पता नहीं मानव समाज
विकास के किस रास्ते पर है जहाँ मूल कार्यों को करने के लिए भी सरकारों को,
सामाजिक संगठनों को आगे आना पड़ता है. कभी स्वच्छता के नाम पर, कभी खुले में शौच न
जाने के सम्बन्ध में, कभी शिक्षा के नाम पर, कभी स्तनपान करवाने के नाम पर. आपको
शायद आश्चर्य लगे किन्तु यह सत्य है कि विगत कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
स्तनपान करवाने को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसी कड़ी में अगस्त
माह का प्रथम सप्ताह विश्व स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है. इसे
विद्रूपता ही कहा जायेगा कि अब माएं अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान करवाने से बच
रही हैं. इनके पीछे क्या कारण हैं, ये हर बिंदु के हिसाब से अलग-अलग है.
इस सप्ताह के दौरान माँ
के दूध के महत्त्व की जानकारी दी जाती है. माताओं को, समाज को बताया जाता है कि नवजात
शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है. माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी
बीमारियों से बचाता है. शिशुओं को जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध पिलाने के लिए
महिलाओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है. स्तनपान शिशु के जन्म के पश्चात
एक स्वाभाविक क्रिया है. इसके बारे में सही ज्ञान की जानकारी न होने से बच्चों में
कुपोषण एवं संक्रमण से दस्त शुरू हो जाते हैं. माँ के दूध में ज़रूरी पोषक तत्व, हार्मोन, प्रतिरोधक तत्त्व, आक्सीडेंट आदि होते हैं जो नवजात शिशु के स्वास्थ्य के लिए
आवश्यक माने जाने हैं. माँ का प्रथम दूध, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं वह गाढ़ा,
पीला होता है और यह शिशु जन्म से लेकर अगले चार-पाँच दिनों तक उत्पन्न
होता है. इसमें विटामिन, एन्टीबॉडी, अन्य
पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, जो नवजात शिशु को संक्रमणों से बचाता है,
प्रतिरक्षण करता है.
ऐसा नहीं है कि
वैश्विक स्तर पर किसी प्रोजेक्ट के अंतर्गत अथवा किसी सरकारी योजना के नाते नवजात
शिशुओं को स्तनपान करवाने के लिए आज जोर दिया जा रहा है. इधर लगातार देखने में आ
रहा है कि कामकाजी महिलायें, स्तनपान करवाने की समस्याएँ, शारीरिक सौन्दर्य बनाये
रखने की चाह में स्तनपान न करवाने की मंशा, जीरो फिगर जैसी कथित अवधारणा का पोषण
करने के कारण कम भोजन, पौष्टिक भोजन की कमी के चलते माताओं के स्तनों में कम दूध
का आना अथवा न आना, स्तनपान करवाने की सही स्थिति की जानकारी न होने से असुविधा
महसूस करना आदि ऐसी समस्याएं हैं, जिनके कारण स्तनपान को बढ़ावा देने की, इसके
प्रति जागरूकता लाने की बात की जा रही है. असल में ये सारी समस्याएं कहीं न कहीं
मानवजन्य हैं मगर यदि गहराई से देखा जाये तो स्तनपान के अनेक फ़ायदे हैं. नवजात शिशु
के लिए माँ के दूध से बेहतर और कोई भी दूध नहीं होता है. माँ का दूध सुपाच्य होता है
जो नवजात शिशु को पेट सम्बन्धी परेशानियों से बचाता है. स्तनपान से शिशु की प्रतिरोधक
क्षमता भी बढ़ती है, इसका कारण माता के दूध में तमाम सारे पौष्टिक तत्त्वों का समावेश
होना है. स्तनपान कराने वाली माँ और उस शिशु के बीच एक तरह की भावनात्मकता का
विकास होता है, इससे शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है. नवजात शिशुओं के साथ-साथ
माताओं को भी स्तनपान से लाभ होता है. ऐसी माताएं स्तन कैंसर अथवा गर्भाशय के कैंसर
के खतरे में कम आती हैं. वैज्ञानिक शोधों के आधार पर कहा गया है कि माँ के दूध में
पाए जाने वाले तत्त्व डी०एच०ए० (DHA) तथा ए०ए० (AA)
मस्तिष्क की कोशिकाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
स्तनपान के अनेक
फायदे बताते हुए इस सप्ताह में सभी को जागरूक किया जाता है. इससे ज्यादा हास्यास्पद
स्थिति समाज के लिए क्या होगी कि एक तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्तनपान करवाए जाने
का अभियान चलाया जाता है वहीं दूसरी तरफ पत्रिका के मुखपृष्ठ पर स्तनपान करवाती
तस्वीर के साथ सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान करवाए जाने का अभियान महिलाओं द्वारा
छेड़ा जाता है. फ़िलहाल वैज्ञानिक रूप से, चिकित्सकीय रूप से यह साबित हो चुका है कि
नवजात शिशु के लिए माँ का दूध अत्यंत लाभकारी है. ऐसे में भावी पीढ़ी के विकास के
लिए इस तरफ भी समाज को, युवाओं को, नवदंपत्ति को जागरूक होने की आवश्यकता है.
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