समय
कितनी-कितनी बार, किस-किस तरह से व्यक्ति की परीक्षा लेता है कहा नहीं जा सकता है.
इसे शायद सम्बंधित व्यक्ति का हौसला बढ़ाना ही कहा जायेगा जबकि उसे समझाया, बताया
जाता है कि समय उसी की परीक्षा लेता है जो इसके लायक होता है. ऐसा भी कहा जाता है
कि समय या फिर कोई ईश्वरीय सत्ता जिसे इस लायक समझती है उसी का इम्तिहान लेती है.
व्यावहारिक रूप से देखा जाये तो ऐसा महज दूसरे व्यक्ति का हौसला बढ़ाने के लिए ही
कहा जाता है. ऐसा किसी भी रूप से अंतिम सत्य नहीं है कि जो व्यक्ति हिम्मती होता
है, विश्वास से भरा होता है उसी को तमाम कष्टों से दो-चार होना पड़ता है. ऐसा भी
नहीं है कि जिनके सामने कष्ट अथवा संकट नहीं आ रहे वे लोग आत्मविश्वास से भरे नहीं
हैं. ऐसा भी नहीं है कि जो लोग कष्टों का कम या न के बराबर सामना कर रहे हैं, समय
उनकी परीक्षा नहीं लेता है. वास्तविकता में लगभग सभी व्यक्तियों को कष्टों का,
संकटों का सामना करना पड़ता है, यह और बात है कि उसका सामना करने की, उनसे निपटने
की शक्ति सभी में अलग-अलग होती है.
इसी
बिंदु पर आकर, जहाँ कि किसी भी तरह की परेशानी से जूझ रहे व्यक्ति अपने आपको उस
संकट से बाहर निकालने में सफल हो जाते हैं या फिर किसी और को अपने कष्ट का आभास भी
नहीं होने देते हैं, ऐसे लोगों के प्रति अन्य लोगों में एक अलग तरह की धारणा बनने
लगती है. यहाँ समझना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में ऐसा नहीं है कि कष्ट
आये ही नहीं और ऐसा भी नहीं कि एक बार कोई कष्ट आने के बाद भविष्य में कभी कोई
दूसरी समस्या या कष्ट नहीं आएगा. भविष्य किसी ने नहीं जाना है और न ही किसी ने
अपना समय जाना है. कब किसके साथ क्या हो उसे पता नहीं होता है. इसी कारण से जो
व्यक्ति स्वयं को सशक्त, विश्वास से भरे रखते हैं वे सहज ही किसी भी कष्ट से पार
पा लेते हैं. एकबारगी वे भले ही उनकी समस्या को निपटने में समय लग रहा हो मगर ऐसे
लोग अपनी स्थिति को किसी और पर सहज ही प्रकट नहीं होने देते हैं. समय के साथ ऐसे
लोग अपनी स्थितियों के निपटारे का प्रयास भी करते रहते हैं. ऐसे ही लोग जीवट के
धनी माने जाते हैं.
असल
में कोई किसी दूसरे के दुःख में लगातार सहभागी तभी तक बना रहता है जबकि पीड़ित
व्यक्ति अपने दुःख का रोना लगातार उसके सामने नहीं रोता है. यह अपने आपमें परम
सत्य है कि सभी को अपने कष्टों से, अपनी समस्याओं से स्वयं ही जूझना होता है.
दूसरा कोई भी व्यक्ति हौसला बढ़ाने के लिए, उसकी मदद करने के लिए साथ अवश्य आता है
मगर ऐसा बहुत ही कम होता है जबकि कोई और आकर कष्टों का निवारण कर दे. ऐसे में
पीड़ित व्यक्ति को ही अपनी समस्याओं से पार पाना होता है. साथ के लोग उसकी हिम्मत
बनते हैं, उसका हौसला बढ़ाते हैं, वह व्यक्ति हार न मान बैठे इसी कारण तमाम तरह से
उसके प्रति विश्वास प्रकट करते हैं. इसी विश्वास की दम पर व्यक्ति अपने कष्टों से
मुक्ति पा लेता है. यहीं आकर कुछ लोग टूट जाते हैं और कुछ लोग सब कुछ पीछे छोड़ते
हुए आगे बढ़ जाते हैं. ऐसे ही आगे बढ़ने वालों के प्रति समाज सकारात्मक धारणा बना
लेता है. ऐसे लोगों के लिए उसके द्वारा कहना शुरू हो जाता है कि समय उसी की
परीक्षा लेता है जो उसके काबिल होता है. अंततः यह भी समझने की आवश्यकता है कि एक
व्यक्ति आखिर कब तक ऐसी परीक्षा से दो-चार होता हुआ अपने आपको साबित करता रहे?
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