06 अक्तूबर 2018

चिंतन का वैज्ञानिक आधार


यह एक ऐसा लेख है जो आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर सकता है। इसलिए इसे ध्यान से पढ़ें और पढ़ने के बाद अपने दिमाग से डिलीट कर दें अगर कर पाएं तो।

इस दुनिया में जितने भी विचार हैं वह वायुमंडल में तरंग के रूप में घूमते रहते हैं। हमारा दिमाग उन तरंगों को ग्रहण करने का एक हाईटेक यन्त्र है जो रिसीवर की तरह कार्य करता है। इस रिसीवर का एक विशेष असेम्बलिंग है जिसके अनुरूप वह अपना कार्य करता है। यह कुछ उसी तरह का कार्य है जैसे कोई रेडियो, मोबाइल या आपका डिश एंटीना कार्य करता है। मुझे लगता है कि अभी आप कुछ समझ नहीं पा रहे होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूँ।


आप जिस कमरे में बैठे हैं उस कमरे में सभी रेडियो चैनल, सभी मोबाइल कंपनी के सिग्नल, सभी टीवी चैनल के सिग्नल उपस्थित हैं पर क्या आप उन्हें देख पा रहे है? नहीं न। पर आपके पास जिस कंपनी का मोबाइल सिम है वह उसी कंपनी का नेटवर्क उन सबके बीच पकड़ लेता है और आप उसका प्रयोग कर किसी व्यक्ति से बात कर पाते हैं। इसी तरह आपका डिश टीवी नेटवर्क जिस कंपनी का है उसी अनुसार वह सिग्नल पकड़कर आपको चैनल दिखाता है।

अब हम थोड़ा पीछे चलते हैं अगर 25 वर्ष पहले कोई व्यक्ति आपसे यह कहता कि उसके पास एक ऐसा यंत्र है जिससे वह कहीं से भी अपने परिजनों से देखते हुए बात कर सकता है तो निश्चित ही आप उसे पागल करार देते। इसी तरह बहुत सारी बातें अभी भी ऐसी हैं जो कथा कहानियों ग्रंथो के माध्यम से कहीं तो गयीं हैं पर भौतिक रूप से देख न पाने के कारण हम उन्हें कपोल कथा घोषित कर देते हैं। जब पहला मोबाइल बना था तब हम वातावरण से केवल एक कंपनी का नेटवर्क यूज़ कर पाते थे अब एक मोबाइल में कई कई कंपनी का नेटवर्क यूज़ कर लेते हैं तो क्या यह सम्भव नहीं है कि भविष्य में कोई ऐसा यंत्र आ जाए जिससे वातावरण में उपलब्ध समस्त नेटवर्क का उपयोग करने में सक्षम हो जाएं।

आज से कोई तीस वर्ष पहले मैं नागराज और बुढ़िया टाइटल की कॉमिक्स पढ़ता था उसमें लिखा रहता थाबुढ़िया ने ग्लोब पर हाथ फेरकर देखा तो उसे नागराज गुफा की तरफ आता दिखाई दिया। कॉमिक्स के रचयिता संजय गुप्ता के दिमाग में यह यह कल्पना आयी होगी कि कोई ऐसा ग्लोब होता होगा जिस पर हाथ फेरकर देखा जा सकता है और मात्र 30 साल में टच स्क्रीन वीडियो कॉल ने हमें लगभग उसी स्थिति में पँहुचा दिया। मुझे याद है कि रामायण में रामानंद सागर ऐसे बाण की कल्पना करते हैं जो व्यक्ति को पाताल में भी ढूंढकर उसका संघार करने में सक्षम है और आप अप्रत्याशित रूप से पाएंगे कि वैज्ञानिक टारगेटड मिसाइल बना पाने में सफल हुए। आखिर कथा कहानियों के लेखक को ऐसे धांसू विचार कहाँ से आते हैं आखिर हमारे ऋषि मुनियों ने ऐसी परिकल्पनाएं कैसे कर लीं?


पुनः हम अपने दिमाग के रिसीबर पर आते हैं हमारा दिमाग भी हमारे जन्म के समय विशिष्ट संरचना या हमारे विशेष अभ्यास से कई विशेष तरंगों को ग्रहण करने में समर्थ है अब दिमाग जिस तरह से बना है उसी तरह की तरंगें वह ग्रहण कर पाने में सक्षम होता है और उसी के अनुरूप उसमें विचार आते हैं या यूँ कहें कि विचार ग्रहण कर पाता है। कभी कभी किन्ही खास लोगों में यह दिमाग विशिष्ट संरचना के चलते ऐसे विचार भी पकड़ लेता है जो पहले कभी किसी ने न सुने हो न देखे हो। ऐसे विचार ही सामान्य लोगों द्वारा कपोल कथा सिद्ध कर दिए जाते हैं पर समय बीतने के साथ जब अनेक लोगों का दिमाग उस विचार को पकड़ने लगता है और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के लोग उस पर कार्य करने लगते हैं तब वह कपोल कथा यथार्थ पर परिणित होकर सबके सामने आ जाती है और तब आपको उस विचार को स्वीकार करना ही पड़ता है। अभी मात्र आधे दशक में ही हजारों कपोल कथाएं सच होने बाली हैं। जो व्यक्ति जेट विमान से ध्वनि की रफ़्तार से आवागमन में सक्षम हुआ है वह 50 साल बाद किसी चटाई पर खड़ा होकर यात्रा करता दिखे तो कोई आश्चर्य की बात न होगी। जो व्यक्ति आज मोबाइल से बात कर रहा है वह कल आँख बंद कर शरीर में फिट किसी यंत्र के माध्यम से किसी से मानसिक संपर्क करने में सक्षम हो जाए तो भी कोई आश्चर्य न होगा। 100 साल पहले मनोरंजन के उद्देश्य से रचीं गयी कपोल कथाएं अब सच सावित होती दिख रहीं है तो फिर आध्यात्मिक वेदों में लिखे तथ्य भी देर सवेर वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरेंगे।


वस्तुतः हमारा शरीर एक बहुत उच्च कोटि का यंत्र है पर हम इसका उपयोग नहीं कर पाते है। मान लो कोई नया एंड्राइड आया है तो उपयोगकर्ता कुछ लोग केवल काल कर पाते हैं कुछ मैसेज भी कर लेते है कुछ मेल सीख लेते है कुछ वीडियो कॉल लेते है कुछ नेट चला लेते है कुछ सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लेते है पर इतना कुछ जानने के बाद भी उसके बहुत सारे फंक्शन ऐसे होते हैं जिन्हें आप कभी नहीं जान पाते हैं इसी तरह हमारे शरीर में भी असीमित शक्तियां होती है जिन्हें हम जान नहीं पाते है चिंतन और सृजन भी शक्तियां ही हैं। हमारे ऋषि मुनि योग अध्यात्म से इन शक्तियों को प्रयोग करने के तरीके सीख लेते थे वह इन शक्तियों से विश्व में घूम रहे विचारों को ग्रहण करने में सक्षम हो जाते थे और उसने हाँसिल अनुभव को ही लोगों को बताते थे या कहीं लिखते थे। जिन्हें आज का व्यक्ति इसलिए नकार देता है क्योंकि उसके दिमाग का तंत्र उस फ्रीक्वेंसी की बात कैच नहीं कर पा रहा है बिलकुल मोबाइल की तरह। जब तक उसका सिस्टम इस फ्रीक्वेंसी से ट्यून नहीं होगा तब तक विचार उसका दिमाग ग्रहण ही नहीं कर पायेगा। आपको ताज्जुब होता होगा कि पुराने समय में जब बच्चे के परदेश से चलते ही माँ को आभास हो जाता था कि उनका लड़का वापस आ रहा है। या उसके वीमार होते ही माँ को आभास हो जाता था। माँ सदैव बाहर गए अपने बच्चे से एक वायरलेस नेटवर्क से जुडी रहती थी।

अब आप सोच रहे होंगे की दिमाग तो सबके पास एक सा ही है, तो आप भूल में हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन के दिमाग की विशिष्ट संरचना और दोनों ऑक्सिपिटल के बीच सामान्य व्यक्ति की तुलना में कई गुनी चौड़ी पट्टी आज भी दुनियाँ के लिए शोध का विषय है। महिलाओं का दिमाग पुरुषों की तुलना में ज्यादा विशिष्टताएं लिए होता है। अलग अलग लोगों के दिमाग की स्थिति भी साधारण कालिंग सिंगल सिम से आई फोन तक की सुविधा जैसी विभिन्नता बाली होती है और उसी के अनुसार किसी के दिमाग में कहानी, किसी के दिमाग में कबिता, किसी के दिमाग में साइंस प्रोजेक्ट और किसी के दिमाग में कपोल कल्पनाएं जन्म लेती है यह समस्त विचार वातावरण की तरंगों के इनपुट से दिमाग के कंप्यूटर में प्रोसेस होकर हमारी प्रतिक्रिया के रूप में बाहर आते हैं। इन ग्रहण किये गए विचारों के कारण ही धन लालसा, वैराग्य, समाज सेवा आदि को करने की इच्छा पैदा होती है।

आशा है कि आप समझ गए होंगे कि क्यों प्रथक प्रथक लोगों की, ग्रहण करने, सोचने और प्रतिउत्तर करने की क्षमता अलग अलग होती है और क्षमता से उसके सामाजिक क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं।आप यह भी समझ गए होंगे कि कैसे अप्रत्याशित कल्पनाये जन्म लेती हैं पर समय के साथ स्वयं को सच सावित कर देती हैं। अगर नहीं समझे तो आप मान ले कि हमारे ब्राडकास्टिंग दिमाग को आपका दिमाग दिमाग ट्यून नहीं कर पा रहा है।

Disclaimer:- मैं इस आलेख की वैज्ञानिक प्रमाणिकता साबित नहीं कर सकता हूँ, इसे एक दिमागी फितूर की परिकल्पना के रूप में ही स्वीकार कर सकते हैं।
लेखक - अवनीन्द्र सिंह जादौन
इटावा

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