28 दिसंबर 2017

अनुशासनहीनता का पुरस्कार देने को उतावली पार्टी

ये फोटो अपने आपमें बहुत कुछ कहती हैं. जितने समय तक नगर पालिका चुनाव चले, उतने समय अनिल बहुगुणा जी भाजपा के बागी प्रत्याशी के रूप में मैदान में रहे. इस दौरान भी उनके और उनके समर्थकों द्वारा बराबर ये प्रचारित किया जाता रहा कि भाजपा उनके डीएनए में शामिल है. उनकी खुली बगावत के बाद भी न तो उन्होंने पार्टी छोड़ी और न ही पार्टी ने उन्हें निष्कासित किया. बहरहाल, अनिल बहुगुणा जी चुनाव जीते और जीतते ही धमाकेदार बयान दिया कि उनकी बगावत को प्रदेश अध्यक्ष की मौन सहमति थी, वे इस दौरान लगातार उनके संपर्क में रहे. ऐसा सुनते ही एक तरफ जहाँ बहुगुणा जी को वोट करने वाले मुस्लिम मतदाता सकते में आ गए वहीं भाजपा के लिए समर्पित कार्यकर्त्ता भी हतप्रभ रह गए.


केशव प्रसाद मौर्य की सभा के बाद जिला अध्यक्ष द्वारा कार्यवाही की प्रक्रिया दिखावा ही साबित हुई. हालाँकि इससे पार्टी में अनुशासन बहाल होने की आशा जागी थी मगर बहुगुणा जी के चुनाव जीतते ही वो भी समाप्त हो गई. पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी की तरफ से बागी प्रत्याशी पर कार्यवाही तो दूर की बात, उनको सिकंदरा उपचुनाव में प्रचार के लिए भी भेजा गया. पदाधिकारियों, मंत्रियों के साथ बागी प्रत्याशी भी प्रचार-बैठकें करते नजर आये.

जनपद जालौन के समर्पित कार्यकर्त्ता खुद को निपट अंधकार में मानने लगे. उनको अपने साथ छल होता दिखाई देने लगा. ऐसे में चोट उस समय भी लगी जबकि बहुगुणा जी के शपथ ग्रहण समारोह में न केवल जिला कार्यकारिणी के कई पदाधिकारी शामिल हुए वरन सदर विधायक गौरी शंकर वर्मा भी अनिल बहुगुणा के साथ गलबहियाँ करते देखे गए.

कार्यकर्ताओं की संख्या के आधार पर विश्व की सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा अनुशासनहीन को गले लगाती नजर आई. इससे पार्टी में अंदरूनी स्तर पर विवाद और दो-फाड़ की सम्भावना दिखाई दे रही है. इस बीच किसी भी स्तर पर सुधार की कोई पहल तो दिखाई नहीं दी वरन कार्यकर्ताओं के सामने अनुशासनहीनता को और स्थापित करने का प्रयास किया गया जबकि भाजपा के जनपद जालौन के दो विधायकों के साथ बागी अनिल बहुगुणा राष्ट्रीय कार्यकारिणी पदाधिकारियों संग फोटो खिंचवाते पाए गए, मिठाई खाते देखे गए.


इस बीच गुप्त सूत्रों से खबर आई कि अनिल बहुगुणा के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भाजपा के विधायक और पदाधिकारियों को नेतृत्व से नोटिस जारी किया गया है किन्तु इसे भी अपने प्रभाव से दबा दिया गया है.


पार्टी खुद में कितनी भी अनुशासित होने का दावा करे किन्तु इस तरह के कदमों से उसने अपनी साख ही खोई है. नगर पालिका चुनाव अंतिम चुनाव नहीं है. अनिल बहुगुणा अंतिम प्रत्याशी नहीं हैं. गौरी शंकर वर्मा, नरेन्द्र सिंह जादौन, मूलचंद्र निरंजन अंतिम विधायक नहीं हाँ. चुनाव आगे भी आने हैं, विधायक प्रत्याशी आगे भी आने हैं मगर कार्यकर्त्ता वही रहने हैं, मतदाता वही रहने हैं.


अब पार्टी खुद तय करे कि उसे करना क्या है क्योंकि मतदाता पर बहुत ज्यादा सकारात्मक असर नहीं हुआ है कांग्रेस की जगह भाजपा को लाने का और बहुत ज्यादा नकारात्मक असर फिर न पड़ेगा भाजपा को वापस करने में. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें