21 अक्टूबर
का दिन देश के लिए ऐतिहासिक दिन है. इसे महज इसलिए याद नहीं किया जाना चाहिए कि इस
दिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया. यह
आज़ाद देश में पहली बार है जबकि 21 अक्टूबर को किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगा
फहराया. आज का दिन इसलिए गर्व का दिन है क्योंकि आज आज़ाद हिन्द सरकार की 75वीं वर्षगाँठ
है. यह उन लोगों के लिए अवश्य ही कौतूहल भरी बात होगी जिन्हें देश का इतिहास नहीं मालूम.
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर
1943 को नेता जी के द्वारा आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की गई.
कोलकाता में
अपने घर पर ही नजरबन्द किये गए नेता जी 18 जनवरी 1941 को गायब होकर काबुल होते हुए
जर्मनी पहुँच गए. वहां पहुँच उन्होंने हिटलर से मुलाकात की. वहीं सरदार अजीत सिंह ने
उन्हें आज़ाद हिन्द लश्कर के बारे में बताकर इसे और व्यापक रूप देने को कहा. इसके साथ-साथ
जापान में रासबिहारी बोस द्वारा बनाये आजाद हिन्द संघ का 1942 में एक सम्मेलन हुआ.
इसमें रासबिहारी बोस ने जापान शासन की सहमति से नेताजी को आमन्त्रित किया. मई 1943
में जापान आकर नेताजी ने प्रधानमन्त्री जनरल तोजो से भेंट कर अंग्रेज़ों से युद्ध की
अपनी योजना पर चर्चा की. नेताजी ने एक समारोह में 60,000 लोगों को सम्बोधित करते हुए
कहा- यह सेना न केवल भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करेगी, अपितु स्वतन्त्र
भारत की सेना का भी निर्माण करेगी. हमारी विजय तब पूर्ण होगी, जब हम ब्रिटिश साम्राज्य को दिल्ली के लाल क़िले में दफना देंगे. आज से हमारा
परस्पर अभिवादन जय हिन्द और हमारा नारा दिल्ली चलो होगा. उन्होंने 4 जुलाई
1943 को तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा का उद्घोष किया. इसके
बाद 21 अक्टूबर 1943 ई० को नेता जी ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार आज़ाद हिन्द
सरकार की स्थापना की. सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री
तथा सेनाध्यक्ष तीनों बने. वित्त विभाग एस० सी० चटर्जी को, प्रचार विभाग
एस० ए० अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया.
आज़ाद हिन्द
फ़ौज का प्रतीक चिह्न झंडे पर दहाड़ता हुए बाघ का चित्र था. क़दम-क़दम बढाए जा, खुशी के गीत गाए
जा
इस संगठन का वह गीत बना,
जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे. नेता
जी द्वारा अस्थायी सरकार का गठन कर लेना जितना महत्त्वपूर्ण था उतना महत्त्वपूर्ण उस
सरकार को अन्य देशों द्वारा मान्यता देना भी रहा. जर्मनी, जापान
तथा उनके समर्थक अनेक देशों द्वारा आज़ाद हिन्द सरकार को मान्यता प्रदान की गई. सिंगापुर
और रंगून में आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय बनाया गया. कालांतर में आज़ाद हिन्द फ़ौज
और सरकार का अंतिम परिणाम वह नहीं रहा जो नेता जी ने सोच रखा था. बावजूद इसके उनकी
सेना और सरकार की जबरदस्त उपस्थिति के चलते भी अंग्रेजो में खलबली मच गई थी. जिसके
चलते उन्हें देश से भागने का विचार करना पड़ा. आज़ाद भारत का ध्वज नेता जी लाल किले पर
लहराता हुआ देखना चाहते थे. संदिग्ध परिस्थितियों के चलते भले ही वे प्रत्यक्ष में
इस सपने को पूरा नहीं कर सके किन्तु उनके सपने को आज़ाद भारत के प्रधानमंत्री द्वारा
पूरा किया गया. यह नेता जी और उनके कर्तव्यनिष्ठ सेनानियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि
है. यह तथ्य अपने आपमें सत्य है कि आज़ाद भारत का पहला प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति कोई और है मगर इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अंग्रेजों
की गुलामी के बीच पूरी हनक के साथ देश की सरकार स्थापित कर उसके पहले राष्ट्रपति और
प्रधानमन्त्री के रूप में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को याद किया जायेगा.
आज, 21 अक्टूबर
2018 से एक नई परम्परा का सूत्रपात हुआ है. न केवल हमें बल्कि आने वाली पीढ़ियों को
भी इस दिन के बारे में, नेता जी के बारे में, अस्थायी सरकार गठन के बारे में, आज़ाद हिन्द फ़ौज के बारे
में, फ़ौज के सेनानियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
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