्स जमा कर रहे हैं. दल कोई भी
सभी को मुफ्तखोरी, कर्जमाफी जैसे कदमों से बचना चाहिए.
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