संसद का काम देश के
सन्दर्भ में नीतियां बनाना होता है और इसीलिए देश भर से प्रति पांच साल में सांसद
चुनकर भेजे जाते हैं. इनके चुनाव में जहाँ अरबों रुपये खर्च होते हैं वहीं संसद के
दोनों सदनों की कार्यवाही में भी लाखों-करोड़ों रुपयों का व्यय होता है. ऐसी स्थिति
के बाद भी वे सदस्य जिन्हें मतदाता, मीडिया माननीय पुकारते हुए थकता नहीं है विगत
कई वर्षों से देशहित के प्रति लापरवाही दिखाते आ रहे हैं. इस बार लोकसभा और
राज्यसभा को विपक्षियों द्वारा पूरी तरह से बाधित किया गया. यदि कहा जाये कि चंद
सदस्यों ने समूची लोकसभा और राज्यसभा को बंधक बना रखा था तो कोई अतिश्योक्ति न
होगी. आज जबकि संसद में बजट सत्र के दूसरे भाग का समापन हुआ तब दिए गए आँकड़ों से
सामने निकल कर आया कि लोकसभा में महज चार विधेयक पारित किये जा सके. इसके साथ-साथ
लोकसभा में कुल कार्य तेईस प्रतिशत हुआ जबकि राज्यसभा में यह थोड़ा सा अधिक जाकर
अट्ठाईस प्रतिशत तक जा पहुँचा. सीधी सी बात है कि जिस सदन को शत-प्रतिशत चलना
चाहिए, अपना कार्य करना चाहिय वह इस तरह से लापरवाह बना हुआ है. यहाँ के सदस्यों
को समझना होगा कि उनकी कार्यवाही में खर्च होता धन उसी जनता का है जिसके हितार्थ
वे सभी लोग सदन में भेजे गए हैं.
इसी तरह हालिया
समाचारों से ज्ञात हुआ कि राज्यसभा के कुछ सदस्य तो ऐसे रहे जिन्होंने पूरे छह साल
में एक भी सवाल नहीं पूछा. सदन में उपस्थिति को लेकर भी क्षोभजनक स्थिति रही. देश
के लिए मानक समझे जाने वाले सदस्यों ने भी सदन में उपस्थित रहकर अपनी मर्यादा,
दायित्व का बोध निर्वहन करना उचित नहीं समझा. ऐसे में किसी सदस्य का अपने वेतन का
दान-स्वरूप दे देना ही उसे महान नहीं बना देता है. ऐसे सदस्यों को समझना होगा कि
यदि वे निर्वाचित होकर अथवा मनोनीत होकर सदन में भेजे गए हैं तो वहां भी उनका कुछ
कर्तव्य है, दायित्व है. वहां भी उनके कुछ कार्य हैं, उनकी कुछ जिम्मेवारियां हैं.
इनको अपने-अपने कार्यों, अपने-अपने दायित्वों के प्रति सजग और जागरूक रहने की
आवश्यकता है. यहाँ आकर सदन को भी स्वतः संज्ञान लेकर ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने की
जरूरत है.
इधर देखने में आ रहा
है कि सदन के अन्दर एक-दूसरे के दुश्मन सरीखे दिखाई देने वाले सदस्य सदन के बाहर गलबहियाँ
करते दिखते हैं. ठहाके लगाते नजर आते हैं. यही सदस्य देशहित में पारित होने वाले विधेयकों
को लेकर जबरदस्त खिलाफत करते दिखते हैं किन्तु अपने वेतन-भत्तों के सन्दर्भ में एकसुर
से साथ देते नजर आते हैं. इन सभी को समझना होगा कि सदन किसी भी तरह से मौज-मस्ती
या तफरी का मंच नहीं है और न ही खुद को देश भर में प्रसारित-प्रचारित करने का
माध्यम नहीं है. किसी भी सदस्य को यहाँ भेजकर सम्बंधित क्षेत्र का मतदाता अपने
विकास की राह यहाँ के द्वारा खुलती देखता है. इसके बाद भी इन सदस्यों का सदन को बाधित
किये रहना न केवल मतदाताओं के साथ बेईमानी है वरन सम्पूर्ण देश के साथ धोखा है.
ऐसी स्थिति में सदन को, माननीय अध्यक्ष, सभापति को संज्ञान लेने की आवश्यकता है.
महामहिम राष्ट्रपति महोदय को भी ऐसे समय में कार्यवाही करने की आवश्यकता है. आखिर
देश की सर्वोच्च शक्तियों में संविधान, सदन के साथ-साथ राष्ट्रपति महोदय को भी
गरिमा हासिल है. इन सदस्यों को समझना होगा कि टीवी पर प्रसारित होने वाली कार्यवाही
के चलते जनता भी इनके असल मंसूबों को समझ-जान चुकी है. ऐसे में इन सदस्यों को आपसी
विरोध की नौटंकी बंद करके देशहित में सदन में कार्य करना चाहिए.
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