बीते दिन दिल में हरदम बसे रहते हैं और जैसे ही कोई अपना मिलता है, वे सामने आ जाते हैं. साइंस कॉलेज, ग्वालियर के छात्रावास में रहने के बजाय उस छात्रावास जीवन को आत्मसात कर चुके लोग किसी अनदेखी डोर से आज तक बँधे हुए हैं. इसी डोर के सहारे सब खिंचे चले आते हैं, अपने-अपने समय को वर्तमान में उतार लाते हैं. उसके बाद तो सारी व्यस्तता ग़ायब, सारी ज़िम्मेवरियाँ एक तरफ़, सारी गम्भीरता उड़नछू. बस होती हैं तो कहानियाँ, पुराने लोगों की बातें, हँसी-ठहाके, शरारतें.
कुछ ऐसा ही हुआ 05 फ़रवरी 2018 को छात्रावासी भाई की बेटियों के वैवाहिक अवसर पर. कुछ भाई मिले और विवाह का उल्लास कई-कई गुना बढ़ गया. हँसी-ठहाकों से पंडाल गूँज रहा था, आगंतुक भी विस्मित थे. उसी समय सुरक्षा-कर्मियों से घिरे, भीड़ के बीच गम्भीर मुख-मुद्रा में किसी का प्रवेश हुआ. छतरवासी भाइयों ने अपने ठहाकों को विराम देकर एकसुर में पुकारा, बघेल भाईसाहब. अगले क्षण उस आने वाले व्यक्ति को ज्यों ही सबने परिचय दिया, उनकी मुख-मुद्रा की गम्भीरता ग़ायब हो गई. चेहरे पर प्रसन्नता के भाव तैरने लगे. उनकी भाव-भंगिमा देख कर उनके सुरक्षा-कर्मी निश्चिन्त हो गए कि वे अपने परिवार के बीच ही हैं.
जी हाँ, वे भी साइंस कॉलेज छात्रावास परिवार के सदस्य हैं. ऐसे सदस्य जिन्होंने हॉस्टल लाइफ़ को न केवल जिया बल्कि उसे आज तक सहेजे रखा. वे अब अपने समय की चर्चा कर रहे थे, हम सबकी शैतानियाँ पूछ रहे थे. अपने और अपने साथी भाइयों के बारे में बता रहे थे और हॉस्टल की पारिवारिक मर्यादा को भी याद कर रहे थे. चार-पाँच बार के संसद सदस्य, वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल भाईसाहब वैवाहिक कार्यक्रम में चंद पलों के लिए ही आए थे पर हॉस्टल परिजनों को देख समय को भूल बैठे.
उनकी सहजता, हॉस्टल लाइफ़ के अनुभवों पर साफ़गोई देखकर एहसास हुआ कि हमारे बड़े भाइयों ने जिस पारिवारिक संस्कारों का बीज हॉस्टल में बोया था, वह सुखद छाँव हम सभी भाइयों को दे रहा है.
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