समूची मीडिया और राजनैतिक विश्लेषकों
के सामने गुजरात राज्य विधानसभा चुनाव परिणाम छाया रहा. आमजनमानस और राजनैतिक
लोगों के लिए भी इसके परिणाम को लेकर उत्सुकता थी. ये चुनाव भाजपा और कांग्रेस के
लिए परीक्षा की घड़ी था. भाजपा के लिए एक तरफ प्रतिष्ठा का प्रश्न तो बना ही हुआ
था, दूसरी तरफ इसी चुनाव के आधार पर उसके लिए आगामी लोकसभा का खाका भी तैयार किया जाना
अपेक्षित था. इसी तरह कांग्रेस के लिए भी गुजरात चुनाव एक तरह की प्रतिष्ठा का
सवाल था. यहाँ कांग्रेस की हार या जीत का प्रश्न उतना बड़ा नहीं था जितना कि
हार्दिक पटेल के साथ उनका गठबंधन का असर बड़ा बना हुआ था. लगभग दो दशकों से भाजपा
की सत्ता होने के कारण वर्तमान चुनावों को एंटी इनकम्बेंसी के रूप में देखा-सोचा
जा रहा था. इसके अलावा नोटबंदी, जीएसटी से वहां के व्यापारियों में रोष, पाटीदारों
का आन्दोलन, हार्दिक पटेल की छवि का उभरना, उसके पक्ष में कांग्रेस का आना आदि ऐसे
बिंदु थे जिनसे कि माना जा रहा था कि वर्तमान चुनाव भाजपा को मुश्किल में ले
जायेगा.
इस चुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा से
ज्यादा नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी थी. विगत लोकसभा चुनाव में जिस
प्रचंड जीत का सेहरा देश के मतदाताओं ने उनके सिर पर बाँधा था, उसका आधार गुजरात
विकास मॉडल था. विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के आने पर उनको गुजरात भ्रमण करवाना,
वैश्विक आर्थिक जगत के सामने गुजरात के आर्थिक स्वरूप को आँकड़ों सहित प्रस्तुत करना,
सम्पूर्ण विश्व में गुजरात को एक विकसित राज्य के रूप में प्रदर्शित करना आदि भले
ही भाजपा को सम्पूर्ण देश में विधानसभा चुनाव जीतने में मददगार बन रहा था मगर इन
चुनावों में यही उसके लिए अवरोधक के रूप में दिखाई पड़ने लगा. एक तो गुजरात उनका
गृह राज्य है यहाँ भाजपा की हार को नरेन्द्र मोदी की ही हार के रूप में प्रचारित
किया जाता. दूसरे, जिस गुजरात विकास मॉडल की सर्वत्र चर्चा की जाती है यदि इस
चुनाव में वही असफल साबित कर दिया गया तो यह स्वयं मोदी जी की छवि के लिए उचित
नहीं रहता.
भाजपा के लिए चिंता इसलिए भी थी क्योंकि
व्यापारिक विरोध गुजरात में स्पष्ट दिखाई दे रहा था. आरक्षण के नाम पर भी लोग
जगह-जगह लामबंद हो रहे थे. मोदी के बाद के दोनों मुख्यमंत्री उतने प्रभावी नजर
नहीं आ रहे थे कि उनके सहारे विधानसभा चुनाव जीता जा सकता. कांग्रेस-हार्दिक पटेल
जुगलबंदी भी भाजपा की विजय राह में बाधक बन रही थी. इसके अलावा जिस सोशल मीडिया,
तकनीक का बेइंतिहा उपयोग-प्रयोग करके भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के सहारे जीत के
रास्ते पर बढ़ना सीख लिया था, अब उसी विद्या में उनके विरोधी भी निपुणता हासिल करने
लगे थे. गुजरात की कमियों को नियमित रूप से सोशल मीडिया के द्वारा आम मतदाताओं तक
पहुँचाया जा रहा था. गुजरात की शिक्षा व्यवस्था, रोजगार, व्यापार, विकास आदि के
नाम पर व्याप्त समस्याओं को भाजपा-विरोधियों द्वारा चर्चा में लाकर मतदाताओं को
भाजपा के विरोध में तैयार किया जा रहा था. ऐसे में गुजरात में चुनाव प्रचार की जिम्मेवारी
मोदी जी के कंधों पर स्वतः ही आनी थी.
कई बार खुद की मेहनत या ताकत के बजाय विरोधी
की कमजोरी, उसकी रणनीति की कमजोरी के कारण जीत मिलती है. इस चुनाव में कुछ ऐसा ही भाजपा
के साथ हुआ. नरेन्द्र मोदी की रैलियों से ज्यादा लाभ उनके विरोधियों ने भाजपा को पहुँचाया.
कांग्रेस की तरफ से राहुल गाँधी जाने-अनजाने भाजपा के लिए राह आसान कर रहे थे. यही
कारण था कि जातिवाद के मुद्दे से शुरू हुआ उनका चुनाव प्रचार ब्राह्मण, जनेऊ,
सोमनाथ मंदिर में गैर-हिन्दू के रूप में दर्ज हुए उनके विवरण से गुजरने लगा. राहुल
गाँधी की छवि वैसे भी मतदाताओं के बीच गंभीर नेतृत्व के रूप में उभर कर सामने नहीं
आ सकी है. इस चुनाव के मध्य में ही ये निर्धारित हो गया था कि वे कांग्रेस के
आगामी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उसके बाद भी उनकी छवि में उस तरह की परिपक्वता और
गंभीरता दिखाई नहीं दी, जिसके सहारे वे गुजरात के उन मतदाताओं को अपने पक्ष में
मोड़ पाते जो किसी न किसी रूप में भाजपा से नाराज हैं.
जहाँ राहुल गाँधी लगातार रैलियाँ,
जनसभाएँ आदि करने में लगे थे वहीं दूसरी तरफ उनके दल के ही लोग भाजपा को जीत की
तरफ धकेल रहे थे. कपिल सिब्बल का अयोध्या मुद्दे को ऐसे समय में उठाया जाना उल्टा
कदम सिद्ध हुआ. इसी तरफ मणिशंकर अय्यर का मोदी को संबोधित करके बोला गया नीच शब्द
भी कहीं न कहीं कांग्रेस की समूची चुनावी मेहनत पर पानी फेरता दिखाई दिया. रणनीतिक
कौशल में जबरदस्त पारंगतता हासिल किये नरेन्द्र मोदी ने अय्यर के एक शब्द नीच को
पूरी तरह से गुजराती जातीय अस्मिता की तरफ, गुजरात की सांस्कृतिक अस्मिता की तरफ
मोड़ दिया. ये और बात है कि अय्यर के उस बयान के तुरंत बाद ही कांग्रेस ने उनके
पार्टी ने निकाल दिया किन्तु तब तक एक शब्द भाजपा की राह काफी कुछ आसान कर गया था.
इसके अलावा नरेन्द्र मोदी ने एक रैली में
कांग्रेस पार्टी के नेता सलमान निजामी पर हमला बोलते हुए कहा था कि वह मूलत: कश्मीर
के रहने वाले हैं और कहते हैं आजाद कश्मीर चाहिए, घर घर से अफजल निकलेगा. इसके बाद
जैसे समूचे चुनावी माहौल में कांग्रेस बैकफुट पर दिखाई देने लगी. कांग्रेस द्वारा
इस प्रकरण पर सफाई दी गई कि निजामी पार्टी के सदस्य ही नहीं हैं. भले ही यह विवाद
पूरे चुनाव भर न छाया रहा हो किन्तु मतदाताओं के मन में एक छवि यह घर कर गई कि
कांग्रेस द्वारा राष्ट्रविरोधी के साथ मिलकर प्रचार किया जा रहा है. यही सब कारक
मिलकर भाजपा के पक्ष में मतदान को प्रभावित करते गए. भाजपा नेतृत्व द्वारा
छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, मुख्यमंत्रियों द्वारा अनेकानेक आन्दोलनों को
सफलता से समाप्त न करवा पाना, पाटीदार-पटेल आन्दोलनों का समय-समय पर सिर उठाते
रहना, रोजगार, शिक्षा, आरक्षण आदि के मुद्दे पर जब-तब सरकार का घिर जाना आदि ऐसे
मुद्दे रहे जिनको देखकर भाजपा को जीतना मुश्किल ही लग रहा था.
इसके बाद भी स्पष्ट है कि कांग्रेस को
जितना लाभ मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला या कहें कि भाजपा को जितना नुकसान होना
चाहिए था उतना नहीं हुआ. इसे चुनाव परिणामों पर सरसरी निगाह डालने से भी समझा जा
सकता है. पूरे चुनाव को मतदाताओं ने भाजपा और कांग्रेस के मध्य बाँट दिया था. यदि
चुनाव परिणामों को सीटों के सापेक्ष दोनों दलों के सन्दर्भ में देखा जाये तो 2002 विधानसभा चुनावों
के बाद से कांग्रेस बहुत ही धीमे गति से अपनी सीटों में वृद्धि करने में लगी है.
इसके उलट भाजपा की सीटों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. चुनाव परिणामों के
दौर में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रेस वार्ता में भले ही अपनी सीटों की गिरती
संख्या को मात्र आठ प्रतिशत के बढ़े हुए मत प्रतिशत से समायोजित करने का प्रयास
करें किन्तु भाजपा को समझना होगा कि आने वाली राह उसके लिए आसान नहीं हैं. हाँ,
गुजरात विधानसभा की वर्तमान विजय को भाजपा द्वारा आगामी चार राज्यों के विधानसभा
चुनावों और लोकसभा चुनावों में अवश्य ही भुनाया जायेगा. आखिर भुनाया भी क्यों न
जाये क्योंकि भाजपा जहाँ एक तरफ आज देश के 19 राज्यों में
अपनी सरकार बनाकर इतिहास रच ही चुकी है वहीं दूसरी तरफ गुजरात में अपनी लगातार
छठवीं जीत के साथ सफलता के घोड़े पर सवार है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन��
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