बड़े जोर-शोर से कई सारे लोगों की भीड़ ने जिन्दाबाद-मुर्दाबाद
करते हुए शहर में हलचल मचा दी। दुकानदार अपनी-अपनी दुकान बंद कर इधर-उधर भागने लगे
हैं। सड़कों पर टहलते लोग भी सिर छुपाने की जगह देखने लगे। लोगों को डर लग रहा था कि
कहीं किसी तरह का बलवा न हो जाए। भीड़ पूरी ताकत के साथ चीखती हुई शहर को बंद करा रही
थी, जो दुकान, स्कूल बंद नही
करता उसके साथ मारपीट भी हो रही थी। एकाएक भीड़ के नेतानुमा इन्सान ने भीड़ का मुंह
सरकारी संपत्ति की ओर मोड़ दिया। अब भीड़ सरकारी संपत्ति की ओर दौड़ पड़ी।
आगे क्या हुआ यह बताने के पहले आपको बताते चलें कि यह भीड़ किस
बात के लिए है, क्यों हंगामा कर रही है, क्यों दुकानों आदि को बंद करा रही है, क्यों अब सरकारी
संपत्ति की ओर मुड रही है? ये भीड़ है नए-नए सोशल मीडीय
उपभोगकर्ताओं की जिन्होंने एक संगठन बना कर अपनी अनर्गल टाइप वाली पोस्ट पर भी
लाइक न करने वालों, टिप्पणी न करने वालों, शेयर न करने वालों के विरुद्ध आन्दोलन खड़ा
कर रखा है। इनकी मांग थी कि जितने लोग फ्रेंड-लिस्ट में हैं उन्हें हरहाल में प्रत्येक
पोस्ट पर कम से कम दस टिप्पणी जरुर करनी चाहिए, उसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करना
चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो सरकार इस तरह की व्यवस्था करे कि प्रत्येक पोस्ट पर
दस टिप्पणियां प्रकाशित हों। सरकार से कोई आश्वासन तो मिला नहीं, हाँ डाटा चोरी की
खबरें जरूर आने लगीं। कुछ लोगों ने खबर फैला दी कि सरकार इसे बंद करने वाली है,
सदा-सदा के लिए। नव-सोशल लिक्खाड़ों को लगा जैसे उनकी दुनिया ही उजड़ जाएगी। बस फिर
क्या था, इन लिक्खाड़ों के नव-नियुक्त संगठन "नव-सोशल मीडिया लिक्खाड़ संघर्ष मोर्चा"
ने हड़ताल कर शहर में हंगामा शुरू कर दिया।
अब भीड़ की बात, भीड़
अपनी पूरी ताकत से अब कुछ अलग करने के विचार में आ गई। सरकारी संपत्ति होती ही ऐसी
है कि उसमें चाहे आग लगाओ, चाहे तोडो , चाहे उसको चुरा ले जाओ, न तो अपना नुकसान होता है,
न अपने रिश्तेदारों का, न अपने मित्रों का।
कभी विचार किया आपने इस पर, कहीं कोई बस दुर्घटना होती है और भीड़ जाकर आग लगा देती
है पोस्ट-ऑफिस में। अब कोई बताये कि उस बस दुर्घटना में पोस्ट-ऑफिस का क्या दोष?
उसमें आग क्यों लगाई गई? सरकारी संपत्ति का नुकसान करने का बाद सीना तान कर,
ताल ठोंक कर अपने कारनामों का बखान मीडिया के सामने करो कोई कुछ करने
वाला तो है नही हाँ आपके नेता बनने के चांस बढ़ जाते हैं। इसी नेतागीरी के चक्कर में
एक नव-नियुक्त सोशल मीडिया लिक्खाड़ जोश में सबसे आगे जाकर सरकारी संपत्ति को नुकसान
पहुँचाने के लिए दौड़ पड़ा। सामने एक सरकारी बस, पोस्ट ऑफिस दिख
रहा था, सोचा अब तो हीरो बन ही गए। इससे पहले कि किसी भी चीज
को हाथ लगाया जाता, सामने से अचानक कई सारे पुलिस वाले प्रकट हो गए। घबरा कर कुछ समझ
में नहीं आया, इससे पहले कि वे भाग पाते पुलिस वालों ने घेर लिया।
भागने के सारे के सारे प्रयास धरे के धरे दिखने लगे। अब वे न तो भाग पा रहे थे न ही
बचाव के लिए चिल्ला पा रहे थे। पुलिस वालों ने पकड़ कर हिलाना-डुलना शुरू कर दिया। इससे
पहले कि पुलिस की लाठी स्वागत में देह से चिपकती, मेरी नींद खुल गई, देखा मेरा छोटा भाई मुझे जगा रहा है।
जागने पर ख़ुद को हक्का बक्का पाया। जब ख़ुद को सामान्य स्थिति
में पाया तो सोचने लगा कि हमारे देश में हो भी तो यही रहा है। किसी भी बात पर कोई भी
हड़ताल करना शुरू कर देता है। बिना यह देखे कि किसी तरह की तोड़-फोड़ समस्या का हल नहीं
बल्कि समस्या को और बढ़ाना है। हम बिना इस बात की परवाह किए कि हमारे द्वारा नुकसान
की जा रही संपत्ति हमारी ही है, हम तोड़-फोड़ करते
रहते हैं। सर झटक कर बिस्तर से उठ बैठा और सोचने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि फ़िर से सपने
में "नव-सोशल मीडिया लिक्खाड़ संघर्ष मोर्चा" ट्रेन रोकने को निकल पड़े।
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