13 जनवरी 2018

प्रोत्साहन बिना कैशलेस व्यवस्था सफल नहीं

नोटबंदी के बाद सरकार कैशलेस अर्थव्यवस्था अपनाने की बात कर रही है. जनता को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वह अधिक से अधिक लेन-देन डिजिटल माध्यम से करे. इसके बाद भी सरकार की तरफ से ऐसे कदम नहीं उठाये जा रहे हैं जो जनता को इसके लिए प्रोत्साहित करे. सरकार की तरफ से नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए दो लाख रुपये से अधिक के नकद लेन-देन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. इसका उद्देश्य जहाँ एक तरफ बैंकों में भीड़ को कम करना है वहीं दूसरी ओर इसके द्वारा काला धन, नकली मुद्रा, भ्रष्टाचार को कम करना या रोकना भी है. यह सच है कि यदि समाज में अधिक से अधिक लेन-देन नकदी के स्थान पर डिजिटल माध्यम से होने लगे, इंटरनेट बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, एटीएम आदि का उपयोग अधिक से अधिक होने लगे तो काले धन को, नकली मुद्रा को नियंत्रण में रख पाना सहज हो जायेगा. नोटबंदी के पहले तक जिस तरह से लोगों में नकद लेन-देन के प्रति एक प्रकार का मोह देखने को मिलता था, वो अभी भी दूर नहीं हुआ है. क्रेडिट कार्ड अथवा इंटरनेट बैंकिंग के प्रति अभी भी उतनी जागरूकता नहीं आई है, जितनी की अपेक्षित थी. इसके पीछे एक ओर तो समाज की बहुसंख्यक जनता का डिजिटल माध्यमों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध विकसित न कर पाना है. इसके साथ ही साथ सरकारी स्तर पर डिजिटल विनिमय को बढ़ावा देने के लिए भी प्रोत्साहन योजनाओं की जबरदस्त कमी देखने को मिल रही है. इसके उलट सार्वजनिक क्षेत्र के अग्रणी बैंक भारतीय स्टेट बैंक द्वारा नकद जमा-निकासी पर, एटीएम के उपयोग पर अपना ही नया नियम लागू कर दिया गया है. इससे आमजन के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की आशंका बढ़ी है.


सरकार के साथ-साथ बैंक भी चाहती हैं कि उनके पास कम से कम भीड़ पहुँचे और इसके लिए उनके द्वारा समय-समय पर इस तरह की योजनायें लागू की जाती हैं जो जनता को घर बैठे सुविधाएँ मुहैया कराती हैं. इधर भारतीय स्टेट बैंक द्वारा तीन बार नकद जमा के बाद जमा पर शुल्क लगा दिया है. ये शुल्क नाममात्र को नहीं वरन इतना है कि आम खाताधारक की जेब पर असर डालेगा. यहाँ यदि सरकार का अथवा बैंक का ये विचार हो कि लोगों की नकद जमा-निकासी की सीमा बनाकर उनको डिजिटल विनिमय के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा तो ऐसा सोचना उसकी भूल है. ऐसा उनके लिए तो सहज हो सकता है जो वेतनभोगी हैं किन्तु उनके लिए कतई सहज नहीं है जिनको महीने भर फुटकर-फुटकर धन मिलता रहता है. ऐसे में ये लोग अपने धन को बैंक में जमा करने के स्थान पर अपने पास ही संग्रहित करके रखना शुरू कर देंगे. ये स्थिति जहाँ एक तरफ डिजिटल विनिमय माध्यम को हतोत्साहित करेगी वहीं दूसरी तरफ धन-संचय की प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर मुद्रा को चलन से दूर करेगी. इसके अलावा खाते में न्यूनतम मासिक जमाराशि को लेकर भी भारतीय स्टेट बैंक द्वारा बनाया गया नियम गले से नीचे न उतरने वाला है. चाहे मेट्रो शहर हों अथवा ग्रामीण इलाके, सभी में आमजन की स्थिति ये है कि उसके लिए एक-एक रुपये का महत्त्व होता है. ये देखने में भले ही न्यूनतम राशि समझ आ रही हो किन्तु उनके लिए बहुत बड़ी धनराशि है जिनके पास धनोपार्जन के न्यूनतम अथवा सीमित साधन हैं. ऐसे में न्यूनतम मासिक जमाराशि रखना उनकी मजबूरी हो जाएगी. इस मजबूरी के चलते उनका पारिवारिक बजट गड़बड़ाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा अभी हाल ही में रिजर्व बैंक की तरफ से जारी नए नियमों के चलते तो नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग पर भी चार्ज बढ़ाये जाने के संकेत मिले हैं. ऐसी व्यवस्था जनता को हतोत्साहित ही करेगी.


यदि सरकार को अथवा बैंकों को डिजिटल माध्यम को प्रोत्साहित करना है तो उन्हें आमजन को कुछ लाभ देने होंगे. डिजिटल लेन-देन को विकसित करने के लिए सरकार को चाहिए कि क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड आदि से भुगतान करने पर न्यूनतम टैक्स लेने की व्यवस्था समाप्त की जाये. इससे सामान्य उपभोक्ता बड़ी रकम को कार्ड के माध्यम से भुगतान करने से बचता है. इसी तरह इंटरनेट बैंकिंग में भी भुगतान करने पर टैक्स लगाया जाता है. इससे भी उपभोक्ता के अन्दर हिचकिचाहट पैदा होती है. इसके अलावा तकनीकी रूप से अभी इंटरनेट सेवाएँ अभी इतनी उन्नत और सशक्त नहीं हो सकी हैं कि आमजन आर्थिक लेन-देन के लिए इस प्रणाली पर पूर्णरूप से विश्वास करने लगे. आये दिन होती धोखाधड़ी के चलते, एटीएम में धन के फँसने, भुगतान के समय इंटरनेट सेवा बाधित होने के चलते भी उपभोक्ता में भय का माहौल बना रहता है. इससे भी वह डिजिटल माध्यमों से भुगतान के लिए खुद को प्रेरित नहीं कर पाता है. सरकार को, उसके सहयोगी अंगों को चाहिए कि वे पहले मूलभूत सुविधाओं को उन्नत और विकसित करें. कार्ड के लेन-देन के साथ-साथ इंटरनेट बैंकिंग में लगने वाले शुल्क को समाप्त करें. डिजिटल माध्यम से भुगतान करने वालों को किसी तरह से लाभान्वित करें. भारतीय स्टेट बैंक द्वारा लागू किये गए हालिया नियमों को जनहित में, कैशलेस व्यवस्था के हित में तत्काल प्रभाव से रद्द करें. यदि सरकार इस तरह के कदम नहीं उठाती है, जिससे आम उपभोक्ता स्वयं को लाभान्वित महसूस करे, सुरक्षित महसूस करे तब तक डिजिटल माध्यमों को, कैशलेस व्यवस्था को पूर्णरूप से लागू कर पाना दूर की कौड़ी समझ आती है. 

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