इस लेख को पढ़ने के पहले इसके साथ संलग्न चित्र अवश्य देखें.
एक चित्र में एक महिला के साथ बैठा हुआ कुत्ता दिख रहा है. दूसरे चित्र में एक
व्यक्ति जानवरों की तरह से सड़क पर चल रहा है, जबकि वह कपड़े पहने हुए है.
चित्र एक |
चित्र दो |
पहली तस्वीर में दिखाई देने वाला कुत्ता असल में कुत्ता नहीं
है बल्कि एक आदमी है. यह इस तरह की ड्रेस में इसलिए है क्योंकि इसे लगता है कि वो सेक्सुअली
एक कुत्ता है. वह चाहता है कि उसके साथ एक कुत्ते की तरह ही व्यवहार किया जाये. ऐसी
मानसिकता से ग्रसित लोगों के लिए ऐसी ड्रेस वे कम्पनियाँ बना रही हैं जो सेक्स टॉयज़
बना रही हैं. वे इस तरह की ड्रेस की बहुत ऊंची कीमत भी वसूलती हैं. इसके पीछे अभी
मेडिकल साइंस का पूर्ण विकास न कर पाना भी है. स्त्री-पुरुष को आपस में बदल देने
वाली मेडिकल साइंस अभी तक ऐसा कोई अविष्कार नहीं कर सकी है जिससे कि इंसान को कुत्ता
अथवा किसी अन्य जानवर में परिवर्तित किया जा सके. परिणामस्वरूप कम्पनियाँ इन मानसिक
कुत्तों को ड्रेस ही बेच रही है. ऐसे लोग अपने आपको ह्यूमन पप्स कहते हैं.
सम्पूर्ण विश्व में फैली LGBT कम्युनिटी की तरह यह भी एक तरह
की कम्युनिटी है. LGBT का तात्पर्य यहाँ Lesbian,
Gay, Bisexual और Transgender से है. LGBT
कम्युनिटी की तरह एक ह्यूमन पप्स कम्युनिटी भी दुनिया में मौजूद
है.
ये कम्युनिटी शुरू में छुपी हुई थी, लेकिन
अब इससे हज़ारों लोग जुड़े हुए हैं. आपको जानकार शायद आश्चर्य हो कि ब्रिटेन
के एंटवर्प शहर में मिस्टर पपी यूरोप की प्रतियोगिता आयोजित की
जाती है. इनके अपने प्राइड क्लब हैं, ये अपनी इस स्थिति का आनंद लेते हैं और अपनी शर्तों
पर जीनव जीने का दावा करते हैं. ब्रिटेन के एक चैनल channel4 पर 2016 में एक डॉक्युमेंट्री प्रसारित की गई थी और ह्यूमन
पप्स की जिंदगी को लोगों के सामने लाया था. जहां उस समय भी कुछ लोगों को ये बहुत अजीब
लगा था और कुछ ने इसका सपोर्ट किया था. सीक्रेट लाइफ ऑफ ह्यूमन पप्स डॉक्युमेंट्री
में पहली बार ह्यूमन पप्स को ढंग से दिखाया गया था. जहां इसे पहले सिर्फ सेक्स एडिक्शन
से जोड़कर देखा जाता था वहीं इस डॉक्युमेंट्री के बाद ये समझ आया कि इस तरह के लोगों
को वाकई पूरी तरह से कुत्ता बनकर रहना पसंद है. किसी समय किसी इन्सान द्वारा शौकिया
तौर पर शुरू की गई यह पप्स कम्युनिटी के सदस्यों की संख्या आज लाखों में पहुंच गई है.
ऐसे मानसिक कुत्तों के तमाम सारे क्लब भी बने हुए हैं. वैश्विक स्तर पर ये अनेक शहरों
में इकट्ठा होकर अपने अंदर के कुत्ते का गर्वीला आयोजन करते हैं. इस आयोजन में ये इंसानी-कुत्ते
अपने अधिकारों की मांग करते हैं. इनकी माँग रहती है कि सम्पूर्ण विश्व इन्हें उसी सम्मान
से स्वीकार करे जैसे आम लोगों को स्वीकार करती है.
इसी कम्युनिटी की तरह और भी दूसरी तरह की कम्युनिटी पाई जाती हैं,
जिसे ज़ूफाइल्स कहा जाता है. ये वो लोग हैं जिन्हें इंसानों से शारीरिक
आकर्षण नहीं होता है. इस कम्युनिटी में शामिल लोग सिर्फ जानवरों से सह-सम्बन्ध
बनाते हैं. जानवरों से शारीरिक सम्बन्ध बनाने वालों को इस कम्युनिटी में अलग-अलग
नामों से पहचाना जाता है. जैसे कुत्तों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने वालों को साइनोफाइल्स,
घोड़ों से साथ सम्बन्ध बनाने वालों को इक्विनोफाइल्स,
सुअर के साथ सम्बन्ध बनाने वालों को पोर्किनोफाइल्स
कहा जाता है. इसी तरह खुद को लड़की की तस्वीर में देखकर उत्तेजित होने वालों
को ऑटोगाइनेफाइल्स कहा जाता है, खुद को किसी जानवर
के यौन जीवन में मानने वालों को ऑटोज़ूफाइल्स, पेड़ो
से सेक्स करना पसंद करने वालों को डेंड्रोफाइल्स
और कीड़ों को अपने ऊपर फैलाकर यौन सुख का अनुभव लेने वालों को फॉर्मिकोफाइल्स
कहा जाता है. ये सब अपने आपको सामान्य और आम लोगों की तरह बताते हैं. वर्तमान में
इनकी संख्या 15 लाख से 20 लाख तक पहुंच चुकी है और अब ये अपने आयोजनों, आन्दोलनों
के द्वारा अपने अधिकारों की माँग करने लगे हैं.
आधुनिकता के वशीभूत कुछ लोगों के लिए भले ही ये आश्चर्य न हो
मगर सत्य यह है कि बहुत से देशों में यह वैधानिक है और बहुत से देशों में इस तरह
के संबंधों को प्रतिबंधित किया गया है. जिन देशों में इसे प्रतिबंधित किया गया है
वहां इसे लेकर बहुत नाराज़गी है. वे इसे भेदभाव बताते हैं और इसे समाप्त करने की
बात करते हैं. देखा जाये तो सबके अपने-अपने तर्क हैं. इनका कहना है कि समलैंगिकों
की संख्या ज्यादा रही इसके चलते उनकी मांगों को स्वीकार किया गया और बहुत से देशों
ने समलैंगिक संबंधों को मान्यता दे दी. वे अभी संख्या में कम हैं जिसके चलते वे अभी
खुली प्राइड परेड भी नहीं कर पाते हैं. ऐसी स्थिति में आकर समझ नहीं आता है कि
समाज किस दिशा में जा रहा है? शिक्षा, तकनीकी के विस्तार के साथ-साथ किस तरह की
मानसिकता का विकास होता जा रहा है? इसे विकास कहा जाये या मानवीय विकार की स्थिति,
समझ से परे है. जीवन की सत्यता यह है कि इसकी प्रत्येक यौनिक गतिविधि का मकसद जीवन
का विस्तार करना ही है. इसके बाद भी आज के तथाकथित समाजसेवी, मानवाधिकारवादी विकृति को गर्व के साथ सार्वजनिक करने से नहीं चूकते हैं.
इसको समानता का अधिकार दिलाने के लिए वे लगातार आन्दोलन कर रहे हैं.
इस तरह की असामान्य सेक्स प्रवृत्ति को मनोविज्ञान की भाषा
में पैराफीलिया कहा जाता है. यहाँ खुद को विपरीत सेक्स मानने वाले समलैंगिक हों या
फिर अपने आपको जानवर समझने वाले ऑटोज़ूफाइल्स, ये सब अपने
आपमें असामान्य मानसिक विकृतियां ही हैं. इसके बाद भी समाज में समलैंगिकता को
सामान्य व्यवहार समझा जाता है, माना जाता है. और तो और अब तो उसे क़ानूनी मान्यता
मिल गई है. संभव है कि आने वाले दिनों में ह्युमन पप्स कम्युनिटी भी अपने अधिकारों
और समानता के लिए आन्दोलन करे, न्यायालय में याचिका दायर करे और माननीय एक निर्णय
सुनाते हुए कह दें आज से ह्युमन पप्स कम्युनिटी के सभी सदस्यों को सामाजिक
स्वीकार्यता मिलती है. ऐसे सम्बन्ध गैर-आपराधिक हैं.
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