समाज असंवेदनशील हो गया है या हम सब, ये समझ से बाहर है. अब
तो हम बच्चियों के साथ होने वाली दुराचार की घटनाओं को भी धर्म, जाति विचारधारा के
आधार पर आंकने लगे हैं. इधर विगत कुछ दिनों से बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ
बहुतायत में सामने आईं. कुछ घटनाओं विशेष में समाज के वर्ग विशेष का विरोध,
सक्रियता देखने को मिली शेष सभी मामलों में वह चुप्पी साधे रहा. ऐसा वर्ग अपने
आपको बुद्धिजीवी घोषित करता है. विगत दिनों कठुआ रेप काण्ड चर्चा का विषय बना. इसमें
एक बच्ची के साथ रेप की घटना को मंदिर में अंजाम दिए जाने के संकेत मिले. ऐसा
संकेत आते ही कि बच्ची जिसकी रेप के बाद हत्या कर दी गई, मुस्लिम समुदाय से है,
बलात्कार करने वाला आरोपी हिन्दू समुदाय से है, बलात्कार से पहले अपहरण और उस
बच्ची को रखने का स्थान मंदिर है समाज का एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी तबका तख्तियां,
मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतर आया. जस्टिस फॉर... की तख्तियां हवा में तैरने
लगीं, सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की प्रोफाइल पिक्चर बदलने लगी, लोगों ने जस्टिस
फॉर... का अभियान सा छेड़ दिया. बच्ची के साथ रेप और उसकी हत्या को लेकर न केवल
मुस्लिम समुदाय वरन हिन्दुओं ने भी अपना पुरजोर विरोध दर्ज करवाया. मुस्लिम समुदाय
के साथ जुलूस निकालने से लेकर मोमबत्तियां जलाने तक, सरकार-विरोधी नारे लगाने तक
बराबर से साथ दिया.
इसी बीच एक और बच्ची ऐसे दुर्दांत अपराधियों का शिकार बन गई. इस
बार शोषित बच्ची का धर्म अलग था. आरोपी का मजहब अलग था. जहाँ उसके साथ कई-कई बार
बलात्कार हुआ वह जगह अलग थी इस कारण से विरोध के स्वर भी कमजोर रहे. अबकी शोषित
बच्ची हिन्दू समुदाय से निकली. बलात्कारी आरोपी एक मौलवी निकला और वह जगह जहाँ उस
बच्ची के साथ बार-बार, कई बार बलात्कार हुआ वह मदरसा निकला. अबकी बार वे सारे
बुद्धिजीवी जो कठुआ कांड में दहाड़ें मार-मार के रो रहे थे, मोमबतियां जला-जलाकर
अँधेरे को भगा रहे थे, सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर को काला करके विरोध
दर्ज करवा रहे थे वे अचानक न जाने कहाँ अलोप हो गए. इस बच्ची के बलात्कार पर वे
कथित बुद्धिजीवी तो सामने नहीं आये वरन मुस्लिम समुदाय के मानसिक रोगी और मीडिया
के मानसिक भडुए अवश्य ही सामने नजर आने लगे. जहाँ पूरा हिन्दू समुदाय कठुआ कांड पर
मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ा हुआ था वहीं इस मदरसा काण्ड पर मुस्लिम समुदाय उस बच्ची
को भाभी के संबोधन से पुकारने लगा. उस बच्ची और आरोपी मौलवी के विवाह की बात करना
लगा. इन मुस्लिमों के द्वारा जस्टिस फॉर निकाह आरम्भ किया गया. मानसिक पतन की इतनी
पराकाष्ठ शायद ही किसी दौर में देखने को मिली होगी.
ऐसी घटनाओं के बाद इस मुस्लिम समुदाय की ऐसी हरकतें आँखें
खोलने वाली हैं. एक रेप पीड़ित बच्ची के साथ खड़े होने के बजाय वे सब अपने मजहब के
उस आरोपी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. देखा जाये तो न केवल खड़े दिखाई दे रहे हैं
वरन पुरजोर ढंग से उस आरोपी के समर्थन में खड़े होकर ऐसा माहौल बनाने में लगे हैं
कि वह बच्ची स्वेच्छा से मदरसे में उस मौलवी से शारीरिक सम्बन्ध बनाने गई थी. इस
पूरे माहौल को कुछ मीडिया संगठन भी हवा देने में लगे हैं. ऐसे समय में वे सभी
बुद्धिजीवी संज्ञा-शून्य पड़े हैं. उनके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा है. उनके
द्वारा कोई मोमबत्ती नहीं जलाई जा रही है. किसी की प्रोफाइल पिक्चर काली नहीं हो
रही है. हिन्दू विरोध का, भाजपा विरोध का या कहें कि मोदी विरोध का इससे घिनौना
कदम कभी देखने को नहीं मिला है. ऐसे लोग जो जाति, धर्म देखकर बच्चियों के साथ खड़े
होते हैं, वे कहीं न कहीं अपनी खुद की बच्चियों के लिए खतरनाक अवसरों को जन्म दे
रहे हैं. यहाँ समझने की बात है कि अपराधी सिर्फ और सिर्फ अपराधी है. उसके लिए हवस
का साधन कोई स्त्री है, भले ही वह कुछ माह की बच्ची हो या फिर कई साल की वृद्धा
मगर हम सब तो अपने आपको बुद्धिजीवी, जागरूक कहते हैं. हमें तो सजग होने की, सतर्क
होने की, निष्पक्ष होने की आवश्यकता है.
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