15 अक्तूबर 2018

कुम्भ नगरी ‘प्रयागराज’ में आपका स्वागत है

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश की धार्मिक नगरी इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज किया जा रहा है. यह परिवर्तन सिर्फ़ नाम का परिवर्तन नहीं वरन एक संस्कृति के पुनर्स्थापन का क़दम है. सनातन संस्कृति की पहचान के रूप में इलाहाबाद भले ही दस्तावेज़ों में, काग़ज़ातों में बीच स्वीकार रहा हो किंतु इसका वास्तविक स्वरूप प्रयागराज में ही अंतर्निहित है. कुम्भ नगरी प्रयागराज में आपका स्वागत है, लिखे हुए बोर्ड जगह-जगह इस शहर के मूल स्वरूप को बचाते दिखते हैं.

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो एक शहर लगभग चार सौ साल से अधिक समय बाद दस्तावेज़ों में अपने पुराने नाम को प्राप्त कर फिर से प्रयागराज होने जा रहा है. ऐसा कहा जाता है कि पुराणों में भी इसे प्रयागराज के नाम से वर्णित किया गया है. कालांतर में दीने-इलाही चलाए जाने के चलते अकबर के शासनकाल में इस स्थान का नाम बदल कर इलाहाबाद कर दिया गया था. अकबरनामा, आईने अकबरी व अन्य मुगलकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों से ज्ञात होता है कि अकबर ने सन 1574 के आसपास प्रयागराज में किले की नींव रखी. उसने यहां नया नगर बसाया जिसका नाम उसने इलाहाबाद रखा. उसके पहले तक इसे प्रयागराज के ही नाम से जाना जाता था.

इस पावन स्थान के नाम के सम्बंध में कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. तुलसीदास कृत रामचरित मानस में भी तीन नदियों के मिलन इस संगम स्थल को प्रयागराज के नाम से ही सम्बोधित किया गया है.
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।
कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥
 इसे इस कारण भी सत्य माना जा सकता है क्योंकि इलाहाबाद में आज  एक रेलवे स्टेशन का नाम प्रयाग ही है. वाल्मीकि रामायण में भी इसका ज़िक्र है. वन जाते समय श्रीराम प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर होते हुए गए थे तो वहां प्रयागराज का जिक्र हुआ है.

इस स्थान का नाम कब और कैसे बदला गया, इसकी चर्चा से बेहतर अब इसकी चर्चा करनी है कि आज़ाद भारत की सरकारों के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी रही कि इस स्थान को उसके मूल नाम से पहचान न दी गई. फ़िलहाल प्रयागराज कुम्भ के ठीक पहले अपने असली स्वरूप में आने वाला है. अगली बार यहाँ आने पर ‘कुम्भ नगरी प्रयाग में आपका स्वागत है’ लिखे बोर्ड हृदय को सुखद आनंद देंगे.

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