कहते
हैं कि मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है. ये कितना सही है, कितना गलत ये अलग
बात है किन्तु ये अवश्य सत्य है कि इन्सान अपने आप परिस्थितियों का गुलाम बन जाता
है. वर्तमान में ऐसी कोई भी स्थिति नहीं जो कोई व्यक्ति सुलझा न सके मगर कोई भी
व्यक्ति अपने आपको कमजोर करके खुद को उन्हीं स्थितियों का गुलाम समझने लगता है और
हार मान लेता है. ये और बात है कि कुछ स्थितियाँ ऐसी होती हैं जो न तो
मानव-निर्मित होती हैं और न ही उनका समाधान मानव द्वारा होता है मगर उनके लिए भी
हार नहीं मानी जा सकती है. असल में कोई भी परिस्थिति जब तक कि वह प्रकृतिजन्य न हो
तब तक ऐसी नहीं होती कि उसका हल न निकाला
जा सके. इसके उलट इन्सान किसी भी विपरीत स्थिति के आने पर सबसे पहले अपना विश्वास
छोड़ देता है. उसे खुद पर ही यकीन नहीं रह जाता है कि वह इसके समाधान के लिए कुछ कर
सकेगा भी या नहीं. ऐसी विषम स्थिति में उसे लगता है कि यहाँ सिर्फ और सिर्फ कोई और
ही उसकी मदद करेगा. ऐसा ही व्यक्ति किसी भी स्थिति का गुलाम बन जाता है जो अपने से
ज्यादा किसी और की शक्ति, किसी और की क्षमता पर विश्वास करता है. ऐसा व्यक्ति न
केवल उस परिस्थिति से हार मान जाता है बल्कि आने वाले समय में भी हार मानने को
तैयार रहता है.
वर्तमान
परिदृश्य में लगभग सभी व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रसित हैं और वे सब किसी न
किसी रूप में उनका समाधान चाहते हैं. ऐसे में सामने वाले की समस्या उन्हें अपनी
समस्या से बड़ी समझ नहीं आती है. हर हाल में उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपनी समस्या ही
सबसे बड़ी नजर आती है. ऐसे में वे चाहते हैं कि उनकी समस्या का समाधान कोई और आकर
करे ताकि वे अपने अंतर्मन में इसे सिद्ध कर सकें कि वे अपनी उस स्थिति के गुलाम
थे. वास्तव में यदि किसी भी इन्सान को अपनी किसी भी समस्या का हल निकालना है तो
उसे उस समस्या को बहुत छोटे रूप में देखने की आवश्यकता है. यदि कोई भी इन्सान किसी
भी समस्या को बहुत छोटे रूप में देखकर उसका समाधान निकालने की कोशिश करता है तो
ऐसा सहज रूप में हो जाता है. इसके उलट यदि किसी भी समस्या को विकराल मानकर उसका
समाधान निकाला जाये तो उसमें दिक्कत ही आती है. ऐसे में आवश्यक है कि समस्या को
बड़ा करने के बजाय अपने विश्वास को बड़ा किया जाये. समस्या को विकराल बनाने के बजाय
अपने व्यक्तित्व को विराट किया जाये. यदि ऐसा हो सका तो कोई भी सम-विषम परिस्थिति
इन्सान को अपना गुलाम नहीं बना सकेगी.
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