10 नवंबर 2018

कुछ अधूरा सा


सम्बन्ध-रिश्ते कैसे बनते हैं? इनके बनने के पीछे कौन से कारण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? संबंधों-रिश्तों की परिभाषा क्या होती है? ये परिभाषा क्या होनी चाहिए? सम्बन्ध-रिश्ते आखिर किस कारण से अनवरत चलते रहते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सभी के पास अलग-अलग होगा. सभी अपनी-अपनी दृष्टि से, अपने-अपने नजरिये से संबंधों की, रिश्तों की परिभाषा तय करते हैं और उसी के हिसाब से उंनका निर्वहन करते हैं. संबंधों-रिश्तों का बनना भी उनके नजरिये से सम्बंधित रहता है. किसी के लिए संबंधों-रिश्तों का बनना गर्व की बात होती है, उसके स्वभाव का हिस्सा होता है तो बहुतों के लिए इस तरह का कृत्य अवसर के अनुसार होता है. अवसर के अनुसार संबंधों-रिश्तों को बनाने वाले हो सकता है कि तात्कालिक लाभ ले लेते हों मगर ऐसे लोग दीर्घकालिक रूप में संबंधों-रिश्तों का निर्वहन भी नहीं कर पाते, उनको बचाकर भी नहीं रख पाते.


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