कल
रात सपने में कथित और व्यथित गांधी with नेहरू आए. उन्होंने एक
नया ख़ुलासा किया, मूर्ति स्थापना को लेकर. तब स्थिति स्पष्ट
हुई कि उनकी मूर्तियाँ स्थापित नहीं की गईं बल्कि प्रकट हुईं हैं.
कुछ
आसमानी किताब की तरह से.
कुछ
इनकी पसीने की बूँद से.
कुछ
उस पेय पदार्थ से भी, जिसे पीने के लिए लोग लाइन लगाए खड़े रहते
थे. इसलिए इन पर धन ख़र्च हुआ ही नहीं. धन इस प्रतिमा पर पहली बार ख़र्च हुआ है.
+
पूरा
देश भौचक्का है... खास तौर से कांग्रेसी और बसपाई...
इसलिए
क्योंकि देश की पहली मूर्ति आज लोकार्पित की गई. ये दोनों चापलूस समझ ही नहीं पाए कि
ये है क्या? कांग्रेसियों ने कभी अपने अम्मा-बाप के चित्र न लगाये.
बसपाइयों ने कभी बहिन जी के न लगाये और मोदी को देखो मूर्ति बनवा दी. सब आश्चर्य में
कि ये क्या बनवा दिया विशालकाय. एक गलत परम्परा का सूत्रपात करवा दिया. अब हर गली-चराहे-पार्क
में नेहरु-गाँधी की मूर्ति लगेगी. पार्क के नाम पर हाथी लगेंगे. जिंदा रहते खुद की
मूर्ति लगेगी.
मोदी
तुम बहुत बुरे हो. अच्छा-खासा देश उन्नति कर रहा था. मूर्तियों की राजनीति से बाहर
था. अभी तक ऐसे धन का उपयोग चिकित्सालय बनवाने में, शिक्षण संस्था
बनवाने में, गरीबों की मदद करने में किया जाता रहा है, सो इसी
कारण से कोई बीमार नहीं था. सभी पैदा होते ही इंजीनियर-डॉक्टर-वैज्ञानिक आदि बन जाते
थे. अब आज के बाद से विशुद्ध गरीब पैदा होंगे. नंगे-भुखमरी के शिकार पैदा होंगे. अशिक्षित
पैदा होंगे. तुमने देश को सदियों पीछे धकेल दिया एक मूर्ति लगा कर. सरदार पटेल के समर्थक
भले तुम्हें माफ़ कर दें मगर देश में मूर्ति स्थापना की नवीन परम्परा डालने के कारण
कांग्रेसी तुमको माफ़ न करेंगे.
+
विश्व
के सात अजूबों में एक ताजमहल शामिल है (जो एक कब्र के रूप में प्रचारित है... भले ही
उसमें शंकर जी का मंदिर माना जाता हो, तेजोमहालय माना जाता हो)
उस ताजमहल के लिए कूद-कूद मरे जाते हो मगर जब विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति की बात आई,
स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी की तो सबको पेचिश लगने लगी, वो भी बौद्धिक और खूनी. अपने-अपने दिमाग
गुलामी से बाहर निकालो. पैसा तुम्हारे बाप का ही खर्च हुआ था ताजमहल में, यहाँ भी तुम्हारे
बाप का, तुम्हारा खर्च हुआ है पर ये गुलामी का नहीं बल्कि गौरव
का पर्याय है.
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