05 सितंबर 2018

प्यार एक शब्द या स्थिति नहीं


आधुनिक दौर में जहाँ सबकुछ सार्वजनिक है, अगोपन है वहाँ प्रेम को भी सार्वजनिक होना ही है. आखिर दौर नया है, सोच आधुनिक है, ज़माना नया है तो फिर ऐसे में प्यार का अंदाज़ भी नया होना चाहिए. प्रेम अब परदे के पीछे का मसला नहीं रह गया है बल्कि उसके खुलकर सामने आने में ही उसकी सार्थकता छिपी है. छिप-छिप कर देखना-मिलना, चोरी-चोरी एकदूसरे को देखना अब बीते ज़माने की बातें हो गईं हैं. अब तो पार्क में, मॉल में, रेस्टोरेंट में, थियेटर में, मेट्रो में, बस में, कॉलेज की कैंटीन में, लाइब्रेरी में और भी जगहें जहाँ कभी सोचा नहीं गया है (लिफ्ट, बाथरूम, ऑफिस, पार्क आदि) में प्रेम की पींगें निर्लज्ज तरीके से लगाते युवा देखने को मिल जाते हैं. ये निर्लज्ज शब्द उनके लिए है जिन्होंने प्रेम शब्द की गंभीरता को जाना ही नहीं. आज का युवा इसे समझ ही नहीं चुका है बल्कि उसका स्वाद भी ले चुका है. प्यार का ऐसा रूप देखकर कई बार एहसास होता है कि ये प्यार है या प्यार के नाम पर देह के प्रति आसक्ति है; प्रेम के नाम पर सेक्स के प्रति आकर्षण है?


आधुनिकता भरी सोच ने जीवन पद्धति को नकारने का काम किया है तो संस्कार, संस्कृति, परिवार, रिश्तों आदि को भी बहुत हलके से लिया है. इस सोच के चलते जीवन मूल्यों में बुरी तरह गिरावट देखने को मिली है जिसके परिणामस्वरूप प्रेम के नाम पर चल रहे छलावे को रोकने के किसी भी कदम को दकियानूसी बना दिया गया. इस तरह के रवैये के चलते युवा वर्ग प्रेम करने को अपना अधिकार मानकर खुलेआम विरोधी स्वरों के साथ सामने आ गया. प्रेम तो करना ही करना है, जैसी मानसिकता ने सामाजिकता को खतरे में ला दिया है. प्यार के अधिकारनुमा प्रदर्शन ने, बाज़ार द्वारा प्रेम को सर्वसुलभ बना देने से प्रेम मन, ह्रदय से आगे जाकर देह तक पहुँच जाने ने प्रेम का जैसा खुलापन दिखाया है वो छिछोरापन लगने लगा है. जहाँ चाहे वहाँ लिपटा-चिपटी करते, सार्वजनिक रूप से चूमा-चाटी में लिप्त युवा जोड़े किस तरह के प्रेम में मगन हैं ये खुद वे भी नहीं जानते. देह के उतार-चढ़ावों पर चढ़ते-उतरते, पहली नजर के प्रेम के नाम पर होंठों से गुजरते हुए शारीरिक संबंधों पर अपने प्यार की इतिश्री करने वालों को प्रेम की पावनता का एहसास कैसे हो सकता है?

दरअसल जिस तरह से प्रेम को, प्यार को विपरीतलिंगियों के मध्य अनिवार्य सम्बन्ध की तरह स्थापित किया जा रहा है उससे इस विकृति को बल मिला है. टीनएजर्स कहे जाने वालों में यदि किसी का विपरीतलिंगी साथी नहीं है तो उसे गंवार समझा जाता है; अत्याधुनिक समाज के चाल-चलन के अनुसार गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड जैसी अवधारणा अनिवार्य सी समझी जाने लगी है. प्यार के नाम पर इस भटकन को रोका जाए, प्रेम के नाम पर चलने वाले व्यापार को थामा जाए, प्रेम के नाम पर चल रही दैहिक दुकानों पर अंकुश लगाया जाए, प्रेम के नाम पर बरगलाने की घटनाओं पर नियंत्रण लगाया जाए. अविवाहित मातृत्व, कूड़े के ढेर पर मिलते नवजात बच्चे, यौनजनित बीमारियों की चपेट में आते युवा, प्रेम में असफल रहते युवाओं का नशे, अपराध, आत्महत्या जैसे क़दमों का अपनाना आदि-आदि ऐसा कुछ है जो प्यार के नाम को ही कलंकित कर रहा है. आधुनिकता को अपनाना बुरा नहीं है किन्तु आधुनिकता के नाम पर अंधे होकर बैठ जाना गलत है. ये समझना होगा, समझाना होगा कि प्रेम करना बुरा नहीं है, प्यार का प्रदर्शन बुरा नहीं है मगर उसमें फूहड़ता का होना, उसमें निर्लज्जता का समावेश, उसके द्वारा शारीरिकता की चाह रखना गलत है. 

ये जिम्मेवारी हम सभी की है कि हम अपने किशोरवय के बेटे-बेटियों को प्यार की गंभीरता समझाएं. हमें ही उनको इसका भान करवाना होगा कि जिसे वे प्यार समझ रहे हैं वो सिवाय शारीरिक आकर्षण के और कुछ नहीं. उनको उनके कैरियर और प्यार के बीच की बारीक रेखा को समझाने की जरूरत है. उनको ये भी बताने की आवश्यकता है कि दुनिया जैसी दिखती है वैसी होती नहीं है. आखिर रोज ही किसी न किसी बच्ची के साथ प्यार के नाम पर शारीरिक शोषण का खेल क्यों खेला जा रहा है? अब भी समय है, अपने बच्चों को हताशा, निराशा, अवसाद, अपराध आदि की काली-अँधेरी दुनिया में प्रविष्ट होने से रोकने के लिए. जागो आज ही, वर्ना कल तक तो बहुत देर हो जाएगी.

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