09 अक्तूबर 2018

डाकिया डाक लाया फिर भी उस ख़त का इंतजार


आज के दिन यानि कि 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य जनमानस में बीच डाक विभाग के उत्पादों की जानकारी देना, उनको डाक विभाग की सेवाएँ लेने के लिए जागरूक करना तथा जनता और डाकघरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है. इसका आयोजन यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के द्वारा किया जाता है. 9 अक्टूबर 1874 को जनरल पोस्टल यूनियन के गठन के लिए बर्न स्विटजरलैंड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये. कालांतर में सन 1969 में जापान के टोकियो में इसी दिन को विश्व डाकघर दिवस घोषित किया गया. तबसे वैश्विक स्तर पर डाक सेवाओं के योगदान को रेखांकित करने के लिए प्रतिवर्ष विश्व डाकघर दिवस मनाया जाने लगा. 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम बदलकर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union सार्वभौमिक डाक संघ अथवा यूपीयू) कर दिया गया.


भारत यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य 1 जुलाई 1876 को बना. सदस्यता लेने वाला यह पहला एशियाई देश बना. भारत में एक विभाग के रूप में डाक विभाग की स्थापना 1 अक्तूबर 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई थी. वर्तमान में डाकघरों में बुनियादी डाक सेवाओं के अतिरिक्त बैंकिंग, वित्तीय व बीमा सेवाएं भी उपलब्ध हैं. इस वैश्विक दिवस के साथ-साथ भारतीय डाक विभाग 9 से 14 अक्टूबर के बीच डाक सप्ताह मनाता है. इसका उद्देश्य लोगों को डाक विभाग के योगदान से अवगत कराना है. सप्ताह के हर दिन अलग-अलग दिवस मनाये जाते हैं. 10 अक्टूबर को सेविंग बैंक दिवस, 11 अक्टूबर को मेल दिवस, 12 अक्टूबर को डाक टिकट संग्रह दिवस, 13 अक्टूबर को व्यापार दिवस तथा 14 अक्टूबर को बीमा दिवस मनाया जाता है. 

आज मोबाइल, ई-मेल, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि के दौर में भले ही चिट्ठी का कोई महत्त्व नहीं रह गया हो मगर किसी समय लोगों की निगाहें और कान डाकिया की राह पर लगे रहते थे. वर्तमान में चिट्ठियों की प्रासंगिकता भले ही कम हो गई हो मगर डाक विभाग ने जिस तरह से अपनी सेवाओं, उत्पादों का दायरा विस्तृत किया है, उससे उसकी पहचान जनमानस में अभी भी स्थापित है.

इस अवसर पर स्व-लिखित कविता....

पत्र..
एक साधन
जो जोड़ता है दो दिलों को,
बनाता है उस लड़ी को।
अधूरी पड़ी
उन रिश्तों की डोर को
थाम कर
जो हैं बहुत दूर-दूर,
उन सभी को साथ ले,
हर तरह के रंगों को
अपने में समेटे
किसी की खुशी,
किसी के आँसू
अपने में लपेटे,
हवा के साये सा
उड़ कर आता है,
पास हमारे।
देने को संदेश उन सभी का
जो बैठे हैं हमारे
दूर कहीं हमसे।
बनके खुद साथी उनका,
बनके एक साथी हमारा,
हर पल, प्रतिक्षण,
कोई न कोई रहता है गुम,
किसी के ख्याल में,
किसी की चाह में।
होगी कोई माँ भी
कहीं दूर उदास,
होगी उसे भी अपने बेटे के
खत की आस।
सूनी आँखों में आँसुओं के मोती
नित्य सजाती होगी,
अपने बुढापे को
दरवाजे की चैखट पर बिताती होगी।
तो गुम होगी कहीं कोई
अपने प्रियतम की याद में,
सूनी रात की काली तन्हाई से
घबराती होगी,
झिलमिल तारों के बीच
सजे चाँद में
अपने प्रियतम का चेहरा बनाती होगी।
ऐसा ही एक इन्तजार
हमें भी है,
न किसी खास का,
न किसी यार का,
न किसी प्रेम का,
न किसी प्रियतम का,
वो खत हमें
बहार ने लिखा होगा,
होगी उसमें खबर
फसल प्यार की उगने की,
महक स्नेह और अमन के
फैलने की,
करवायेगा वो खत मुलाकात
हमारे भाइयों से,
जो अब
लड़ न रहे होंगे
राम-रहीम के नाम पर।
गोलियों की गूँज और
अपनों की चीखों की जगह
नदियों की कल-कल,
पक्षियों का कलरव होगा।
वही प्यारा चमन,
वही सुहाना वतन होगा।
बस हमें तो हर पल
इसी खत का इन्तजार है,
महज इन्तजार, वर्षों का इन्तजार
कि कब समय हमारी भी सुधि लेगा?
कब हमें अपनी खबर भेजेगा?
हर पल बस यही आस है
कि कभी तो मेरा खत आयेगा,
आज नहीं तो
कल तो अवश्य ही आयेगा।



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