आज
आपके सामने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी लाना चाहते हैं, जो सरकारी सेवा में है और
जिम्मेवार पद पर है. इसके बाद भी सामाजिक कार्यों में जमकर रुचि लेते हैं, सक्रिय रहते
हैं. यूँ तो उन्हें हमारे जनपद जालौन के लोग ट्री-मैन कहकर सम्मान देते हैं पर यह
कहानी उससे कुछ अलग है. पहले आपको कुछ बता दें उनके ट्री-मैन संबोधन के लिए. असल
में आप रेलवे में पदासीन हैं किन्तु पर्यावरण के लिए, पौधारोपण के लिए लगातार,
नियमित रूप से सक्रिय रहते हैं. वे न केवल सक्रिय रहते हैं वरन पौधारोपण के लिए
पौधे भी उपलब्ध करवाते हैं, उनकी सुरक्षा करवाते हैं, उनके पल्लवित-पुष्पित करवाते
हैं. जगह का चयन करके वे पौधारोपण करवाने के बाद उनकी सुरक्षा का ख्याल रखते हैं.
इसके
अलावा रेलवे में अपनी सेवाएँ देने के कारण वे लाखों-लाख लोगों के संपर्क में भी
आते हैं. सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होने के कारण वे यहाँ भी अपने सक्रिय
मन-मष्तिष्क के चलते कार्यशील रहे. नौकरी को महज नौकरी न मानते हुए उसके अन्दर से
भी सामाजिकता निकालते रहे. ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व माननीय रविकांत शाक्या जी के इस
कार्य को आप सब उन्हीं की जुबानी पढ़ें तो ज्यादा आनंद आएगा.
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कभी कभी जिंदगी में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घट जाती हैं जिन के कारण जीवन मे
काफी बदलाव आ जाता है। ऐसे ही लगभग 35 वर्ष पूर्व मेरे फुफेरे भाई का बेटा मनोज जो
मुझसे लगभग 3 वर्ष बड़ा था और इंटर में पढ़ रहा था अचानक घर मे पड़ी डांट के कारण घर से
चला गया। जिसे आज तक परिवारीजन ढूंढ रहे हैं उसके लौट आने का विश्वास अभी भी है उन्हें।
भाई के परिवार का दुख देखकर मुझे भी एक लक्ष्य प्रदान कर दिया और इसकी शुरुआत मेरी
रेलवे में जॉब लगने के वर्ष 1995 से हुई।
ट्रेन में टिकट जांच के दौरान घर से भागे, बिछुड़े बालक,
बालिकाएं, युवक, युवतियां
मिले, जिनमे मध्य-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, बिहार, नेपाल,
बंगाल , हरियाणा इत्यादि से भागे हुए थे। उन्हें
येन-केन-प्रकारेण, साम, दाम, दंड, भेद से इमोशनली ब्लैकमेल कर उनके घर से सम्पर्क
स्थापित कर उन्हें स्वयं के खर्च पर उनके परिवारीजनों का सौंपा। परिवारीजन के आने तक
अपने घर मे रखा। आज भी बहुत से परिवार ऐसे हैं जो जुड़े हुए हैं। कई बार कुछ परिजनो
ने पैसे देने का प्रयास किया पर उनकी आंखों की तरल दृष्टि ही मेरा परितोष होती है लगता
है कि मेरा भतीजा वापस मिल गया।
इसी कड़ी में दिनांक 20 सितंबर को सिरौली (खागा) निवासी रामजी उर्फ पुष्पराज
सिंह सेंगर को उसके घर पहुंचाया। अब तक कुल 79 बच्चे सकुशल घर पहुंच चुके हैं और उनके
परिवार की अप्रतिम खुशी मेरे लिए भी मुस्कुराहट का कारण बनी।
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