18 अगस्त 2018

तन्हा रह गया अटल जोड़ी का जोड़ीदार

विगत लगभग एक दशक तक सार्वजनिक जीवन से अदृश्य रहे और मीडिया की सुर्ख़ियों से लगभग अदृश्य से रहे अटल जी अपनी अनंत यात्रा के बाद से लगातार सुर्ख़ियों में हैं. किसी ब्लॉग के माध्यम से, किसी लेख के द्वारा, कहीं कविताओं के रूप में, कहीं भाषणों के द्वारा, कहीं समाचारों के द्वारा वे लगातार जनमानस के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं. अत्यंत सामान्य परिवार से निकल कर खुद को सर्वोच्च तक ले जाने वाले अटल जी वास्तविक रूप में इसके हक़दार हैं भी कि उनके व्यक्तित्व पर लगातार चर्चा हो. ऐसे दुखद और संवेदना भरे समय में उनकी चर्चाओं के बीच एक और व्यक्ति ऐसा है जो इसी तरह की चर्चाओं का हक़दार है. अटल जी को सर्वोच्च तक पहुँचने में सहायक बने उस व्यक्ति का योगदान का योगदान किसी भी रूप में कम नहीं है. न ही अटल जी के विकास में और न ही भारतीय जनता पार्टी के विकास में. ऐसा व्यक्ति जो छह दशक से अधिक समय से अटल जी के साथ परछाईं की भांति साथ रहा, दिल-धड़कन की तरह साथ रहा, आज वह उनके जाने के बाद खुद को किस तरह अकेला, नितांत अकेला महसूस कर रहा है यह अंतिम विदाई के क्षणों में साफ़-साफ़ दिखाई दिया. अपने अभिन्न मित्र, अपने हमसाया, अपने राजनैतिक जोड़ीदार के निधन पर लाल कृष्ण आडवाणी अत्यंत दुखी, कमजोर, भावुक नजर आये. अटल जी को अंतिम विदाई देने के समय और वापस लौटने के दौरान उनकी भाव-भंगिमा अपने आप सबकुछ बयान कर रही थी.


दुःख होना स्वाभाविक भी है. आखिर उन दोनों लोगों का साथ कोई दो-चार वर्षों का नहीं था. उन दोनों की दोस्ती में कभी अविश्वास जैसी बात दिखाई नहीं दी. ऐसे में अब जबकि लाल कृष्ण आडवाणी नई तरह की दिखाई देती भाजपा में महज नाममात्र वाले मार्गदर्शक के रूप में नजर आते हैं उस समय उनका एकदम से तनहा रह जाने का कष्ट सिर्फ वही समझ सकते हैं. नितांत फ़िल्मी अंदाज में हुई उन दोनों व्यक्तियों की पहली मुलाकात इस तरह देश की विश्वसनीय राजनैतिक जोड़ी के रूप में जानी-पहचानी जाने लगेगी, इसका अंदाजा शायद उन लोगों को स्वयं भी न होगा. सन 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सहयोगी के रूप में अटल जी उनके साथ ट्रेन से मुंबई जा रहे थे. उस समय लालकृष्ण आडवाणी कोटा में प्रचारक हुआ करते थे. उनको पता लगा कि वे लोग स्टेशन से गुजरने वाले हैं तो आडवाणी जी वहां मिलने आ गये. वहीं पर मुखर्जी ने दोनों की मुलाकात करवाई थी. उसके बाद अटल-आडवाणी जोड़ी देश की सर्वाधिक प्रसिद्द राजनैतिक जोड़ी के रूप में सामने आई. अटल-आडवाणी एक-दूसरे के पूरक बनकर जनसंघ में उभरे और फिर भाजपा के गठन से केंद्र में सरकार बनाने तक साथ रहे. भाषण देने की अद्भुत कला के चलते सन 1957 में अटल जी को जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय के कहने पर लोकसभा भेजा गया. अटल जी ने तभी लाल कृष्ण आडवाणी को अपनी मदद के लिए दिल्ली बुला लिया.


आडवाणी को अपने साथ रखना, उनकी राजनैतिक सहायता लेना अटल जी की एक तरह की मजबूरी भी थी. उस समय जनसंघ के एक महत्त्वपूर्ण नेता बलराज मधोक अटल जी के लिए खतरा बने हुए थे. मधोक अपने आपमें कट्टर विचारों की छवि वाले व्यक्ति थे. अटल जी कट्टर विचारों की जगह उदार, संतुलित वैचारिकी को पसंद किया करते थे. इसी के चलते अटल जी और बलराज मधोक में मतभेद बने रहते थे. एकाधिक अवसरों पर मधोक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक एम एस गोवलकर से शिकायत भी की थी. उसी दौरान सन 1968 में जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय की अचानक मृत्यु के बाद अटल जी पार्टी अध्यक्ष बने. पांच साल की कार्यकाल समाप्ति के बाद जब पार्टी की कमान लाल कृष्ण आडवाणी को मिली तो उन्होंने मधोक को जनसंघ से निष्कासित कर दिया. यह वाजपेयी के लिए एक राहत जैसी बात तो थी ही, राजनैतिक परिदृश्य में आडवाणी जी का उदय भी था. इसके बाद तो दोनों में विश्वसनीयता और गहरा गई. दिल्ली की सड़कों पर स्कूटर से घूमने, चाट खाने दे शुरू हुआ दोस्ती का सफ़र लगातार आगे ही बढ़ता रहा चाहे वह आपातकाल की जेल हो या सत्ता में मंत्रिमंडल, दोनों एकसाथ ही रहे.


सन 1984 में हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी पूरे देश में महज दो सीटों पर अपनी जीत दर्ज कर पाई. इसके बाद आज देश के बहुसंख्यक राज्यों में भाजपा के सत्तासीन होने में अटल-आडवाणी की जोड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है. आज इसे भले ही मोदी लहर कहकर ख़ारिज कर दिया जाये मगर सत्य यही है कि इसकी नींव इसी जोड़ी ने रखी थी. यद्यपि उनकी दोस्ती के इस लम्बे समय में कई बार उनके बीच मतभेद की खबरें सामने आईं लेकिन दोनों नेताओं के संतुलित व्यवहार ने ऐसा होने न दिया. आडवाणी जी का अटल जी के प्रति समर्पण महज इतने से समझा जा सकता है कि जब उन्होंने 90 के दशक में रथ यात्रा निकाली उस समय उनकी लोकप्रियता भी चरम पर थी. इसके बाद भी उन्होंने ही प्रधानमंत्री पद के लिए अटल जी का नाम प्रस्तावित किया था. आडवाणी जी सदैव अटल के नेतृत्व में सारथी की भूमिका में नजर आते रहे. इसे इसी जोड़ी की विश्वसनीयता कहा जायेगा कि जब सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तक महज दो सीटों वाली भाजपा ने जब अगले आम चुनाव में भाजपा अटल-आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान के नारे के साथ प्रचार अभियान आरम्भ किया तो उसकी सीटों की संख्या 02 से बढ़कर 89 तक जा पहुँची.

इस बात की जानकारी भी शायद बहुत कम लोगों को होगी कि सबसे पहले आडवाणी जी ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर अटल जी को भारत रत्न देने की मांग की थी. उन्होंने अपने पत्र में सरकार के सामने दस बिंदु रखते हुए बताया था कि अटल जी को भारत रत्न क्यों दिया जाए. उस सरकार में यह माँग पूरी न हो सकी थी किन्तु सन 2014 भाजपा सरकार बनने के बाद अटल जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया. अटल-आडवाणी की दोस्ती को गंभीरता से देखने वाले सहज रूप से आकलन कर लेंगे कि दोनों ने एक-दूसरे पर भरपूर विश्वास किया और उसी का सुखद परिणाम उनको इस रूप में मिला कि उनके द्वारा सन 1980 में भाजपा के रूप में रोपा गया बीज आज वट वृक्ष बन कर खड़ा हुआ है. इस वट वृक्ष में यद्यपि आडवाणी जी खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उनके नेतृत्व में भाजपा आशातीत परिणाम हासिल न कर सकी. कालांतर में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने प्रचंड प्रदर्शन करते हुए बहुतायत राज्यों में खुद को खड़ा किया. ऐसे समय में जबकि आडवाणी जी की मेहनत से विशाल स्वरूप पाने वाली पार्टी उनके अस्तित्व को लगभग नकारने में लगी है, उनका आहत होना स्वाभाविक है.

वर्तमान में भाजपा के सत्ता में होने के बाद भी आडवाणी जी पार्टी के लिए निर्णय लेने वाली दो महत्त्वपूर्ण समितियों- संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में नहीं हैं. आडवाणी जी को अटल जी की कमी किस कदर महसूस हो रही है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अटल जी के निधन की खबर सुनकर आडवाणी ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. इसके बाद वे श्रद्धांजलि देने कृष्ण मेनन मार्ग ही पहुंचे थे, उससे पहले किसी से भी नहीं मिले. आडवाणी जी ने अटल जी के निधन पश्चात् अपने पत्र में अपने और अटल जी के छह दशक से अधिक की दोस्ती को याद किया. अटल जी के जाने के बाद आडवाणी जी नितांत तन्हा हो गए हैं और इसके साथ ही अटल-आडवाणी-जोशी की त्रिमूर्ति भी स्वभाविक रुप से खत्म हो गई है.

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