राजनीति खराब होती जा रही है या फिर समाज में ही एक तरह की खराबी आती जा रही है, यह समझना मुश्किल होता जा रहा है। राजनीति और समाज का आपसी ताना-बाना भी अब विकृति का शिकार बनता दिख रहा है। सामाजिकता में भी राजनीति होने लगी है और राजनीति को सामाजिकता से दूर किया जाने लगा है। कब कौन सी घटना को सामाजिक दायरे से दूर कर उसके माध्यम से अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ शुरू कर दी जायें, कहा नहीं जा सकता है। राजनीति की व्यापकता से इतर उसको स्वार्थ से संलिप्त करने की मानसिकता स्पष्ट रूप से दिख रही है। सामाजिकता से सम्बद्ध लोगों को राजनीति की दृष्टि से भले ही आकलन करने की जरूरत न हो पर राजनैतिक क्रियाकलापों का सामाजिकता के संदर्भ में देखा जाना अपेक्षित है। ऐसा नहीं है कि इस मानसिकता या स्थिति से सभी लोग परिचित नहीं हैं पर समस्या यह है इस परिचित स्थिति के बाद भी राजनीतिक बयानों, घटनाक्रमों को तोड़मरोड़ कर समाज में फैलाकर भ्रम का, असामाजिकता का, अविश्वास का माहौल बनाया जाने लगता है। राजनीति को अपने हाथों की कठपुतली मानने वाले, कानून को अपने इशारों पर चलाने वाले, समाज को अपने आगे कुछ न समझने वाले लोग अनावश्यक रूप से विवादास्पद स्थितियों का निर्माण कर समाज को दिग्भ्रमित करने का काम करते हैं।
ऐसा कोई आज या अभी नहीं हुआ वरन जबसे भारतीय राजनीति में एकमात्र परिवार की सत्ता का ध्वंस हुआ है, तबसे इस तरह के कुचक्र रोज ही रचे जा रहे हैं। कभी किसी व्यक्ति के नाम पर, कभी किसी बयान के नाम पर, कभी किसी राज्य के नाम पर, कभी किसी नीति के नाम पर। आये दिन ऐसे काम राजनीति के नये लोगों की ओर से नहीं बल्कि उन लोगों की ओर से किए जा रहे हैं जो दशकों से राजनीति में हैं, जिनका परिवार भी दसियों साल से राजनीति कर रहा है। बिना ये विचार किए कि उनके बयान का राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बिना ये सोचे कि उनके बयान का समाज में क्या असर होगा किसी भी बयान या घटना को अपने तरह से व्याख्यायित कर देना है। ऐसे लोगों के समर्थक बिना आगा-पीछा सोचे बकवास करना, कुतर्क करना शुरू कर देते हैं। असल में इन सभी लोगों का ऐसा करने के पीछे सिर्फ और सिर्फ भाजपा की, संघ की, मोदी की खिलाफत करना, उनकी बुराई करना ही होता है। किसी घटना, योजना, नीति, व्यक्ति आदि का विरोध करने का कारण न तो जनहित होता है और न ही देशहित होता है। ऐसा करने के पीछे की एकमात्र मंशा सिर्फ विरोधी बातें पैदा कर समाज में भाजपा, मोदी के खिलाफ खराब से खराब माहौल बनाना होता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर भी ऐसा ही कुछ हुआ। पूरे बयान को सुना जाये तो न सेना की बुराई है, न ही सेना के समानान्तर अपनी सेना बनाने की बात है, न ही किसी तरह के उपद्रव की बात है। इसके बाद भी बयान को तोड़मरोड़ कर जनता के सामने लाया गया और बस कुत्सित राजनीति चलने लगी।
संघ के काम क्या रहे हैं, संघ के कार्यकर्ता क्या कार्य करने निकल पड़ते हैं, संघियों में कितना सेवाभाव है, आपदाओं में संघ के स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से क्यों निकल पड़ते हैं इस पर चर्चा करने का कोई फायदा नहीं। जो लोग संघ और उसकी कार्यप्रणाली को जानते हैं उनके लिए इन बिन्दुओं के कोई मायने नहीं और जो संघ और उसके स्वयंसेवकों से परिचित नहीं उन्हें कितना भी समझाओ समझ में आने वाला नहीं है। सवाल यह है कि किसी भी बयान को अपने अनुसार बनाकर उसे जनता के बीच उतार देने से किस राजनैतिक सुधार की बात की जा रही है? गलत बातों के द्वारा जनता को किस तरह का संदेश देने का काम किया जा रहा है? इससे पहले मोदी जी के पकौड़े शब्द को पकड़कर उस पर निरन्तर अपनी बौद्धिक अक्षमता को इनके द्वारा दिखाया जा चुका है। शाब्दिक गिरावट में वैसे भी मोदी-विरोधियों को, भाजपा-विरोधियों को महारथ हासिल है पर अब जिस तरह से बयानों को अपने मनमाफिक बनाकर जनता को भ्रमित करने का जो काम किया जाने लगा है, वह निन्दनीय है। किसी समय सम्पूर्ण देश में अपनी सत्ता जमाये रहने वाले दल को, खुद को सर्वाधिक पुराना दल कहने का दम भरने वाले को इस तरह की गिरी हरकतों से बचना चाहिए। उनके साथ-साथ सोशल मीडिया पर और समाज के धरातल पर विचरते उनके चापलूस समर्थकों को भी इस तरह के भ्रम फैलाने से बचना चाहिए। वैसे, जिस तरह केन्द्र की सत्ता इन लोगों ने गँवाई है, जिस तरह लगातार राज्यों से ये समाप्त होते जा रहे हैं उससे इनमें हताशा बढ़ी है। इसके साथ-साथ मोदी जी का बढ़ता वैश्विक प्रभाव, भाजपा का बढ़ता जनाधार भी इनकी हताशा-निराशा को बढ़ा रहा है। इस हताशा-निराशा की प्रतिक्रियास्वरूप ऐसी भ्रम की स्थिति इन लोगों द्वारा और बनाई जायेगी क्योंकि कई राज्यों के विधानसभा तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव की सुगन्ध इनके नथुनों में भरने लगी है।
ऐसा कोई आज या अभी नहीं हुआ वरन जबसे भारतीय राजनीति में एकमात्र परिवार की सत्ता का ध्वंस हुआ है, तबसे इस तरह के कुचक्र रोज ही रचे जा रहे हैं। कभी किसी व्यक्ति के नाम पर, कभी किसी बयान के नाम पर, कभी किसी राज्य के नाम पर, कभी किसी नीति के नाम पर। आये दिन ऐसे काम राजनीति के नये लोगों की ओर से नहीं बल्कि उन लोगों की ओर से किए जा रहे हैं जो दशकों से राजनीति में हैं, जिनका परिवार भी दसियों साल से राजनीति कर रहा है। बिना ये विचार किए कि उनके बयान का राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बिना ये सोचे कि उनके बयान का समाज में क्या असर होगा किसी भी बयान या घटना को अपने तरह से व्याख्यायित कर देना है। ऐसे लोगों के समर्थक बिना आगा-पीछा सोचे बकवास करना, कुतर्क करना शुरू कर देते हैं। असल में इन सभी लोगों का ऐसा करने के पीछे सिर्फ और सिर्फ भाजपा की, संघ की, मोदी की खिलाफत करना, उनकी बुराई करना ही होता है। किसी घटना, योजना, नीति, व्यक्ति आदि का विरोध करने का कारण न तो जनहित होता है और न ही देशहित होता है। ऐसा करने के पीछे की एकमात्र मंशा सिर्फ विरोधी बातें पैदा कर समाज में भाजपा, मोदी के खिलाफ खराब से खराब माहौल बनाना होता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर भी ऐसा ही कुछ हुआ। पूरे बयान को सुना जाये तो न सेना की बुराई है, न ही सेना के समानान्तर अपनी सेना बनाने की बात है, न ही किसी तरह के उपद्रव की बात है। इसके बाद भी बयान को तोड़मरोड़ कर जनता के सामने लाया गया और बस कुत्सित राजनीति चलने लगी।
संघ के काम क्या रहे हैं, संघ के कार्यकर्ता क्या कार्य करने निकल पड़ते हैं, संघियों में कितना सेवाभाव है, आपदाओं में संघ के स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से क्यों निकल पड़ते हैं इस पर चर्चा करने का कोई फायदा नहीं। जो लोग संघ और उसकी कार्यप्रणाली को जानते हैं उनके लिए इन बिन्दुओं के कोई मायने नहीं और जो संघ और उसके स्वयंसेवकों से परिचित नहीं उन्हें कितना भी समझाओ समझ में आने वाला नहीं है। सवाल यह है कि किसी भी बयान को अपने अनुसार बनाकर उसे जनता के बीच उतार देने से किस राजनैतिक सुधार की बात की जा रही है? गलत बातों के द्वारा जनता को किस तरह का संदेश देने का काम किया जा रहा है? इससे पहले मोदी जी के पकौड़े शब्द को पकड़कर उस पर निरन्तर अपनी बौद्धिक अक्षमता को इनके द्वारा दिखाया जा चुका है। शाब्दिक गिरावट में वैसे भी मोदी-विरोधियों को, भाजपा-विरोधियों को महारथ हासिल है पर अब जिस तरह से बयानों को अपने मनमाफिक बनाकर जनता को भ्रमित करने का जो काम किया जाने लगा है, वह निन्दनीय है। किसी समय सम्पूर्ण देश में अपनी सत्ता जमाये रहने वाले दल को, खुद को सर्वाधिक पुराना दल कहने का दम भरने वाले को इस तरह की गिरी हरकतों से बचना चाहिए। उनके साथ-साथ सोशल मीडिया पर और समाज के धरातल पर विचरते उनके चापलूस समर्थकों को भी इस तरह के भ्रम फैलाने से बचना चाहिए। वैसे, जिस तरह केन्द्र की सत्ता इन लोगों ने गँवाई है, जिस तरह लगातार राज्यों से ये समाप्त होते जा रहे हैं उससे इनमें हताशा बढ़ी है। इसके साथ-साथ मोदी जी का बढ़ता वैश्विक प्रभाव, भाजपा का बढ़ता जनाधार भी इनकी हताशा-निराशा को बढ़ा रहा है। इस हताशा-निराशा की प्रतिक्रियास्वरूप ऐसी भ्रम की स्थिति इन लोगों द्वारा और बनाई जायेगी क्योंकि कई राज्यों के विधानसभा तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव की सुगन्ध इनके नथुनों में भरने लगी है।
अति सुंदर समीक्षा
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