08 नवंबर 2018

पटाखों के साथ इन्सान के अनैतिक कृत्यों पर प्रतिबन्ध लगे


न्यायालय के आदेश के बाद पटाखों पर प्रतिबन्ध बना सा रहा. एकाधिक जगहों पर ही आदेश की अवमानना की खबरें आईं. ऐसे मामलों में लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. मात्र एक दिन के महज दो घंटों की आतिशबाजी ने न केवल दिल्ली की वरन समूचे देश की स्थिति ख़राब कर दी, ऐसा बताया जा रहा है. देश के अनेक हिस्सों को गैस चैंबर बना दिया गया, ऐसा गलघोंटू माहौल लोगों को दिखाई देने लगा. ये सही हो सकता है कि अपनी ख़ुशी दिखाने का, पर्व त्यौहार मनाने का तरीका सिर्फ पटाखे फोड़ना नहीं हो सकता है. कुछ जानकारों के हिसाब से पटाखों का धुँआ सर्वाधिक नुकसानदेह है. यह सही भी हो सकता है क्योंकि आज इन्सान ने स्वार्थ में जब खाने-पीने के सामानों तक को नकली चीजों से बनाना शुरू कर दिया है, उसमें भी केमिकल मिलाना शुरू कर दिया है तो पटाखों में रंग, आवाज़ आदि के लिए वह कुछ भी कर सकता है. पटाखों पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए या नहीं, किसी ख़ुशी के अवसर पर पटाखे फोड़कर खुशियाँ मनाई जानी चाहिए या नहीं ये चर्चा का विषय हो सकता है. इस पर चर्चा भी होनी चाहिए क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति या एक परिवार की ख़ुशी से संदर्भित नहीं है वरन इसका दुष्प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर देखने को मिल रहा है.


ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महज पटाखे फोड़ना ही समाज को परेशानी में खड़ा कर रहा है? सवाल यह भी है कि पटाखे फोड़ने के अलावा बाकी सारे कृत्य क्या पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं? क्या वे लोग जो पटाखों को हानिकारक धुंए का कारक बता रहे हैं वे अपने कार्यों पर ध्यान देंगे? आज न सही सौ प्रतिशत मगर लगभग सौ प्रतिशत के बराबर लोग अपनी कारों का इस्तेमाल बिना एयरकंडिशनर के नहीं कर रहे हैं. बिना एसी की न उनकी कारें चल पा रही हैं न उनके घर-कार्यालय इस्तेमाल योग्य रह पा रहे हैं. क्या ऐसे कार्यों से पर्यावरण संरक्षण हो रहा है? सोच कर देखिये घर, कार्यालय, मॉल, दुकानें आदि जो एसी के द्वारा ठंडक फेंक रहीं हैं वे पर्यावरण के लिए कितनी हितकर हैं? रोजमर्रा के कामों में ही एक बार आदमी खुद का निरीक्षण कर ले कि वह पर्यावरण को कितना नुकसान पहुँचा रहा है. कृषि योग्य भूमि का बिकना, उनकी जगह पर बहुमंजिली इमारत का बनना, मॉल का निर्माण उनमें जल की निर्बाध आपूर्ति के लिए धरती की गोद से सारा पानी सोखने को लगाई गईं मशीनें क्या पर्यावरण हित में हैं? भव्य, आलीशान मकानों, इमारतों को सजाने के लिए काटे जाते जंगल पर्यावरण हित की बात तो नहीं ही करते हैं. पॉलीथीन पर प्रतिबन्ध के बाद भी रोज सडकों पर, मैदानों पर मिलते बड़े-बड़े ढेर बताते हैं कि इन्सान पॉलीथीन का उपयोग न करने को लेकर कितना सजग हुआ है.

ये कृत्य दिखाई देने के बाद भी किसी को नहीं दिखाई दे रहे हैं. यदि प्रदूषण फ़ैलाने वाला कोई कृत्य दिखाई दिया तो वह है बस पटाखों का फोड़ना. इसके प्रतिबन्ध से सारी समस्या का हल निकल आएगा, ये सोचना और विचार करना शुतुरमुर्ग की तरह मुँह जमीन में घुसा लेना है. यदि वाकई पर्यावरण का संरक्षण करना है, समाज से प्रदूषण को दूर भगाना है तो सिर्फ पटाखों पर ही नहीं बल्कि इन्सान को अपने अनैतिक क्रियाकलापों पर प्रतिबन्ध लगाने की जरूरत है.

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