23 नवंबर 2018

मशीन में बदलता इन्सान


जगह वो थी जहाँ ज़िन्दगी में आदमी जाता तो है मगर अपने पैरों पर चलकर नहीं. यही एकमात्र वो जगह होती है जहाँ उसी व्यक्ति के लिए सम्पूर्ण गतिविधियाँ चल रही होती हैं मगर एक वही उनका अनुभव नहीं कर पा रहा होता है. यही वो जगह होती है जहाँ वही एकमात्र सबके, सभी गतिविधियों के केंद्र में होता है मगर वह न तो किसी के प्रति आभार व्यक्त कर पा रहा होता है और न ही किसी से मिलजुल पा रहा होता है. यही जगह संभवतः ऐसी जगह मानी जाती है जहाँ किसी भी व्यक्ति को जीवन का असल सत्य ज्ञात होता है. यहाँ आकर वह जीवन की वास्तविकता को समझ सकता है. वह देख सकता है कि जिंदगी भर लोभ, मोह, तृष्णा का अंजाम सिर्फ और सिर्फ राख बनकर मिट्टी में मिल जाना ही होता है. श्मशान घाट, मोक्षधाम आदि नामों से पुकारी जाने वाली यह जगह आमतौर पर लोगों के केंद्र में, आकर्षण में नहीं रहती है इसके बाद भी प्रत्येक आदमी को यहाँ आना होता है. कभी किसी परिचित के कारण, कभी किसी सहयोगी के कारण, कभी किसी अपने के कारण. खुद अपने लिए यहाँ वह एक बार और अंतिम बार ही आता है.


इस जगह में लोग जिस व्यक्ति के कारण आते हैं वह तो चिरनिद्रा में लीन आराम कर रहा होता है. उसके परिजन, शुभेच्छुजन उसकी अंतिम क्रिया की तमाम औपचारिकताओं में लगे होते हैं. यहाँ आने और यहाँ से वापस जाने के मध्य का समय उन लोगों के लिए भारी पड़ता है जो किसी न किसी औपचारिकता में यहाँ आये होते हैं. औपचारिकता के नाते आना हुआ है तो औपचारिकता के कारण ही यहाँ से जा भी नहीं सकते हैं, जब तक कि सम्पूर्ण क्रिया पूर्ण न हो जाये. अब ऐसे में बीच के समय का ऐसे लोग दुरुपयोग करते हैं या सदुपयोग करते हैं, यह तो पता नहीं मगर जो भी करते हैं वह सामाजिक तो नहीं ही लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान में किसी भी व्यक्ति के पास बातें करने के गिने-चुने बिंदु रह गए हैं. राजनीति, क्रिकेट, फिल्म या फिर धन-सम्पदा. राजनीति का विषय इनमें से सबसे आगे रहता है क्योंकि इसमें किसी भी बिंदु पर, किसी भी मसले पर अपना ज्ञान बघारने के लिए व्यक्ति को प्रकाण्ड विद्वान् होने की आवश्यकता नहीं होती है. कुछ गंभीर पढ़ने की जरूरत नहीं होती है. किसी भी मुद्दे पर तथ्यों की, सिद्धांतों की चर्चा नहीं करनी होती है. सबको एक सिरे से चोर, भ्रष्ट साबित करते हुए बस अपनी विचारधारा को संपोषित करना होता है. बहस में हारने की स्थिति आने पर पूरी चिल्ला-चोट के साथ सामने वाले की विचारधारा के लोगों को चोर, हत्यारा, भ्रष्ट कहकर अपनी बात को समाप्त किया जा सकता है.

देश-विदेश की कई-कई घटनाओं पर अपना बुद्धि-कौशल दिखाते, ज्ञान बघारते, बहस को अंजाम देते लोग भूल जाते हैं कि वे जहाँ चिल्ला-चिल्लाकर अपना खोखला ज्ञान देने में लगे हैं वहां उनसे ही चंद कदम की दूरी पर किसी का कोई अपना चिरनिद्रा में सोया हुआ है. वे सब उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होकर यहाँ आये हैं. जहाँ वे आये हैं वह किसी सामाजिक कार्यक्रम का मंच नहीं. वे किसी आयोजक के मुख्य वक्ता नहीं. किसी विषय के विशेषज्ञ नहीं. इसके बाद भी वे महज समय काटने की दृष्टि से हर उस विषय पर बोलने की क्षमता दिखाते हैं जिसे उन्होंने कभी देखा-सुना भी न हो. किसी का दुःख बाँटने आये लोग शमशान घाट पर आकर भी जीवन का सत्य न समझकर अपने आपको सर्वज्ञ दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं. समझ नहीं आता कि तकनीकी विकास में आदमी किस तरह तेजी से क्यों मशीन होता जा रहा है? क्यों संवेदनहीन बनता जा रहा है? क्यों वह किसी के दुःख में शामिल न होते हुए बस निरर्थक बहसों में अपने आपको शामिल किये रहता है? क्यों वह समय, स्थिति, स्थान को न पहचानते हुए नितांत अमर्यादित बना रहता है? हम सभी को विचार करना होगा कि तकनीक हम सबको कहाँ ले जा रही है.

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