हमको रोज जगाता
सूरज.
पर्वत के पीछे से
आकर,
अँधियारा दूर
भगाता सूरज.
सुबह-सुबह जब आता
सूरज.
ठंडी-ठंडी पवन चले
और
फूलों को महकाता
सूरज.
गर्मी में आँख
दिखाता हमको,
सर्दी में कितना
भाता सूरज.
पूरब से पश्चिम तक
देखो,
कितनी दौड़ लगाता
सूरज.
चंदा तारे लगें
चमकने,
शाम को जब छिप
जाता सूरज.
काम करें हम
अच्छे-अच्छे,
हमको यह सिखलाता
सूरज.
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इस ब्लॉग की यह 1100वीं पोस्ट है.
विशेष बात ये है कि ये कविता उस समय लिखी थी, जबकि लेखक की उम्र नौ-दस वर्ष की थी. उस समय यह कविता समाचार-पत्र में प्रकाशित भी हुई थी.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।