सम्बन्ध क्या हैं? रिश्ते क्या हैं?
रिश्तों और संबंधों में आपसी सामंजस्य, साहचर्य किस तरह का है? क्या रिश्ते और
सम्बन्ध एक ही हैं? क्या रिश्ते और सम्बन्ध आपस में एकसमान भाव रखते हैं? ये ऐसे
सवाल हैं जो आये दिन दिमाग में उलझन तो पैदा ही करते हैं, दिल में भी उथल-पुथल
मचाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार हम संबंधों को लेकर सजग होते हैं और कई बार
रिश्तों का महत्त्व नहीं समझते हैं. इसके अलावा बहुत बार ऐसा भी होता है कि किसी
व्यक्ति के लिए संबंधों के साथ-साथ रिश्तों की भी महत्ता होती है. इसके साथ-साथ
समाज में ऐसे लोगों से भी सामना होता है जिनका सम्बन्ध सिर्फ उन्हीं लोगों से अधिक
होता है जो उनके साथ किसी न किसी तरह का रिश्तेनुमा व्यवहार रखते हैं. वर्तमान
स्थितियों को देखते हुए आज बहुतेरे लोग रिश्तों के साथ संबंधों को अहमियत देते
दिखाई देते हैं जबकि बहुत से लोग संबंधों को तवज्जो देते हैं.
यहाँ समझने का विषय मात्र इतना है कि
किसी के लिए भी संबंधों और रिश्तों में अंतर कैसा है? इन दोनों शब्दों की परिभाषा
उसके लिए किस स्तर की है? असल में आज की भौतिकतावादी दुनिया में हम संबंधों और
रिश्तों की महत्ता को भूल चुके हैं. आज हम में से बहुतों के लिए रिश्तों का कोई
महत्त्व नहीं. ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं. और आश्चर्य की बात ये कि
ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया
है. माता-पिता, भाई-बहिन आदि रक्त-सम्बन्धियों के अलावा एक रिश्ता आपस में सामाजिक
रूप से इस तरह निर्मित किया गया है जो पावनता में, विश्वास में किसी भी रिश्ते से
पीछे नहीं बैठता है. पति-पत्नी के रूप में बनाया गया यह रिश्ता भी आज कसौटी पर खड़ा
कर दिया गया है. आये दिन इस रिश्ते को भी परीक्षा देनी पड़ती है. कभी इन दोनों को
आपस में और कभी इन दोनों को सामाजिक रूप में तो कभी इनको पारिवारिक रूप में. समय
के साथ माता-पिता, भाई-बहिन आदि से दूरी बनती जाती है, भले ही ये दूरी दिल से न
बने मगर ऐसा अपने रोजगार, कारोबार या अन्य कार्यों के चलते भौगौलिक रूप से अवश्य
ही हो जाता है. इन रिश्तों से दूरी बनने के बाद भी पति-पति साथ रहते हैं. इधर
देखने में आ रहा है कि पति-पत्नी आपस में अहंकारी भाव दिखाने लगे हैं.
सम्पूर्ण समाज में, खास तौर से भारतीय
समाज में एकमात्र यही रिश्ता ऐसा है जो लाख लड़ाई के बाद भी रात को एकसाथ होता है.
इधर जबसे समाज को आधुनिकता की, पाश्चात्य समाज की हवा लगी है तबसे इस रिश्ते में
भी उसी का असर दिखने लगा है. एक तरह के झूठे अहंकार में दोनों लिप्त होकर न केवल
रिश्ते की हत्या कर रहे हैं वरन संबंधों की आत्मीयता को भी समाप्त कर रहे हैं. अनजाने
से, अनचाहे से अहंकार के बीच ये पावन रिश्ता लगभग पिसता जा रहा है. आधुनिकता की
दौड़ में शामिल होकर पति-पत्नी के रूप में दो इन्सान न मिलकर अब स्त्री-पुरुष
एक-दूसरे का सामना करते हैं. जहाँ कानून की भाषा बोली जाती है, अदालत का सहारा
लिया जाता है, एक-दूसरे को सबक सिखाने की चुनौती दी जाती है. ऐसे में कई बार लगता
है कि समाज में बहुत पहले से अनेकानेक रक्त-सम्बन्धियों में आपसी विवाद देखने को
मिलता था. आपसी रक्त-सम्बन्धियों में आपसी तनाव देखने को मिलता था. जिसके चलते
उनके किसी तरह के सम्बन्ध भविष्य में देखने को नहीं मिलते थे. अब जबकि ऐसा
पति-पत्नी के बीच दिखाई देने लगा है और बहुतायत में दिख रहा है तब आशंका सामाजिक
अवधारणा पर खड़ी होती है. समाज में पारिवारिकता, सामाजिकता के लिए खड़ी की गई विवाह
संस्था इस तरह से एक न एक दिन अवश्य ही खंडित होकर नष्ट हो जाएगी. सामाजिकता की
संस्कारवान पीढ़ी के निर्माण की संकल्पना के लिए पति-पत्नी को सामंजस्य बनाये रखने
की, आपस में आत्मीयता बनाये रखने की आवश्यकता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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